- डॉ. आशीष मित्तल
(पूर्व रेज़िडेन्ट डॉक्टर, सामुदियक चिकित्सा विभाग, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली वर्तमान मेेेेें अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के महासचिव हैं।)

कोरोना महामारी का मुकाबले कैसे नहीं करना चाहिए यह मोदी सरकार से सीखना चा‍हिए। (अगर समस्या का एकमात्र समाधान हथौड़ी हो, तो आपको हर वस्तु कील नजर आएगी)

शुरुआत में कुछ तथ्य:
क) कोरोना का पहला सवंमित चीन के वुहान शहर में 17 नवम्बर 2019 को पाया गया था। दुनिया के सभी देशों को इस वायरस का जीनोम (वंशानुगत सूत्र) भेज कर चीन ने अच्छा किया, ताकि वे इसकी जांच व रोकथाम की तैयारी कर सकें।

ख) कोरोना यूरोप व अमेरिका तथा जापान, इरान व दक्षिण कोरिया में जल्द ही फैल गया पर यह मकर रेखा के नीचे वाले देशों में कम फैला है। इसके कारण समय के साथ सामने आएंगे। पर यह स्पष्ट है अमेरिका और यूरोप का वुहान के साथ करीबी व्यापार सम्बन्ध वहां जल्द फैलने का मुख्य कारण रहा है। यह भी स्पष्ट है अफ्रीका, लतिन अमेरिका व भारत में इसके तेजी से ना फैलने में वहा की गई बेहतर स्क्रीनिंग, सम्पर्कों का बेहतर ख्याल, लोगों का बेहतर स्वास्थ्य जिम्मेदार कतई नहीं था।

ग) चीन ने कोरोना पर काबू पाने के लिए पहले वुहान शहर सील किया और फिर जिस प्रान्त में ये है, हूबी, उसे सील कर दिया और साथ में शेष सारे देश के लोगों को इसके रोकथाम में सक्रिय किया। बन्द फैक्ट्रियों में उत्पादन बदलकर वहां मास्क सिलवाए गये, सैनेटाइज़र बनवाया गया, रेस्पिरेटर व अन्य चिकित्सकीय सामग्री बड़े पैमाने पर निर्मित की गई और इसका दूर-दराज तक वितरण कराया गया। दक्षिण कोरिया में बचाव के लिए बड़े पैमाने पर लोगों की स्क्रीनिंग की गयी, खून का परीक्षण हुआ और संक्रमित रोगियों व उनके संपर्कों को एकांतवास में डालकर आम लोगों के बीच अन्य कदम उठाए गये। जापान में जब से पहले सवंमित का पता चला, विदेश से आने वाले हर संदिग्ध व्यक्ति को एकान्तवास मे डाल दिया गया।

घ) भारत में शुरु के दो महीने, 5 मार्च तक मोदी सरकार इंकार के दौर में रही और उसके मंत्रियों ने इस समस्या की गम्भीरता का मजाक तक उड़ाया। शुरु में ही उसे पर्यटकों पर रोक लगा देनी चाहिए थी, जो इस वायरस के संक्रमण के एकमात्र संवाहक हैं। उसने विदेश से आने वाले सभी लोगों की स्क्रीनिंग व परीक्षण नहीं कराया। उसने देश के सभी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर आगन्तुकों के लिए जांच की व एकांतवास की सुविधाएं नहीं स्थापित कीं। यह मानना ठीक होगा कि सरकार को इस घातक वायरस की गम्भीरता के बारे में और यह तथ्य कि यह अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटकों के द्वारा ही फैलता है, जिनमें से ज्यादातर उच्च वर्ग के व बड़े अफसर होते हैं, जो ज्यादातर अनुशासित किए जाने के प्रयासों का विरोध करते हैं, काफी पहले से जानकारी थी। सरकार के लापरवाही भरे रवैये का कारण यह भी हो सकता है। डब्ल्यू.एच.ओ. ने दिसम्बर में इस बीमारी की गम्भीरता के बारे में चेतावनी दे दी थी।

ङ) भारत में इस बीमारी के रोकथाम के लिए सरकार की गम्भीरता केवल तब जगी जब कई पर्यटक और वीआईपी बीमार पाए गये और परीक्षण में उनके खून में कोरोना पकड़ा गया। तब सरकार तुरंत लाॅकडाउन, कफ्र्यू की घोषणाएं करने लगी, जिसमें इस कीटाणु के संक्रमण के बाद लोगों के बड़ी संख्या में मरने के प्रचार से एक भय का माहौल बनने लगा और सरकार ने लोगों पर बात न मानने और अनुशासनहीनता का दोष लगाना शुरु कर दिया। प्रधानमंत्री ने खुद कहा कि अगर जनता कफ्र्यू नहीं अमल करेगी तो इसे हम पुलिस द्वारा अमल कराएंगे। इस ‘स्वास्थ्य’ सम्बन्धी भय के रोकथाम में पुलिस सबसे ज्यादा सक्रिय है, डाक्टर,, स्वास्थ्यकर्मी और खाद्य विभाग के अफसर नहीं।

च) ध्यान से गौर करें, जितने ज्यादा वीआईपी रोकथाम की हिदायतों का पालन न करते पकड़े गये, उतनी ही सख्ती आम लोगों पर लादी जाती रही है, तब भी, जब अब तक वे इसके संक्रमण के लिए बिल्कुल जिम्मेदार नहीं हैं। संसद के बारे में घोषणा की गयी कि उसे चलता हुआ दिखना चाहिए और 24 मार्च तक वह चली, वीआईपी लोगों के समारोह जारी हैं, बड़े होटल काम कर रहे हैं और पार्टियां हो रही हैं, राष्ट्रपति खुद प्रातः भोज के लिए अतिथियों को बुला रहे हैं, मध्यप्रदेश में नए मंत्रीमंडल ने शपथ ली और रामलला की पूजा 25 मार्च तक चली जिसमें मुख्यमंत्री ने खुद भाग लिया - सब बिना मास्क के और बिना सामाजिक दूरी बनाए हुए। 

पर आम लोगों के लिए सब बंद है, फैक्ट्री, दुकाने, अस्पताल (लगभग सब बंद हैं), यातायात, रेलगाड़ी, घरों से बाहर निकलने पर पुलिस बेरहमी से लाठी चला रही है, वाहन सीज़ कर रही है और एफआईआर दर्ज करके लोगों को घर के अंदर ढकेल दे रही है। जब रेलगाड़ियों में भीड़ बढ़ने की शिकायत आने लगी तो उनकी संख्या बढ़ाने की जगह, उन्हें पूरी तरह रोक दिया गया।
छ) गांव में लोग काम के न होने, आमदनी न होने, दुकाने व अन्य सुविधाएं न होने से काफी भयभीत हैं। सबसे बुरा हाल बड़े महानगरों में रहने वाले करोड़ो प्रवासी मजदूरों का है, जो वहां से बाहर निकलकर दूर-दराज अपने गांव पहुंचने के प्रयास में हैं ताकि वे अपनी नई बेरोजगारी, गंदगी से ग्रसित और भीड़-भाड़ वाली झुग्गियों से मुक्ति पाएं, परदेस में इस फैलती हुई भयानक बीमारी व मौत के भय से मुक्त होकर घर पहँच जाएं। ये झुग्गियां कोरोना के संक्रमण के लिए सबसे खतरनाक स्थान हैं, हालांकि इनमें रहने वाले लोग इस विशेष खतरे से उतने ही महरूम हैं, जितना कि कोरोना के संक्रमण से। यह सच है कि ये झुग्गियां ही कोरोना के फैलाव के तीसरे दौर में, सामुदायिक संक्रमण की स्थिति में पहँुचने के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं और इसके बाद यह इन्हीं क्षेत्रों में स्थानिक रूप भी धारण कर सकती है (विशेष क्षेत्र में बीमारी का बना रहना)। 

और फिर जेलों में भीड़ है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने औपचारिकता पूरी करते हुए उनकी आबादी कम करने को कहा है, पर न तो उसकी कोई तिथि तय की और न ही यह कहा कि छोटे अपराध्सें में गिाफ्तारियां बन्द करो। गिरफ्तारियां जारी हैं। जेलों में तो संक्रमण बाहर से ही जाएगा। यदि छोटे अपराधों में बंद कैदियों को छोड़ दिया जाता तो यह निकलने वालों और अंदर बचे कैदियों, दोनो के लिए बहतर होता।
वैसे हवाई जहाजों को सबसे आखीर में शॅटडाउन किया गया है और निजी वाहनों को अब भी शटडाउन नहीं किया गया है।

ज) कागजों में दर्ज है कि खाना और स्वास्थ्य की सुविधाएं आपात सेवा के रूप में खुली रहेंगी और मजदूरों को पूरे माह का खर्च चलाने के लिए 1000 रुपये के पेमेन्ट की बात है। सरकार को घर तक आपूर्ति करनी है पर इसके लिए कोई ढांचा तैयार नहीं है। इस तरह के रोकथाम से दुकानों में आपूर्ति के सभी रास्ते बंद हो जाएंगे और निश्चित तौर पर कमी बढ़ेगी और भय बढ़ेगा। जैसा कि इकोनोमिक टाईम्स की एक रिपोर्ट में लिखा है ”ई-व्यापार सेवा द्वारा 20 से 22 मार्च के बीच 35 फीसदी उपभोक्ता सामान नहीं प्राप्त कर पाए और 23-24 मार्च को ये 79 फीसदी हो गये।“ इसी तरह दुकानों से आवश्यक वस्तुओं की खरीद में 17 फीसदी लोगों को 20 से 22 मार्च तक निराश होना पड़ा और 23-24 मार्च के बीच 32 फीसदी को। दिल्ली-नोएडा सीमा पर वाहनों की भीड़ लग गई, क्योंकि उन्हें रोका जा रहा था। 

हम एक अभूतपूर्व गम्भीर दौर से गुजर रहे हैं और इसी तरह से लोगों को वंचित किया गया तो लोग अपनी खाने और इलाज की वास्तविक जरूरतों की पूर्ति के लिए बेचैन हो जाएंगे और उनकी आवश्यकता से प्रेरित उनके गुस्से का विस्फोट, कोरोना से बचने और पुलिस की हथौड़ी की मार पर भारी पड़ेगा।

झ) इस वायरस के रोकथाम के कुछ विशिष्ट पहलुओं और चिकित्सकीय हिदायतें पर गौर करना जरूरी है। यह ड्राॅपलेट (छोटी बूंद) संक्रमण से फैलता है, वायु से नहीं। इसका अर्थ है कि जो मरीज या संवाहक छींक के द्वारा इसे वायु में पहँुचाता है वे छींक की बूंदें ही किसी दूसरे को बीमार कर सकती हैं। ये छींक की बूंदे अधिकतम 1 मीटर दूर तक फैलती हैं और वायु में यह वायरस 2 से 3 घंटे तक ही जीवित रहता है। इन बंूदों से बचने के लिए सबसे अच्छा स्थान खुली हवा है, क्योंकि खुली हवा में ये जल्दी से बह जाती हैं और खुली हवा में वायरस का घनत्व भी कम होता जाता है। ये बूंदे हाथ से, मोबाइल फोन से व अन्य वस्तुओं पर चिपक कर भी फैल सकती हैं, जिनपर ये वायरस 1 - 2 दिन तक जीवित रहता है। 

एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि लोगों को इस वासरस से सवंमित होने के प्रति इतना नहीं डरना चाहिए कि एक भी अगर शरीर में पहँुच गया तो वे बीमार हो जाएंगे, क्योंकि इसकी बीमारी पैदा करने की क्षमता इस बात पर निर्भर है कि यह कितने घनत्व/संख्या में शरीर में प्रवेश करता है। कम संख्या में प्रवेश करेगा तो शरीर इसका मुकाबला कर लेता है। यह वायरस उन बीमार लोगों में ज्यादा मार करता है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है और डायबिटीज़ में, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, दमा तथा सभी वृद्ध लोगों में। 
सबसे महत्वपूर्ण पहलू है कि सभी वायरल संक्रमणों में व्यक्ति के स्वस्थ व पोषित होने का बड़ा महत्व है, पौष्टिक आहार, रोकथाम की प्राकृतिक क्षमता विकसित करता है। 

इसकी रोकथाम में निम्न कदम उठाए जाने जरूरी हैं:
1) शारीरिक दूरी बनाए रखना, यानी आम लोगों का एक दूसरे से 1 मीटर दूर रहना और मरीज/ संदिग्ध व्यक्ति से 2 मीटर दूरी। 
2) सभी लोगों द्वारा मास्क का प्रयोग।
3) सभी लोगों द्वारा अपने घर पहँुचते ही और खाना खाने से पहले साबुन से 20 सेकेन्ड तक रगड़कर हाथ धोना। 
4) सभी संभावित मरीजों को एकांतवास में रखना और वृद्धों को घरों के अंदर रखना।
5) एक कमरे के घरों में तथा जेलों में भीड़ कम करना।
6) पूरे समुदाय में लोगों के पोषण को दुरुस्त रखना और
7) स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करना।
 

इस महामारी की योजना बनाते वक्त निम्न बिन्दुओं का ख्याल रखना जरूरी है:
1) लम्बी अवधि तक यह कदम उठाए जाने जरूरी हो सकते हैं, सम्भव है कुछ महीनों तक।
2) पूरे समाज को शामिल करके, न केवल प्रबुद्ध लोगों को, इसकी योजना बनाई जानी चाहिए थी ताकि आम लोग इसे स्वीकार कर सकें और इसके अमल में योगदान भी कर सकें। 
3) ज्यादातर लोग घनी बस्तियों और छोटे घरों में रहते हैं। 
4) जब आम जीवन को शटडाउन कर दिया जाता है, तब हर रोजमर्रा की जरूरतों, खाना, दवा, पानी, मृत्यु में, आपात सेवाओं की व्यवस्था करनी जरूरी है।


निम्न निवारक कदम उठाए जाने चाहियेः
1. स्थिति की गम्भीरता का पूर्वानुमान लगाते हुए विदेशों से आए पर्यटकों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए था और आने वाले सभी लोगों का परीक्षण व एकांतवास की व्यवस्था फरवरी से ही, जब से वायरस यूरोप में फैला, की जानी चाहिए थी।


2. झुग्गी बस्तियों और जेलों में भीड़ कम करनी चाहिए। महानगरों में रहने वाले प्रवासी मजदूरों को घर पहँुचने के लिए ट्रेन की सुविधा देनी चाहिए और डिब्बों में कम संख्या में लोगों को बैठाना चाहिए। घनी बस्तियों के लोगों को खाली पड़ी बिल्डिगों व निर्माणाधीन इमारतों में अस्थायी रूप से भेज देना चाहिए। बीमार व वृद्धों को घरों में रहने की हिदायत देनी चाहिए। इस दौर में समाज की सारी जरूरतों को पूरा करने के लिए युवाओं को गोलबंद व सक्रिय करना चाहिए। आपात स्थितियों के लिए लोगों को परिवहन की सुविधा मुफ्त में देनी चाहिये।


3. सभी गरीबों को अधिक प्रोटीन वाले खाद्यान्न, अंडे, मीट, दाल और अतिरिक्त पैसा देकर उनके पौष्टिक आहार की गारंटी करनी चाहिए। ईंधन और पानी की व्यवस्था बस्तियों में करनी चाहिये। खेतों से खाने की समग्री और गोदामों से सामान प्राप्त कर लोगों तक पहुंचाने की व्यवस्थित करनी चाहिए। इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और सहयोग भी।


4. मास्क, साबुन व सैनेटाइज़र के उत्पादन के हर ब्लाक/गांव में उत्पादन के लिए ग्राम समितियों को सक्रिय करके आपत कदम उठाए जाने चाहिए। गांव के युवाओं को हर घर में इनके वितरण के लिए, हर व्यक्ति को दो मास्क और हर घर को साबुन व सैनेटाइज़र देने व घर के सभी लोगों को हाथ धोने व दूर रहने का प्रशिक्षण देना चाहिए। इन सबके उत्पादन व आपूर्ति की टीमें युद्धस्तर पर विकसित करनी चाहिए और इसमें शारीरिक दूरी तथा सामाजिक सहभागिता को बढ़ाना चाहिये।


5. अगर सामुदायिक फैलाव बढ़ गया, ये सारे कदम महीनों तक अमल करने जरूरी हो जाएंगे और बहुत सारे अस्पताल व चिकित्सकीय सुविधाओं की जरूरत होगी। अगर सरकार गम्भीर है तो उसे गांव व बस्ती के बंद स्कूल में अल्पकालिक अस्पताल बना देना चाहिए, जिनमें सुविधाएं देनी चाहिए और इसके लायक लोगों को प्रशिक्षित करना चाहिए।


क्या नहीं करना चाहिए:
1. यह बंदी जनता को लम्बी अवधि की बंदी के लिए तैयार किये बिना की गयी है। यह सरकार की बौखलाहट प्रदर्शित करती है, जिस सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाए हों और अब उसे पता नहीं है कि क्या करे। वह अभी से डर फैला रही है जो ‘अज्ञानता’ के भय के रूप में और बढ़ रहा है। जिस जनमानस के पास कम सुविधाएं और साधन हैं और अब उनका रोजगार भी छिन गया और वे घर भी नहीं पहँुच पा रहे, उनमें भय बहुत ज्यादा है। अधिकार भी, जिनमें पुलिस वाले भी शामिल हैं, लोगों को घरों में ढकेलने के अलावा भयभीत ढंग से अपने हाथों पर अल्कोहल मल रहे हैं और पूजा कर रहे हैं। ऊपर बताये गये तरीकों को अपनाकर आसानी से अधिकारी व आम लोगों को इस संघर्ष के लिए प्रेरित व गोलबंद किया जा सकता था और अब भी किया जाना चाहिए।

2. सरकार ने अपनी राजनीतिक योजना के अनुसार 22 जून शाम 5 बजे थाली पीटने व शंख बजाने के लिए निर्देश दिया जो उसका सामाजिक गोलबंदी का अभियान था। यह मूल रूप से लोगों को ‘वायरस का भूत’ भगाने का एक मध्ययुगीन कदम था। बाबा रामदेव ने दिन में दो बाद सूर्य नमस्कार करने को कहा। कुछ आरएसएस के लोग गौमूत्र व शाकाहारी भोजन की भी वकालत की। ये सभी कदम सरकार की विफलता के असली कारण से लोगों का ध्यान बांटने के लिए उठाए जा रहे हैं। सरकार अब भी रोकथाम के लिए उचित कदम उठाने, लोगों की पौष्टिक व चिकित्सकीय देखभाल करने के लिए तैयार नहीं है। जैसे-जैसे संकट बढ़ेगा वैसे-वैसे वह पिछड़ेपन के प्रचार के अपने कदमों को और बढ़ावा देगी और साथ में पुलिस दमन को भी। आखिरकार जब सरकार के पास समाधान के लिए केवल हथौड़ा ही है तो उसे जनता भी कील ही नजर आएगी, जिसे ठोकना जरूरी है।