मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुआई में पचमढ़ी में कैबिनेट बैठक सम्पन्न हुई। बैठक में लाड़ली लक्ष्मी योजना, कन्यादान योजना, तीर्थदर्शन यात्रा सहित तमाम योजनाओं को लेकर फैसले हुए। ये वही योजनाएं हैं, जिनका बखानकर बीजेपी सत्ता में आई है। अब इन्हीं को चमकाने का निर्णय हुआ है। बैठक में शिवराज सिंह की पसंदीदा योजनाओें की प्रशंसा का ऐसा खाका खींचा गया कि मंत्री उन योजनाओं का ही गुणगान करते नजर आए। असहमति या नवाचार की गुंजाइश थी ही नहीं।
चर्चा है कि कैबिनेट का यह परिणाम पहले ही तय था तो क्या सिर्फ मंत्रियों की सहमति की मुहर लगवाने के लिए पचमढ़ी का शो प्लान नहीं किया गया था? नहीं। पचमढ़ी शो हुआ मध्यप्रदेश में लेकिन संदेश दिल्ली के लिए है। यह संदेश कि गुटों में बंटी मध्य प्रदेश बीजेपी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही समन्वयकारी नेता है। वही अगले चुनाव का चेहरा भी हैं।
मध्य प्रदेश में बार-बार नेतृत्व परिवर्तन के कयास लगाए जाते रहे हैं। मैदानी स्तर पर कार्यकर्ताओं की सरकार से नाराज़गी को भी सीधे मुख्यमंत्री के प्रति असंतोष से जोड़ कर देखा जाता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद मुख्यमंत्री चौहान की मुसीबत और बढ़ गई है। इसलिए मुख्यमंत्री बार बार यह संकेत देने का प्रयत्न करते रहते हैं कि मध्य प्रदेश में वे ही समन्वय का चेहरा हैं। पचमढ़ी शो में भी यही हुआ।
भोपाल से पचमढ़ी जाते समय शिवराज सिंह के पास वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव को बैठाया गया तो आगे की पंक्ति में ही गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और जलसंसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट बैठे थे। सिलावट मध्य प्रदेश सरकार में सिंधिया खेमे के प्रतिनिधि हैं। दूसरी तरफ, गोपाल भार्गव सरकार व पार्टी में स्वयं को कम तवज्जो मिलने से नाराज चल रहे हैं। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के समर्थक सरकार में उनके नंबर दो की पोजिशन से ऊपर जाने की जुगत का दावा बार बार करते ही रहते हैं। इसतरह पहली तीन सीटों पर इन तीन नेताओं को बैठाकर मुख्यमंत्री ने संदेश देने की कोशिश की है कि वे सबको एक साथ लेकर चल सकते हैं। बैठक में भी मंत्रियों ने सीएम के मन-मुताबिक वाहवाही ही की। जब दो दिन बाद सरकार भोपाल लौटी तो मुख्यमंत्री का जयकारा था और मंत्रियों के असहमति के स्वर मद्धिम पड़ गए थे।
बदल गए कैलाश विजयवर्गीय के सुर
शिवराज सिंह चौहान केवल अप्रत्यक्ष रूप से ही यह संदेश नहीं दे रहे हैं बल्कि राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी भोपाल में यही कहकर गए कि मध्य प्रदेश में 2023 का चुनाव शिवराज सिंह के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। सर्वविदित है कि कैलाश विजयवर्गीय और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संबंध धूप-छांव जैसे रहे हैं। कभी वे इतने निकट थे कि उनकी दोस्ती की मिसालें दी जाती हैं। फिर संबंधों में ऐसी कटुता आई कि रिश्ते की खटास सार्वजनिक रूप से दिखाई दी।
मध्य प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के रूप में कैलाश विजयवर्गीय का नाम हमेशा चर्चा में रहता है। प्रदेश में नेतृत्व के सवाल को कैलाश विजयवर्गीय हमेशा पार्टी की नीति का हवाला देकर टाल दिया करते हैं मगर इस हफ्ते जब वे भोपाल आए तो उनके सुर बदले हुए थे। साफ कह कर गए कि अगला चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। अब विरोधी इस उम्मीद में हैं कि 2023 के बाद शायद मुखिया बदल जाए। उमा भारती के हश्र के बाद अन्य नेताओं के सुर भी बदल जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं।
असंतुष्टों के अच्छे दिन अभी नहीं ...
पचमढ़ी शो के जरिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने न सिर्फ अपने विरोधियों को किनारे किया बल्कि बीजेपी में असंतुष्टों को भी चुप करने का संदेश दिया है। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक नेताओं को अधिक तवज्जो मिलने से बीजेपी में कई नेता हाशिए पर चले गए हैं। जो नेता कभी पार्टी का चेहरा होते थे वे आजकल पार्टी के कार्यक्रमों में भी दिखाई नहीं देते हैं। कुछ समय तो वे चुप रहे कि नए नए पार्टी में आए नेता थोड़े पुराने होंगे तो उन्हें तवज्जो मिलनी कम हो जाएगी। उन्होंने इस तर्क को भी मान लिया कि जिनके कारण सरकार बनी है उनका ज्यादा ध्यान रखना पड़ेगा।
असंतुष्ट नेता इस उम्मीद में चुप रहे कि उनके भी अच्छे दिन आएंगे। मगर अब बीजेपी में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति हो गई है। नेताओं में अच्छे दिन पाने के लिए घमासान है। खासकर राज्यसभा के रथ पर चढ़कर अच्छे दिन की आस में अनेकों उम्मीद से हैं। मध्य प्रदेश में राज्यसभा की तीन सीटें 22 अप्रैल को रिक्त होने जा रही हैं। इन तीन सीटों में से दो बीजेपी और एक कांग्रेस के कब्जे में है। यही स्थिति चुनाव में भी बनेगी। बीजेपी की इन दो सीटों के लिए दावेदारों की भीड़ है। उसपर से यदि एक सीट किसी बाहरी उम्मीदवार को देने का निर्णय हुआ तो मुकाबला और कड़ा हो जाएगा। अब दूसरी, तीसरी, चौथी पंक्ति के नेता यही सोचकर संतोष कर रहे हैं कि अपनी सरकार रहे और अपने काम होते रहें तो ही ठीक। पहले क्रम के नेताओं को तो मार्गदर्शक मंडल में बैठना ही है। हालांकि, अब मार्गदर्शक मंडल में भी जगह के लिए मारामारी है।
राज्यसभा की एक सीट कांग्रेस के खाते में आना है। कांग्रेस की रिक्त हो रही सीट से अभी विवेक तन्खा सांसद हैं। तन्खा कांग्रेस के G23 ग्रुप में शामिल नेता हैं। ऐसे में जानकार उन्हें दोबारा टिकट को चुनौती मान रहे हैं। मालवा और विंध्य के दिग्गज नेता अरुण यादव और अजय सिंह की दिल्ली में सक्रियता से कयास लगाए गए हैं कि उन्हें राज्यसभा में भेजा जा सकता है। दोनों ही दल आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जातीय समीकरणों को साधते हुए टिकट की घोषणा कर सकते हैं।
राजनीतिक प्रयोगशाला में नया प्रयोग
सागर के एक कॉलेज में मुस्लिम युवती द्वारा नमाज पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद प्रदेश की राजनीति में नई आवाजें मुखर हो गई हैं। उत्तराखंड सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया गया है। अब मध्य प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग हो गई है। राज्यसभा सांसद अजय प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इसबारे में पत्र लिखा है।
मध्य प्रदेश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के लिए एक राजनीतिक प्रयोगशाला रहा है। यहां कई तरह के प्रयोग को टेस्ट कर देखा जाता है कि जनता कि क्या प्रतिक्रिया होती है। इस प्रतिक्रिया के अनुसार प्रयोग का भविष्य तय होता है। जैसे हांडी का एक दाना देख कर अंदाजा लगाते हैं कि चावल पके या नहीं वैसे ही समान नागरिक संहिता का मामला भी है। इस एक पत्र पर हुई प्रतिक्रिया से अंदाजा लगाया जाएगा कि समान नागरिक संहिता पर कितनी सहमति बनी है। अगर विरोध नहीं हुआ तो आगे बढ़ेंगे अन्यथा यह एक नेता की मांग बन कर रह जाएगा। पार्टी इस मांग पर ध्यान देगी ही नहीं।