नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अब चाइल्ड पोर्न डाउनलोड करना और देखना भी पॉस्‍को (POCSO) के तहत अपराध माना जाएगा। ऐसा करना पॉस्‍को और IT अधिनियम के तहत अब अपराध की श्रेणी में आएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्‍द के इस्‍तेमाल से भी बचने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी की जगह 'चाइल्ड सेक्शुअल एक्सप्लॉइटेटिव एंड एब्यूसिव मटेरियल' (बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री) शब्द का इस्तेमाल किया जाए। अदालतें भी इस शब्‍द का इस्‍तेमाल न करें।

सर्वोच्‍च अदालत ने इस मामले में केरल और मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया है। केरल हाइकोर्ट ने कहा था कि पोर्न देखना व्‍यक्ति की निजी पसंद हो सकती है। इसे अपराध नहीं ठहराया जा सकता। वहीं मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि फोन में चाइल्‍ड पोर्न डाउनलोड करना अपराध नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि इसमें सजा देने की बजाय एजुकेट करने की जरूरत है।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत ने अपने फैसले में गंभीर गलती की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों के खिलाफ अपराध सिर्फ यौन शोषण तक ही सीमित नहीं रहते हैं। उनके वीडियो, फोटोग्राफ और रिकॉर्डिंग के जरिए ये शोषण आगे भी चलता है। ये कंटेंट साइबर स्पेस में मौजूद रहते हैं, आसानी से किसी को भी मिल जाते हैं। ऐसे मटेरियल अनिश्चितकाल तक नुकसान पहुंचाते हैं। ये यौन शोषण पर ही खत्म नहीं होता है, जब-जब ये कंटेंट शेयर किया जाता है और देखा जाता है, तब-तब बच्चे की मर्यादा और अधिकारों का उल्लंघन होता है। हमें एक समाज के तौर पर गंभीरता से इस विषय पर विचार करना होगा।