नई दिल्ली। कोरोना वायरस संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के चलते देश में 15 लाख स्कूल बंद रहे हैं। इस स्कूलों को बंद करने की वजह से भारत में प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के 24 करोड़ 70 लाख बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है। आशंका है कि इसकी वजह से स्कूलों के खुलने पर ड्रॉप-आउट रेट यानी पढ़ाई पूरी न करने वाले बच्चों की तादाद में भारी इजाफा हो सकता है। सारी दुनिया के आंकड़ों को देखें तो कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन की वजह से 88 करोड़ 80 लाख बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है।

कोरोना और लॉकडाउन की वजह से बच्चों के पढ़ाई पर बुरे प्रभाव पड़ने के ये आंकड़े संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने जारी किए हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में ऑनलाइन शिक्षा की सुविधा ज्यादातर बच्चों के लिए उपलब्ध नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश के चार में से एक बच्चे के पास ही डिजिटल उपकरण और इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना काल से पहले भारत के करीब 24 फीसदी घरों तक ही इंटरनेट की पहुंच थी। इसमें भी ग्रामीण इलाकों की स्थिति और भी बुरी है। यही बात लड़कों की तुलना में लड़कियों को मिलने वाली सुविधा की कमज़ोर स्थिति के बारे में भी कही जा सकती है।

UNICEF की तरफ से बुधवार को जारी बयान में बताया गया है कि 'कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर मार्च 2020 में लागू लॉकडाउन के कारण 15 लाख स्कूलों को बंद करना पड़ा, जिससे भारत में प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में पढ़ने वाले 24.7 करोड़ बच्चे प्रभावित हुए। इसके अलावा, कोविड-19 महामारी की शुरुआत से पहले भी देशभर में 60 लाख से अधिक लड़के-लड़कियां स्कूल नहीं जा पा रहे थे।'

भारत में अब तक केवल आठ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पहली से 12वीं कक्षा तक के सभी स्कूलों को खोला जा सका है।  11 राज्यों ने छठी से 12वीं तक के स्कूल खोलने की इजाजत दी है, जबकि 15 राज्यों ने नौवीं से 12वीं तक की कक्षाओं के संचालन की ही अनुमति दी है। महामारी के कारण करीब एक साल तक अधिकांश स्कूल बंद रहे, जिससे देशभर में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के काम पर बेहद बुरा असर पड़ा है।