strong - अंजलि सिन्हा - /strong p style= text-align: justify अभी बीते सोमवार को राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने दिल्ली सरकार तथा दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया कि करोलबाग के आश्रम में बने अवैध निर्माण को ढहा दिया जाए। अधिकरण ने एक समिति गठित की थी जिसकी रिपोर्ट के मुताबिक संवेदनशील सेन्ट्रल रिज इलाके में आश्रम ने व्यापक पैमाने पर अवैध निर्माण किया है। निश्चित ही यह सारा निर्माण उपरोक्त आश्रम में रातोरात नहीं हुआ होगा और यह भी सही है बकि ऐसा भी नहीं होगा कि अधिकरण या अन्य सरकारी विभाग इससे अनभिज्ञ रहा होगा। मगर उस वक्त़ सत्तासीन लोगों के साथ उनकी नजदीकियां थीं वह विभिन्न कारणों से उन्हें प्रिय लगते थे एक दशक पहले की बात है उन दिनों राजनीतिक बियाबान में रही एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उनके अनुयायियों की लम्बी चैड़ी तादाद पहुंच जाती थी। /p p style= text-align: justify निश्चित ही अब सब बदल चुका है। आसाराम पर बलात्कार का केस दर्ज होने के बाद तथा उनके पुत्र के भी जेल की सलाखों के पीछे जाने के बाद एक के बाद एक ख़बरें आने लगीं कि उनके आश्रम में कितना अनैतिक काम होता था तथा कहां कहां उन्होंने जमीनें हथियाकर आश्रम बना डाले हैं। जैसे जांच आगे बढ़ती गयी यह सभी ब्यौरे आगे आने लगे। और किसी भी पार्टी के लिए उनके साथ नजदीकी दिखाना महंगा सौदा साबित दिखने लगा। स्पष्ट है कि जब जिस सन्त या बाबा का पोल किन्हीं कारणों से खुल जाए तो धीरे-धीरे उसकी सारी कारगुजारियां सामने आने लगती हैं वरना सभी पर परदा आसानी से पड़ा होता है। /p p style= text-align: justify पंजाब-हरियाणा एवं उत्तरी भारत के कई हिस्सों में अनुयायियों का विशाल समुदाय रखे एक अन्य सन्त को देखें - जिनके समर्थन या विरोध से कई इलाकों में प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला आज भी होता है - उनके खिलाफ एक पत्रकार की हत्या करने अपने आश्रम में अपनी अनुयायियों के साथ बलात्कार करने उन्हें धमकाने के आरोप लगे हैं विगत एक दशक से जांच चल रही है मगर बर्रे के छत्ते में कौन हाथ डालेगा ? कभी अचानक किसी बड़े काण्ड में उलझे वह दिखाई दें तो उनकी सम्पत्ति के विस्तृत विवरण मीडिया में छा सकते हैं। /p p style= text-align: justify आखिर तमाम बाबाओं-धर्मगुरूओं के पास इतना धन दौलत क्यों एकत्र होता है ? क्या वह महज भक्तों का चढ़ावा होता है या पैसा हड़पने का एक जरिया होता है। /p p style= text-align: justify इस मामले में दक्षिण की पुट्टपर्थी के सत्य साईंबाबा भी कोई अपवाद नहीं रहे हैं। /p p style= text-align: justify सत्य साईबाबा की मृत्यु के लगभग पौने दो माह बाद उनका निजी कमरा खोला गया। उनके कमरेसे 96 किलो सोनेा 307 किलो चान्दी बड़ी मात्रा में जवाहिरात तथा 11.56 करोड़ रुपये नगद मिले। तीन-तीन मशीनंे लगायी गयीं तब कहीं जाकर नोटों की गिनती पूरी हो सकी। उनकी सम्पत्ति पहले ही अनुमानतः 40 हजार करोड़ की आॅंकी गयी थी। एक सीमित मात्रा से अधिक विदेशी मुद्रा अपने पास रखने पर मुकदमा कायम होता है। मृतकों पर ऐसी कोई कार्रवाई नहीं होती। स्पष्ट है कि जीते जी अगर उनके पास एकत्रित इस अकूत सम्पत्ति का खुलासा होता तो उन पर भी मुकदमा चलता। /p p style= text-align: justify सत्यसाईंबाबा की जबभी चर्चा चलती है तो उनके द्वारा शुरू किए तमाम जनकल्याण के कामों की अवश्य चर्चा होती है। हम अन्दाज़ा ही लगा सकते हैं कि ‘यजुर मन्दिर’ जो उनका निजी कक्ष था जहां से यह सम्पत्ति बरामद हुई है वह अगर किसी रचनात्मक काम में लगी रहती तो कितने जरूरतमन्दों की मदद होती। क्या वह भी काले धन को सफेद धन कराने का काम करते थे जैसे कि कई साधुसन्त किया करते हैं। याद रहे कि कुछ साल पहले देश के अग्रणी साधु सन्तों पर किए गए एक स्टिंग आपरेशन में यह बात स्पष्टता के साथ उजागर हुई थी कि वे काले धन को सफेद धन करने में लिप्त हैं और इसे बखूबी अंजाम देने के लिए उन्होंने फर्जी ट्रस्टों का भी गठन किया है। /p p style= text-align: justify ज्ञात हो कि साईबाबा की जिन्दगी में जिन तीन विवादों में वह हमेशा घिरे रहे जिनमें उनके चमत्कारों के किस्सों की या बाल यौन अत्याचार के उन पर लगे आरोपों की बात अवश्य होती है - बीबीसी ने तो ऐसे पीडि़तों को लेकर एक डाक्युमेण्टरी भी बनायी थी और प्रदर्शित की थी - मगर सम्पत्ति से जुड़े विवाद की बहुत कम बात होती है। याद रहे कि 90 के दशक की शुरूआत में साईंबाबा के इसी यजुर मन्दिर के बाहर उनके चन्द शिष्यों एवं सिक्युरिटी के लोगों के बीच एक मुठभेड़ हुई थी। कहा गया था कि उनसे खफा उनके यह चन्द शिष्य उनकी जान लेने के इरादे से आए थे। इन शिष्यों को वहीं मार गिराया गया था। अगर आज भी उस समय की उन तस्वीरों को देखा जाए तो यह अन्दाज़ा लगता है कि मामला कुछ गड़बड़ अवश्य था। चारों लाशों के इर्दगिर्द एक एक पिस्तौल बड़ी करीने से रखी गयी थी। मामले की तहकीकात की जरूरत भी नहीं समझी गयी उसे रफादफा कर दिया गया। बस दबी जुबान में यही सुनने को मिला कि सम्पत्ति को लेकर कुछ विवाद चला था। /p p style= text-align: justify मगर साईंबाबा ही क्यों इन दिनों चर्चित किसी भी ‘गाडमेन’ या ‘गाडवूमेन’ पर नज़र दौड़ाइये या बीते दिनों के किसी ‘विभूति’ को देखें वह अथाह एवं अकूत सम्पत्ति का मालिक मिलेगा। महेश प्रसाद वर्मा के नाम से जबलपुर में जन्मे और बाद में महेश योगी के नाम से दुनिया भर में विख्यात हुए योगी का जब 2008 में देहान्त हुआ तब बिजनेस में लगी उनकी सम्पत्ति की मात्रा 2 से 5 बिलियन डाॅलर आंकी गयी थी जबकि उनके पास 5 बिलियन डाॅलर से अधिक की रियल इस्टेट अर्थात जमीनें बिल्डिंग आदि थे। /p p style= text-align: justify माता अमृतानन्दमयी को देखें जिन्हें लोग ‘हंगिंग अम्मा’ कहते हैं वह इस देश की सबसे सम्पन्न गाडवूमेन कही जा सकती हैं। एक मोटे आकलन के हिसाब से वह जिस अमृतानन्दमयी ट्रस्ट की मुखिया हैं उसके पास 1 000 करोड़ रूपए से अधिक की सम्पत्ति है। कहा जाता है उनके पास एकत्रित धन देश विदेश में फैले उनके शिष्यों के दान से तथा ट्रस्ट द्वारा शुरू किए गए स्कूलों एवं अस्पतालों की कमाई से आता है। /p p style= text-align: justify आर्ट आफ लीविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर जिनके शिष्यों की संख्या लाखों में बतायी जाती है वह भी संसाधनों एवं सम्पत्ति के मामले में कहीं से कम नहीं है। पिछले साल अप्रवासी भारतीय पी पाॅल ने रविशंकर के ट्रस्ट पर जमीन कब्जे का आरोप लगाया। पाल के मुताबिक उनके ट्रस्ट ने उस 15 एकड़ जमीन पर कब्जा किया जिसकी जनरल पाॅवर आफ एटर्नी उनके पास है। /p p style= text-align: justify कहा जाता है कि सत्य साई बाबा अपने आप को शिरडी के उस महान सूफी सन्त साईं बाबा का अवतार मानते थे। पता नहीं उन्होंने यह पता करने की कोशिश की थी या नहीं कि शिरडी के साईंबाबा जब मरे तो उनके पास कितनी दौलत थी। उनके चरित्रकार बताते हैं कि शिरडी के साईबाबा मरें तो उनके पास उनकी तकिया के नीचे बस उतनाही पैसा पड़ा था जिससे उनका अन्तिम संस्कार हो सकता था। /p