नई दिल्ली। वर्ल्ड टाइगर डे पर 29 जुलाई को हमने टाइगर की संख्या बढ़ने पर ख़ुशियाँ मनाई मगर हक़ीकत यह है भारत में बाघों के रहने वाला जंगल 2011 से 2017 के बीच 4,685 वर्ग किलोमीटर तक कम हुए हैं। 28 जुलाई को जारी ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने मुंबई और गोवा के कुल आकार से अधिक बड़ा बाघों का जंगल खो दिया हैं।  

सितंबर 2019 में आने वाली रिपोर्ट 11 महीने देर से आई है जिसमें इस बात का खुलासा हुआ है। इससे पहले 29 जुलाई 2019 को पीएम नरेंद्र मोदी ने एक सारांश रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें भारत के बाघों की संख्या में 2014 में 2,226 से 2018 में 2,967 तक 33 प्रतिशत की छलांग लगाने की घोषणा की गई थी। ऐसे में इन दोनों रिपोर्ट से साफ है कि भारत में बाघों की संख्या भले ही बढ़ी हो पर हम तेजी से उनके रहने की जगह छीन रहे हैं।

2011 के फॉरेस्ट सर्वेक्षण के लिए इस्तेमाल किए गए भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) रिपोर्ट के बाद से भारत के फॉरेस्ट कवर की स्थिति बदली है। इसमें पाया गया है कि  2011 और 2017 के बीच दर्ज आंकड़ों से 4,685 वर्ग किलोमीटर के जंगलों में नुकसान हुआ है। 2017 के फॉरेस्ट कवर के लिए समायोजित, 2014 की रिपोर्ट में किए गए बाघों वाले जंगलों की सीमा शिवालिक, मध्य भारतीय और पश्चिमी घाट परिदृश्य में काफी कम हो गई थी। इस नुकसान की भरपाई उत्तर-पूर्व में बड़े पैमाने पर 4,080 वर्ग किमी के जंगलों से हुई। यह संभवतः ऊंचाई वाले जंगलों में शामिल होने के कारण है, जहां हाल ही में बाघों को देखा गया है। चूंकि 2011-17 के दौरान समग्र फॉरेस्ट कवर वास्तव में उत्तर-पूर्व में सिकुड़ गया है। कुल मिलाकर, एफएसआई ने उस छह साल की अवधि में भारत में 34,204 वर्ग किमी जंगलों के विनाश को दर्ज किया है।

मामले पर वन विभाग के अधिकारी टिप्पणी करने से बच रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने डब्ल्यूआईआई के प्रिंसिपल इंवेस्टिगेटर वाईवी झाला से बात की तो उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया वहीं एनटीसीए प्रमुख एसपी यादव भी उपलब्ध नहीं थे। एनटीसीए के पूर्व प्रमुख डॉ राजेश गोपाल ने इस बारे में बताया, 'हां हमने कुछ हासिल किया तो कुछ खो भी दिया। फॉरेस्ट डायनमिक्स पर्यावरणीय घटनाओं और मानव-प्रेरित कारणों के कारण एक सतत प्रक्रिया है। बाघ के मोर्चे पर भारत के प्रयास अद्वितीय हैं। पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का निर्वाह मानव-बाघ इंटरफेस के सक्रिय प्रबंधन पर निर्भर करेगा।' डॉ गोपाल ने ही 2006 में चतुष्कोणीय ऑल इंडिया कैमरा-ट्रैप सर्वेक्षण की शुरुआत की थी।