नई दिल्ली। म्यांमार में 7.7 तीव्रता के भीषण भूकंप ने पूरे देश को तबाह कर दिया। इस भीषण भूकंप के कारण 2000 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। लगभग 4000 लोग लापता और 500 से ज्यादा लोग घायल हैं। म्यांमार में आए भूकंप के बाद भू-वैज्ञानिकों ने भारत पर भी मंडरा रहे एक प्रलयंकारी भूकंप के खतरे को लेकर आगाह किया है। विशेषज्ञों ने ग्रेट हिमालयन भूकंप के खतरे के बारे में चेतावनी दी है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, भारत पर 8 या उससे अधिक की तीव्रता वाले एक भीषण भूकंप का संभावित खतरा मंडरा रहा है। हिमालयी क्षेत्र में होने वाली हलचल का सीधा असर भारत के उत्तरी क्षेत्र पर पड़ेगा। संभावित खतरा इतना बड़ा है कि यह म्यांमार में देखी गई तबाही से कई गुना ज्यादा नुकसान करेगा।
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2020 में अमेरिकी भूभौतिकीविद् रोजर बिलहम ने चेतावनी दी थी कि हिमालय दुनिया का एकमात्र स्थान है जहां एक बड़ा भूकंप आ सकता है। उन्होंने कहा था कि भारत हर शताब्दी में तिब्बत के दक्षिणी किनारे से 2 मीटर नीचे खिसक जाता है। लेकिन इसका उत्तरी किनारा आसानी से नहीं खिसकता। उत्तरी किनारा सैकड़ों वर्षों तक घर्षण के कारण लटका रहता है और जब यह घर्षण दूर हो जाता है तो कुछ ही मिनटों में अपनी स्थिति मजबूत कर लेता है।
रोजर बिलहम ने कहा था कि रिक्टर पैमाने पर 8 से अधिक तीव्रता वाले ‘बड़े भूकंप’ हर कुछ सौ वर्षों में हिमालय में आते रहे हैं। इस बात के भूवैज्ञानिक साक्ष्य हैं कि पिछले 2,000 वर्षों में कई बार 8.7 तीव्रता के बड़े भूकंप आए हैं। हालांकि, पिछले 70 वर्षों में हिमालय के क्षेत्र में दबाव कम करने के लिए 8 तीव्रता का कोई भूकंप नहीं आया है। यही सबसे बड़ी चिंता का विषय भी है।
हिमालय के दो या दो से अधिक क्षेत्रों में जल्द ही एक बड़े भूकंप की संभावना है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ये सिर्फ अनुमान नहीं है बल्कि भूकंप आना तय है। दुर्भाग्य से, वैज्ञानिक उसके सटीक समय के बारे में कोई जानकारी देने में असमर्थ हैं। इसके परिणाम चौंका देने वाले हो सकते हैं। भूकंप के झटके राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को तबाह कर सकते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, हिमालय दुनिया का एकमात्र स्थान है जहां 8.2 और 8.9 के बीच की तीव्रता वाला भूकंप जमीन पर आ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो लगभग 30 करोड़ लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं। भारत के लिखित इतिहास में यह दर्ज नहीं है कि पिछले बड़े भूकंपों में क्या हुआ था। शायद तब आबादी कम थी और इमारतों की शैली आज जैसी नहीं थी इसलिए तबाही कम हुई है।