नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इल्तिजा मुफ्ती की उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें उन्होंने अपनी मां और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की पीएसए के तहत हिरासत को चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि महबूबा मुफ्ती को एक साल के बाद भी बंदी बनाकर रखा जा सकता है? एक तरीके से सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही इस सवाल का जबाव देते हुए कहा कि मुफ्ती को हमेशा के लिए हिरासत में नहीं रखा जा सकता। मुफ्ती को पिछले साल अनुच्छेद 370 हटाए जाने के एक दिन पहले हिरासत में लिया गया था। 

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर इल्तिजा मुफ्ती ने ट्वीट करते हुए कहा कि उनकी मां की हिरासत के मामले को जानबूझकर आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि गैरकानूनी तरीके से धारा 370 को हटाए जाने का मामला एक साल से लंबित है, इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता सिर्फ हताश महसूस करने के। इल्तिजा ने आगे कहा कि हालांकि वे अपनी मां की रिहाई के लिए लड़ती रहेंगी। 

इल्तिजा ने गुपकर घोषणापत्र के लिए संघर्ष करने का संकल्प लेने वाली राजनीतिक पार्टियों से अपील की कि वे आगे के कदम की तैयारी करें। 

इल्तिजा मुफ्ती ने कहा कि हमें लेह के लोगों से सीख लेनी चाहिए कि कैसे कोर्ट पर आश्रित होने की जगह उन्होंने खुद को संगठित किया। मुफ्ती ने कहा कि गृह मंत्री को लेह के प्रतिनिधिमंडल को तुरंत बैठक के लए बुलाना पड़ा। इसमें जरा सी भी गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि हमारे विशेषाधिकार और सम्मान की लड़ाई पूरी तरह से राजनीतिक है। 

इल्तिजा ने अपनी नई याचिका में पुरानी याचिका को हेबियस कॉर्पस याचिका बनाने का अनुरोध किया। जिसमें 6 फरवरी और 5 मई को पीएसए के तहत उनकी मां की गिरफ्तारी की अवधि बढ़ाए जाने का विरोध किया गया। इस याचिका में महबूबा मुफ्ती की हिरासत को कई पहलुओं पर चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती को जिन आधार पर हिरासत में लिया गया है, वे बहुत ही अस्पष्ट, कमजोर, दुर्भावना से प्रेरित और पीएसए की धाराओं 8 (3) ए और बी का उल्लंघन करने वाले हैं। कहा गया कि महबूबा मुफ्ती पर बेमतलब के आरोप लगाए गए हैं। 

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हेबियस कॉर्पस याचिका संविधान द्वारा दिया गया एक ऐसा अधिकार है दो सरकारों द्वारा गैरकानूनी गिरफ्तारी को चुनौती देता है। हेबियस कॉर्पस याचिका के बाद प्रशासन को हिरासत में लिए गए या बंदी बनाए गए व्यक्ति को कोर्ट में पेश करना होता है, जहां यह तय किया जाता है कि हिरासत कानूनी है या गैर कानूनी। यह एक तरीके से नागरिकों को राज्य की मनमानी के खिलाफ मिला हथियार है।