आज का मानव मन शान्ति की खोज में भटक रहा है। यह नियम है कि मनुष्य अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने दार्शनिक मान्यताओं के अनुरूप ही उपायों का आश्रय लेता है। कामना पूर्ति से शान्ति आज का जीवन दर्शन बन गया है पर यह ठीक नहीं है। एक कामना की पूर्ति से अनेक कामनाओं का उदय हो जाता है, जिनकी पूर्ति असम्भव होकर अशांति को ही जन्म देती है। जो अशांत है, वह कभी सुखी नहीं हो सकता।

अशान्तस्य कुत: सुखम्

अत: कामनाओं की समाप्ति ही सुख शांति का मूल है पर ईश्वर विमुख व्यक्ति कामनाओं से मुक्त नहीं हो सकता। इसलिए हमें अपने कामनाओं को समाप्त करने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए। तभी हमें शाश्‍वत शांति की प्राप्ति हो सकती है।