संसार में एक से बढ़कर एक खाने पीने की चीजें मौजूद हैं, लेकिन इस अजब-गजब दुनिया में किसे कब कौन सी चीज पसंद आ जाए कोई कल्पना नहीं कर सकता। अब वाराणसी की कुसमावती देवी को ही ले लीजिए उन्हें खाने में बालू पसंद है। वह भी कोई ऐसी वैसी बालू नहीं गंगा की बालू वे नियम से खाती हैं। जीवन के 75 बसंत देख चुकी कुसुमावती देवी को 15 साल की उम्र से ये अजीब सी लत लगी थी। उनका कहना है बचपन में पेट दर्द होने पर उनके गांव के वैद्य ने दूध में राख मिलाकर पीने की सलाह दी थी,  वैद्य के कहने पर वे चूल्हे से निकली राख दूध के साथ खाने लगीं। आगे चलकर उन्होंने बालू याने रेत खाना शुरू कर दिया।

उनका कहना है कि भले ही उन्हें खाने को रोटी ना मिले लेकिन वे बालू के बिना नहीं रह सकती हैं। वे रोजाना एक पाव से आधा किलो तक बालू खा लेती हैं। माता-पिता के बाद बच्चे और नाती पोते भी उनकी इस आदत को छुडवाने में नाकाम रहे। अब आलम यह है कि परिजन ही उनके लिए गंगा किनारे की बालू लाकर देते हैं, जिसे छान कर खाने योग्य बना लेती हैं। अपने बालू खाने के शौक की वजह से वे एकांत में रहना पसंद करती हैं।

कुसमावती देवी का परिवार वाराणसी के चोलापुर ब्लाक के कटारी गांव में रहता है। दो बेटे की मां और 3 बच्चों की दादी घर के युवाओं से भी ज्यादा एक्टिव हैं। वे 75 साल की उम्र में भी पोल्ट्री फार्म चलाती हैं और खेत में छोटा सा घर बनाकर रहती हैं। इनके लिए बालू लाने का काम नाती पोतों के जिम्मे है। कुसुमावती देवी गांव के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए आश्चर्य की वजह है। वे अपने इलाके में अपनी कर्मठता और निरोगी काया के लिए जानी जाती हैं।

बुजुर्ग महिला बालू खाने के पहले उसे बाक़ायदा धोती हैं, धूप में सुखाती हैं उससे कंकड़-पत्थर साफ करती हैं। जिस तहर लोगों को गुटखा तम्बाखू की तलब लगती है वैसे उन्हें बालू के लिए महसूस होता है। वे रोजाना सोने से पहले और जागने पर बालू फांकती नजर आती हैं। 

वहीं बालू खाने के इस अजीब शौक के बारे में डाक्टर्स का कहना है कि यह जानलेवा हो सकता है। बालू के पार्टिकल्स पचते नहीं हैं, इनसे कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं, लेकिन इससे उलट कुसुमावती देवी का कहना है कि अगर उन्हें बालू नहीं मिलती तो वे बीमार हो जाती है।