आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। मंगलवार 19 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन से प्रगट हुई माता लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है। उनके हाथ में स्वर्ण से भरा कलश सुशोभित होता है। जिससे वे धन की वर्षा करती रहती हैं। उनका वाहन सफेद हाथी है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पूजन का भी विधान है, इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है।

चंद्रमा की किरणों से झरता है अमृत

शरद पूर्णिमा को कोजागर व्रत, कौमुदी व्रत और रास पूनम भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था। इसी दिन रासोत्सव की भी परंपरा है। कहा जाता है कि इस शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों से अमृत झरता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण और मां लक्ष्मी का अवतार राधारानी ने शरद पूर्णिमा के दिन से ही अद्भुत रासलीला की शुरुआत की थी। वहीं इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी माना जाता है। कई स्थानों पर शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है।

धन-धान्य और आरोग्य प्रदान करेंगी माता लक्ष्मी

शरद पूर्णिमा का व्रत धनधान्य और आरोग्य प्रदान करता है। मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी  धरती पर विचरण करने आती हैं, जो भक्त माता लक्ष्मी का पूजन, कीर्तन करते हैं, वहां वे सदा-सदा के लिए निवास करती हैं। मां लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। जहां उनका वास होता है वहां से दरिद्रता समाप्त हो जाती है। जीवन में शुभता आती है, वैभव की प्राप्ति होती है।

चांदनी रात में खीर रखने से मिलेगा आरोग्य

शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी चांदनी पूरी धरती पर बिखेरता है। कहा जाता है इस दिन अमृत वर्षा होती है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर बनाई गई खीर को चांदी के बर्तन में रखने से रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यदी संभव हो तो शरद पूर्णिमा की रात खीर चांदी के बर्तन में रखें और फिर इसका प्रसाद  ग्रहण करें। श्रीमद्भागवत में चन्द्रमा को औषधि का देवता कहा गया है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है, जो कि अमृत वर्षा करता है। इस दिन चावल और दूध से बनी खीर को चांदनी रात में रात भर रखा जाता है, फिर सुबह परिवार सहित इसका सेवन किया जाता है। माना जाता है कि इससे रोगों से मुक्ति मिलती है, रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

शरद पूर्णिमा का मुहूर्त

आश्विन मास की पूर्णिमा याने शरद पूर्णिमा की शुरुआत मंगलवार 19 अक्टूबर 2021 को हो रही है, जो कि 20 अक्टूबर तक रहेगी। मंगलवार शाम 7 बजे पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ होगा, जो कि 20 अक्टूबर 2021 को रात 08 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। वैसे कई जगहों पर उदया तिथि पर पर्व मनाने का विधान है, लेकिन शरद पूर्णिमा चंद्र आधारित पर्व है, अत: मंगलवार रात्रि को ही पूजन और खीर बनाकर रखने की सलाह दी जा रही है।

शरद पूर्णिमा पर कैसे मां लक्ष्मी को करें प्रसन्न

शरद पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें। पूजन के लिए लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माता लक्ष्मी का आह्वान करें। फिर चौकी पर माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें उनको आद्य, अर्ग और आचमन करवा कर स्नान करवाएं, उन्हें श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ाएं, लाल फूल, कलावा, लाल चुनरी, चूड़ी सिंदूर पहनाएं। फिर इत्र, नैवेद्य, धूप-दीप, पान-सुपारी, नारियल अर्पित करें। मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं। फिर माता लक्ष्मी की प्रार्थना करते हुए लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी जी के 108 नामों का पाठ करें। पूजन संपन्न होने के बाद हवन और आरती करें। माता लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु के पूजन और चंद्रमा को अर्घ्य देने का भी विधान है।

शरद पूर्णिमा व्रत से विवाह योग्य कन्याओं को मिलेगा मनचाहा वर

शरद पूर्णिमा पर हो सके तो व्रत रखें, अन्यथा सात्विक भोजन करें। शरद पूर्णिमा के दिन सफेद कपड़े पहनें, काला रंग इस दिन बिल्कुल ना पहने, सिल्वर या सफेद रंग के कपड़े पहनने से लाभ की प्राप्ति होगी। कहा जाता है शादी योग्य कुमारी कन्या इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करती हैं तो जल्द ही उनकी शादी में आ रही बाधाएं दूर हो जाती है। उन्हें योग्य वर की प्राप्ति होती है।