मध्य प्रदेश के पूर्व और बीजेपी के सबसे वरिष्ठ विधायक मंत्री गोपाल भार्गव अपनी साफगोई के लिए जाने जाते हैं। महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को लेकर मचे बवाल के बीच गोपाल भार्गव का बयान बहुत महत्व का है। गोपाल भार्गव ने मीडिया से चर्चा में कहा कि "औरंगजेब की कब्र खुदने जैसे विषय निरर्थक हैं। जिनका कोई अर्थ नहीं। उन्होंने कहा कि ऐसे मुद्दों पर सारी बयानबाजी चाहे फिर वो किसी भी तरफ से हो। इसका देश के विकास से कोई लेना देना नहीं है।"
यूं तो कहा जा सकता है कि सबसे वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव ने अपनी पार्टी लाइन से अलग हटकर बयान दिया है। हिंदू संगठनों इस बयान के लिए उनकी तीखी आलोचना कर सकते हैं लेकिन गोपाल भार्गव ऐसे अकेले नेता नहीं है जिनकी औरंगजेब के मुद्दे पर पार्टी की अलग राय है। गोपाल भार्गव जैसे कई नेता हैं जो मानते हैं कि ऐसे विषयों पर विवाद गैर जरूरी है। मगर खुलकर बोलने का साहस भार्गव ही दिखा पाते हैं। गोपाल भार्गव ने इस बयान को देकर उन सभी बीजेपी नेताओं की विचार को आवाज दी है जो चाहते हैं कि ऐसे निरर्थक विषय पर विवाद से देश का भला नहीं होने वाला है। गोपाल भार्गव से दबे स्वर में कही जा रही राय को खुल कर कह दिया है। इसलिए उनका कहा खास महत्व रखता है।
बीजेपी सरकार में भ्रष्टाचार पौ बारह, जांच तो करो सरकार
अब यह कहने का भी कोई अर्थ नहीं है कि मुर्दों, दिव्यांगों को तो बख्श दीजिए। क्योंकि प्रदेश में भ्रष्टाचारियों ने अंत्येष्टि, दिव्यांग्यों और दुर्घटना में प्रभावित होने वाले गरीबों को दी जाने वाली सहायता राशि अपनों में रेवडि़यों की तरह बांट दी। भ्रष्टाचार के ये आरोप विपक्ष ने नहीं लगाया है बल्कि खुद मोदी सरकार की एजेंसी कैग (भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक) ने लगाए हैं। वह एजेंसी जो देश में विभिन्न विभागों के आय-व्यय का ऑडिट करती है।
कैग की ताजा रिपोर्ट विधानसभा के वर्तमान बजट सत्र में रखी गई है। कैग ने खुलासा किया है कि प्राकृतिक आपदा के पीड़ितों की मदद के लिए बनाई गई ई-भुगतान प्रणाली (आईएफएमआईएस) भी करप्शन का माध्यम बन गई है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने जांच में पाया कि प्रदेश के 13 जिलों में अफसरों ने 23.81 करोड़ रुपए अपने व उनके रिश्तेदारों के खातों में ट्रांसफर कर दिए हैं। यह राशि 2018 से 2022 के बीच प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को बांटी जानी थी। योजना के प्रभारी अफसरों ने फर्जी स्वीकृति आदेश तैयार कराए और अपने तथा रिश्तेदारों के बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर करवा लिए।
असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए लागू मुख्यमंत्री जनकल्याण (संबल) योजना में और भी कई गड़बड़ियां सामने आई हैं। संबल योजना के तहत श्रमिकों को अंत्येष्टि सहायता, सामान्य मृत्यु सहायता, दुर्घटना मृत्यु सहायता, आंशिक दिव्यांगता सहायता और स्थायी दिव्यांगता सहायता दी जाती है। 67.40 लाख श्रमिकों को अपात्र बताकर योजना से बाहर किया। सत्यापन किया गया तो उसमें 14.34 लाख के अपात्र होने का कारण भी नहीं बताया गया।
करप्शन गांवों में ही नहीं फैला है। भोपाल के वल्लभ भवन और कलेक्ट्रेट के पास 37.69 हेक्टेयर सरकारी जमीन पर झुग्गी और अवैध निर्माण से सरकार को 322.71 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि प्रशासन की लापरवाही के कारण यह नुकसान हुआ है।
मध्य प्रदेश में पिछले 22 सालों से बीजेपी की सरकार है और उमा भारती से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तक हर मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के जतन किए लेकिन ये जतन कागजी ही साबित हुए हैं। अब केंद्र की मोदी सरकार की ही एजेंसी कैग ने मध्य प्रदेश सरकार से कहा है कि वह उन जिलों में भी संबल योजना में दी गई सहायता राशि की जांच करवाए जहां कैग ने जांच नहीं की है। कैग ने मात्र 13 जिलों में जांच की है। सभी 52 जिलों में जांच हो तो साबित होगा कि संबल ने गरीबों को कम और भ्रष्टाचारियों को अधिक आर्थिक संबल दिया है। अफसरों ने यह घोटाला किया है तो इसके पीछे राजनीतिक प्रश्रय होने के आरोप भी लगते हैं। सरकार ऐसे सारे आरोपों को निर्मूल साबित करने के लिए जांच करवा कर दोषियों पर कार्रवाई करे अन्यथा तो करप्शन बढ़ेगा ही।
अकेले लोहा ले रहे भूपेंद्र सिंह अनपढ़ कहलाए
सागर में वर्चस्व के संघर्ष में अपनी ही पार्टी के नेता खाद्य मंत्री गोविंद सिंह राजपूत से उलझे पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने पार्टी के खिलाफ की कई बार मोर्चा खोला है। हर बार वे अकेले पड़े हैं। इस बार उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे के साथ विवाद में वे अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं। पहले तो दोनों नेताओं ने मीडिया में बयानबाजी की फिर विधानसभा में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हुए आमने-सामने आ गए। दोनों ने एकदूसरे को नीचा दिखाने के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग किया कि अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने बयानों को कार्यवाही से हटवा दिया। दोनों नेता बोलने में इतने नीचे स्तर पर चले गए कि अध्यक्ष को असंसदीय शब्दों के उपयोग के लिए व्यवस्था ही देनी पड़ी।
अध्यक्ष ने सदन के अंदर व्यवस्था बना दी सदन के बाहर मीडिया से बात करते हुए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल हो गया। पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने हेमंत कटारे को फर्जी उपनेता प्रतिपक्ष कहा तो जवाब में नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिह को ‘पागल’ और अनपढ़ करार दिया। पार्टी में पोजिशन बचाने के लिए उन्हें पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव का साथ तो मिला है लेकिन बयानों की लड़ाई में भूपेंद्र सिंह के पक्ष में कोई नहीं आया है। उन्हें खुद ही अपनी लड़ाई लड़नी पड़ रही है।
मोहन–रामेश्वर का रिश्ता क्या कहलाता है...
राजधानी की राजनीति में इनदिनों मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और भोपाल के हुजूर क्षेऋ से बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा के बीच बेहतर जुगलबंदी देखने को मिल रही हैं। सीएम हाउस में होली पर आयोजित कार्यक्रम का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें विधायक रामेश्वर शर्मा जबरदस्ती सीएम डॉ. मोहन यादव को रंग लगा रहे हैं और सीएम डॉ. मोहन यादव उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे हैं।
तमाम बीजेपी नेताओं की मौजूदगी के बीच रामेश्वर शर्मा का यह दोस्ताना व्यवहार नई चर्चा को जन्म दे रहा है। यह पहली बार नहीं है कि सीएम डॉ. मोहन यादव ने विधायक रामेश्वर शर्मा को तवज्जो दी है। वे रामेश्वर शर्मा के घर जाने से लेकर उनके द्वारा आयोजित तिरंगा यात्रा में भी शिरकत कर चुके हैं। दोनों नेता कट्टर हिंदुवादी हैं और अपने बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहते हैं। दोनों के बीच बढ़ रही निकटता से अंदाजा लगाया जा रहा है कि बीजेपी सरकार में रामेश्वर शर्मा का कद बढ़ रहा है।
इसी नजदीकी ने मंत्रिमंडल विस्तार और रामेश्वर शर्मा के मंत्री बनने के कयासों को भी बल दे दिया है। चर्चा है कि डॉ. मोहन यादव जल्द मंत्रिमंडल में फेरबदल करेंगे। इस बदलाव में कुछ मंत्रियों को बाहर किया जा सकता है तो कुछ के विभाग बदले जाएंगे। ऐसे में रामेश्वर शर्मा के मंत्री बनने की राह खुल सकती है लेकिन सवाल यही होगा कि क्या भोपाल से तीन मंत्री होंगे या वर्तमान में मंत्री विश्वास सारंग और कृष्णा गौर में से किसी एक का पत्ता कटेगा?