भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश का जन्मोत्सव गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जा रहा है। आज से 10 दिनों तक मंगलमूर्ति की पूजा-अर्चना की जाएगी। भगवान श्रीगणेश का पूजन चतुर्थी तिथि से चतुर्दशी तिथि तक होता है। अनंत चतुर्दशी को भगवान की प्रतिमा का विसर्जन होता है। देशभर में गणेश उत्सव पर कई कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस वर्ष कोरोना की वजह से सामूहिक पूजा और पंड़ालों पर रोक लगाई गाई है। श्रद्धालु अपने घरों पर ही विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा अर्चना विधि-विधान से कर रहें हैं।

श्रीगणेश को दूर्वा, मोदक, लड्डू है प्रिय

भगवान गणपति को दूर्वा, मोदक, लड्डू विशेष प्रिय हैं, कहा जाता है कि घर में सीधी हाथ की ओर सूंड वाले गणेश स्थापित करना चाहिए। लक्ष्मी और सरस्वती के साथ गणेश पूजा का भी विधान है। भगवान गणेश प्रथम पूज्य हैं, हर मांगलिक काम से पहले इनकी पूजा होती है। गणेश बुद्धि के देवता हैं। किसी भी कार्य के शुभारंभ से पहले श्री गणेश का पूजन करने से कार्य में बाधा नहीं आती।

गणेश जी की पूजा में नहीं होता तुलसी का प्रयोग

श्रीगणेश की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसरा माता तुलसी ने भगवान गणेश से विवाह करने की प्रार्थना की थी, लेकिन गणेशजी ने विवाह करने से मना कर दिया। जिससे तुलसी जी क्रोधित हो गईं और उन्होंने भगवान गणेश को दो विवाह होने का श्राप दे दिया।

तुलसी जी से श्राप मिलने से भगवान गणेशजी भी क्रोधित हो गए और उन्होंने भी माता तुलसी को श्राप देते हुए कहा कि उनका विवाह एक असुर से होगा। असुर से विवाह होने का श्राप सुनकर माता तुलसी दुःखी हो गईं। और तुलसीजी ने भगवान गणेश से क्षमा याचना की। तब भगवान गणेशजी ने कहा तुम्हारा विवाह असुर से होगा, लेकिन तुम हरिप्रिया रहोगी। भगवान विष्णु को प्रिय रहोगी। गणेश जी के श्राप के कारण उनके भोग में तुलसी का उपयोग नहीं किया जाता। गणेश पूजा में तुलसी वर्जित होती है।

शिवजी ने दिया प्रथम पूज्य होने का वरदान

शिव महापुराण के अनुसार भगवान शिव और गणेशजी के बीच युद्ध हुआ और गणेशजी का सिर कट गया तो माता पार्वती के कहने पर भगवान शिव ने गणेश जी के मस्तक पर हाथी का सिर जोड़ दिया था। और इसी समय भगवान शिव ने श्री गणेश को वरदान दिया कि सभी देवी-देवताओं की पूजा और हर मांगलिक काम से पहले गणेश की पूजा की होगी। इनके बिना हर पूजा और काम अधूरा माना जाएगा।

126 साल बाद बना ग्रह नक्षत्रों का विशेष संयोग

इस साल गणेश चतुर्थी पर ग्रह नक्षत्रों का विशेष संयोग बन रहा है। ज्योतिष गणना के अनुसार गणेश चतुर्थी पर 126 साल बाद सूर्य और मंगल अपनी-अपनी स्वराशि में स्थित हैं। जहां सूर्य अपनी सिंह राशि में है तो वहीं मंगल भी अपनी मेष राशि में बैठा है। दोनों ग्रहों का ये संयोग कुछ राशियों के लिए अत्यंत शुभ है।