नई दिल्ली। देश में आर्थिक मंदी के जल्द खत्म होने के आसार नज़र नहीं आ रहे। भारतीय रिज़र्व बैंक ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितम्बर 2020 के दौरान देश की जीडीपी 8.6 तक और गिर गई है। इससे पहले अप्रैल से जून की तिमाही के दौरान देश की जीडीपी में 23.9 फीसदी की भयानक गिरावट आई थी। लगातार दो तिमाही में जीडीपी के गिरने का मतलब ये हुआ कि अब हमारा देश अर्थशास्त्र की शब्दावली में तकनीकी तौर पर भी मंदी में घिर चुका है। अगर किसी अर्थव्यवस्था की विकास दर लगातार दो तिमाहियों तक निगेटिव रहे, तो उसे तकनीकी तौर पर मंदी का शिकार मान लिया जाता है।  

देश के आर्थिक आंकड़ों की गणना के लिए जिम्मेदार नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (NSO) ने 31 अगस्त को ही बताया था कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान देश की जीडीपी 23.6 फीसदी तक गिरी थी। इसके बाद दूसरी तिमाही में भी जीडीपी में गिरावट आने का रिज़र्व बैंक का ताज़ा अनुमान चिंता बढ़ाने वाला है। रिज़र्व बैंक पहले यह अनुमान भी जाहिर कर चुका है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत की जीडीपी में 9.5 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिल सकती है।

हालांकि आरबीआई की ताज़ा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जैसे जैसे गतिविधियां सामान्य हो रही हैं, वैसे वैसे जीडीपी में गिरावट का दायरा कम हो रहा है। जिससे आने वाले दिनों में हालात कुछ सुधर सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो तीसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर प़ॉजिटिव हो सकती है। लेकिन इसके साथ ही रिज़र्व बैंक ने यह चेतावनी भी दी है कि अर्थव्यस्था में अब भी गिरावट लाने वाले कई बड़े जोखिम मौजूद हैं। खास तौर पर बढ़ती महंगाई सबसे बड़ी चिंता की वजह है, जिसमें लगातार कोशिशों के बावजूद कोई सुधार होता नज़र नहीं आ रहा है।