भारत में इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में त्रिपुरा के अगरतला में देश के पहले बांस गांव की स्थापना की गई है। इसका उद्देश्य बांस उद्योगों को बढ़ावा देना, लोगों को प्रकृति के करीब लाना है। ताकि इकोपर्यटन को बढ़ावा मिल सके। इस बांस गांव की स्थापना बांस वास्तुकार और एक्सपर्ट मन्ना रॉय के नेतृत्व में की गई है। यह 9 एकड़ बंजर भूमि पर बनाया गया है। यह भारत-बांग्लादेश बार्डर पर पश्चिमी त्रिपुरा के कटलामारा में स्थापित किया गया है। बांस ग्राम देशी, विदेशियों पर्यटकों और पर्यावरणविदों के आकर्षण का केंद्र है।
यहां आने वाले सैलानी फैमिली और फ्रेंड्स के साथ लंच और डिनर का आनंद लेने पहुंचते हैं। कोरोना काल के बाद अब इसे लोगों का अच्छा रिएक्शन मिल रहा है। यहां पर बांस के कॉटेज में रहना अपने आप में अनोखा अनुभव है। वहीं बीच में बना डोम और बांस के पेड़ों के बीच से लकड़ी के रास्तों पर सुबह की सैर किसी सपने जैसा फील देता है। यहां हर वस्तु इको फ्रेंडली है। बांस गांव को 2017 से विकसित किया जा रहा है। इस बांस ग्राम में बांस की 14 से अधिक प्रजातियां मौजूद हैं। वहीं बहुत सी अन्य प्राकृतिक वनस्पतिक जड़ी-बूटियाँ, पेड़, फल-फूल इसे एक प्राकृतिक निवास स्थान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
इस बांस ग्राम में बांस से बने खाद्य पदार्थों को भी जगह दी गई है। बांस के बने आइटम्स बेदह स्वादिष्ट होते हैं। जो कि पूर्वोत्तर में काफी पसंद किए जाते हैं। त्रिपुरा औद्योगिक विकास निगम (टीआईडीसी) के अधिकारियों के अनुसार यहा बांस टाइल्स, बांस के बोर्ड, बांस से बने फर्नीचर, और बांस के डिवाइडर भी स्थापित किए गए हैं। यहां स्थित घरेलू डिजाइन सामग्री बेहद आकर्षक है।