नई दिल्ली। अपने किताबों में कंटेंट के बदलाव को लेकर NCERT लगातार विरोध का सामना कर रही है। अब सोशल शिक्षाविद योगेंद्र यादव और सुहास पलीशकर ने एनसीईआरटी को चिट्ठी लिखकर नई किताबों में उनके नाम होने पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम की किताबों की समीक्षा से अब उनका कोई संबंध नहीं है और वे नहीं चाहते कि एनसीईआरटी उनके नाम का इस्तेमाल करके स्टूडेंट्स को ऐसी किताबें पढ़ाए, जो राजनीतिक रूप से पक्षपाती हों।
दोनों शिक्षाविदों का कहना है कि अगर किताबों से उनका नाम नहीं हटाया गया तो वो फिर लीगल एक्कोशन लेते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।उनका कहना है कि पाठ्यपुस्तकें पहले उनके लिए गौरव की बात थीं जो अब शर्मिंगदी का सबब बन गई हैं। उन्होंने पिछले साल ही कहा था कि किताबों से सामग्री को कम किए जाने से ये अब अकादमिक रूप से अनुपयुक्त हो गई हैं और अपने नाम को हटाने की मांग की थी, लेकिन संसोधित पाठ्यपुस्तकों में भी उनका नाम शामिल है।
सुहास पलशीकर और योगेंद्र यादव राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों के लिए मुख्य सलाहकार थे। दोनों शिक्षाविदों का कहना है कि लेखक और संपादक के नाम ऐसी रचना के साथ जोड़े गए हैं, जिन्हें अब वे अपना नहीं मान रहे हैं। टेक्सबुक की समीक्षा से उन्होंने खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अपने पत्र में कहा कि वे नहीं चाहते कि एनसीईआरटी उनके नाम की आड़ लेकर छात्रों को राजनीति विज्ञान की ऐसी पाठ्यपुस्तकें दे, जो राजनीतिक रूप से पक्षपाती, अकादमिक रूप से असमर्थ और शैक्षणिक रूप से अनुपयुक्त हैं।
बता दें कि एनसीईआरटी राजनीति विज्ञान की 12वीं कक्षा की संशोधित पाठ्यपुस्तक से जुड़े विवाद एक बार फिर चर्चा में हैं क्योंकि इसमें बाबरी मस्जिद का उल्लेख तीन-गुंबद वाले ढांचे के तौर पर किया गया है।टेक्स्ट बुक्स से हाल ही में हटाई गई सामग्री में शामिल हैं- गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक भारतीय जनता पार्टी (BJP) की रथ यात्रा, कार सेवकों की भूमिका, बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के मद्देनजर सांप्रदयिक हिंसा, बीजेपी शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन और अयोध्या में जो कुछ हुआ उस पर बीजेपी का खेद जताना।