नई दिल्ली। 
समुद्र के स्तर में बढ़ोत्तरी से प्रभावित होने वाले देशों में भारत की स्थिति काफी कमजोर है। आईपीसीसी ने सोमवार को जारी अपनी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट में ये बात कही है। आईपीसीसी की यह रिपोर्ट ग्लोबल वार्मिंग के इम्पैक्ट, रिस्क और कमजोरियों के साथ ही वार्मिंग को कम करने के लिए किये जा रहे उपायों से संबंधित है। पैनल ने पहली बार ग्लोबल वार्मिंग के क्षेत्रवार आकलन के साथ ही बड़े शहरों पर पड़ने वाले प्रभावों का भी आकलन इस रिपोर्ट में किया है। 
रिपोर्ट में कहा गया  है कि 2050 तक भारत में लगभग 3.5 करोड़ लोग बाढ़ की विभीषिका का सामना कर सकते हैं। यदि कार्बन उत्सर्जन बढ़ता रहा तो इस सदी के अंत तक करीब 5 करोड़ लोगों पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगेगा। बाढ़ के चलते करोड़ों रुपए की क्षति होगी। अकेले मुंबई में समुद्र के स्तर में वृद्धि से 2050 तक सालाना 162 अरब डॉलर तक का नुकसान हो सकता है। 
रिपोर्ट के अनुसार अगर पृथ्वी का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो शहरों में गर्नी का स्तर चरम पर पहुंच जायेगा। वायु प्रदूषण की घटनाएं भी बढ़ेंगी। यदि कार्बन उत्सर्जन को तेजी से कम नहीं किया गया तो पूरे विश्व में गर्मीं और आद्रता मनुष्य की सहनशीलता की सीमा से परे पहुंच जाएगी। भारत भी विश्व के उन देशों में शामिल होगा जहाँ  के लोगों को इस असहनीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। 
रिपोर्ट के अनुसार 31 डिग्री सेल्सियस का वेट बल्ब तापमान मनुष्य के लिए अत्यंत खतरनाक है। वेट बल्ब तापमान में गर्मी के साथ आद्रता को भी जोड़कर तापमान को मापा जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 35 डिग्री सेल्सियस के वेट बल्ब तापमान में स्वस्थ मनुष्य भी 6 घंटे से अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकता है। आईपीसीसी के अनुसार भारत में  वर्तमान में कभी कभी ही वेट बल्ब तापमान 31 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है। देश के अधिकांश हिस्सों में अभी वेट बल्ब तापमान अधिकतम 25-30 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। यदि कार्बन उत्सर्जन में कटौती नहीं की जाती है तो इस सदी के अंत तक उत्तर और तटीय भारत में वेट बल्ब  तापमान 31 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जायेगा। यदि कार्बन उत्सर्जन में कटौती की जगह वृद्धि यूँ ही जारी रहती है तो देश के अधिकांश हिस्सों में तापमान 35 डिग्री सेल्सियस  की असहनीय सीमा तक पहुंच जायेगा।