शिक्षक तो वह गरीब है जिसे कोई भी, कभी भी, कहीं का भी कार्य सौंप देता है। वे पढ़ाई करवाने के लिए नौकारी में आते हैं लेकिन उनके पास पढ़ाई अलावा इंसानों, जानवरों को गिनने, सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने जैसे काम होते हैं। शिक्षकों की अपनी समस्‍याएं हैं लेकिन इस बार स्‍कूल और कॉलेज दोनों की स्‍तरों के शिक्षक ई अटेंडेंस को लेकर पीड़ा में हैं। 

सरकार ने तय किया है कि शिक्षकों को ई अटेंडेंस लगानी अनिवार्य है। इसके लिए एप बनाया गया है जिसके माध्‍यम से शिक्षण संस्‍थान में जा कर लाइव अपडेट करना होता है। शिक्षक इससे सहमत नहीं है। उनकी अपनी समस्‍याएं हैं। उनका तर्क है कि सरकार यदि इसे नीति ही बना रही है तो सभी कर्मचारियों पर यह नीति लागू होनी चाहिए, सिर्फ शिक्षक ही क्‍यों?

इस बीच, कॉलेजों में शिक्षकों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए लागू सार्थक ऐप में जुगाड़ की शिकायत भी मिली है। इन शिकायतों में कहा गया है कि प्रोफेसर, कर्मचारी एवं अतिथि विद्वान अधिकांशत: एक ही मोबाइल में वीडियो अपलोड कर रहे हैं। कई बार तो ये वीडियो पुराने होते हैं। यानी उपस्थिति का वीडियो अपलोड कर दिया जाता है लेकिन वास्‍तव में वह कर्मचारी संस्‍थान में उपस्थित होता नहीं है। सागर, सीवा, सीधी जिलों से ऐसी शिकायतों के बाद उच्च शिक्षा आयुक्त ने आदेश जारी कर कहा है कि सभी जिलों के कलेक्टर के पास भी सार्थक ऐप की हाजिरी दी जाएगी। जरूरत पडऩे पर वे आकस्मिक निरीक्षण भी करवा सकेंगे। 

इस आदेश से शिक्षक भड़क गए हैं। एकजुट होकर विरोध करने के साथ ही विभिन्‍न मंचों पर शिक्षकों की नाराजगी उभर रही हैं। वे कह रहे हैं कि कलेक्‍टर तथा अन्‍य अधिकारियों के लिए भी ऐसी व्‍यवस्‍था होनी चाहिए। कुछ ने कमेंट किया है कि कलेक्‍टर पहले बस स्‍टैंड सहित अन्‍य स्‍थानों की दुर्दशा देख लें। शिक्षकों ने कहा कि उन्‍हें भी पांच दिन कार्य करने की छूट दी जाए फिर सख्‍ती करें। 

ई अटेंडेंस के विरोध में शिक्षक कर्मचारी संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। राज्‍य शिक्षक संघ के प्रांताध्‍यक्ष जगदीश यादव, दिनेश शुक्‍ला के साथ प्रतिनधियों ने मंत्री उदयप्रताप से मुलाकात कर अपनी आपत्ति दर्ज करवाई है। प्रांताध्‍यक्ष जगदीश यादव ने कहा है कि स्‍कूलों के रिजल्‍ट को देख कर मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने शिक्षकों की खूब प्रशंसा की थी, फिर अब शिक्षकों पर अविश्‍वास क्‍यो किया जा रहा है? शिक्षकों कर मांग है कि ऑनलाइन कार्य, मैपिंग, फीडिंग, अपार आईडी, जाति, बच्चों को स्कूल लाने की व्यवस्था आदि हेतु एक कर्मचारी की नियुक्ति आउटसोर्स से की जाए। शिक्षक यह कार्य क्‍यों करें? अवकाश दिनों में कार्य करने या अतिरिक्त समय तक कार्य करने पर अतिरिक्त अवकाश मिले। मध्यप्रदेश शासन-प्रशासन के सभी 52 विभाग के अधिकारीगण एवं कर्मचारी पर भी ई-अटेंडेंस को लागू करें, केवल शिक्षकों पर नहीं। नेट पैक का अतिरिक्त खर्च कर्मचारी को दिया जाए। 

9 साल बाद प्रमोशन, सरकार के अलावा कोई खुश नहीं

मध्‍य प्रदेश में हजारों कर्मचारी प्रमोशन की आस में ही रिटायर हो गए लेकिन बीजेपी सरकार पदोन्‍नति में आरक्षण पर कोई फैसला नहीं कर पाई थी। मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस विवादास्‍पद मसले को हल करने की कोशिश की और सीएम की मंशा के अनुसार मोहन सरकार ने 9 साल बाद पदोन्नति में आरक्षण की नीति जारी कर दी है। इस फैसले से सरकार खुश है। सरकार के इस निर्णय की प्रशंसा की जा रही है लेकिन सरकार के अलावा कोई क्‍यों खुश नहीं है?

सरकार हर हाल में पदोन्नति देने पर आमादा है मगर कर्मचारी खुश नहीं हैं। न आरक्षित वर्ग और न अनारक्षित वर्ग। कर्मचारी संगठन इसके नियमों में विसंगति बताकर विरोध जता रहे हैं और कोर्ट जाने की बात कर रहे हैं। मंत्रालय में 26 जून को सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारियों ने एकजुट होकर प्रदर्शन किया। सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था (सपाक्‍स) ने 29 जून को बैठक बुलाई है। सपाक्‍स ने कहा है कि पदोन्नति के नियमों में कई विसंगतियां हैं। इसके विरोध में हाईकोर्ट में याचिका लगाएंगे। इसके बाद जैसे ही पूर्व में प्रमोशन पा चुके आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को फिर से पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू होगी तो सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर करेंगे। 

मंत्रालय सेवा अधिकारी-कर्मचारी संघ का कहना है कि अनारक्षित पदों पर आरक्षित वर्ग को अवसर दिया जाना विधि विरुद्ध है। ऐसा 2002 के पदोन्नति नियम के कारण हो चुका है। आरक्षित वर्ग के संगठनों का कहना है कि 2002 की नीति ही गलत थी। उसके खिलाफ कोर्ट गए थे। अब उसी के आधार पर नई नीति से पदोन्‍नति की जा रही है। इसका विरोध किया जाएगा। कर्मचारी संगठनों का विरोध जारी है लेकिन इससे सरकार बेअसर है। मुख्‍य सचिव अनुराग जैन बैठक कर चुके हैं। गजट नोटिफिकेशन हो चुका है। सरकार जुलाई से प्रमोशन करने वाली है।  

जाम में सब फंसें, शिवरराज भी, अब चालान से छूट

देश की सबसे स्‍वच्‍छ सिटी इंदौर में जाम के कारण तीन लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग घंटों परेशान होते रहे। नगरीय प्रशासन और विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का होम टाउन इंदौर मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव का प्रभार का जिला है। यानी, यह सबसे विशिष्‍ट शहर है। इसके बाद भी जाम लगना आम हो गया है और यह परेशानी प्राकृतिक कम, मानव निर्मित अधिक है। बेतरतीब विकास और बिना योजना कार्य ने शहर को बेहाल बना कर छोड़ दिया है। हालात यह थे कि सात किलो मीटर का सफर करने में घंटों लग गए। इस जाम में पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, कर्नाटक के राज्‍यपाल थावरचंद गहलोत का काफिला भी एक-डेढ़ घंटे फंसा रहा। 

बारिश पूर्व व्‍यवस्‍था प्रबंधन की बैठकों में अधिकारियों ने निर्देश दिए थे कि शहर में जल भराव नहीं होना चाहिए। बैठक में जल जमान के संभावित हर स्‍थान के अनुसार पानी निकालने का प्‍लान तैयार किया गया था लेकिन बारिश की शुरुआत में ही सब ध्‍वस्‍त हो गया। इंदौर-देवास मार्ग पर अर्जुन बड़ौद क्षेत्र में फ्लाईओवर निर्माण के कारण रास्‍ता बंद होना भी 36 घंटे के जाम का कारण बना। इसके साथ ही डायवर्ट किए गए रूट पर पुलिस चालानी कार्रवाई कर रही थी। 

ऐसा संदेश गया कि पुलिस को केवल चालान काटने से मतलब है, जाम लगे और जान जाए, इसकी कोई परवाह नहीं। इस पर तुरंत एक्‍शन लेते हुए मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में अब वाहनों का चालान नहीं काटा जा सकेगा। इसके संबंध में कलेक्टर आशीष सिंह ने निर्देश दिए हैं कि बारिश के दौरान चालानी कार्रवाई नहीं की जाएगी। यातायात पुलिस को कहा गया है कि चालान काटने की जगह सभी ट्रैफिक सिग्नलों को चालू रखने का काम देखें। शहर में यातायात को सुचारू बनाए रखने के लिए यातायात पुलिस त्‍वरित प्रतिक्रया दल बना कर काम करेगी। इस दल में नगर निगम और होमगार्ड का अमला भी होगा। 

फौरी राहत के लिए तो कदम उठा लिए गए लेकिन जनता तो बेतरतीब विकास कार्यों का खामियाजा भोगने को मजबूर है। चालानी कार्रवाई कुछ दिन रूक जाएगी लेकिन सिस्टम तो सुधर नहीं सकता तो व्यवस्था जल भराव वाली ही बनी रहेगी। इससे निजात पाना मुश्किल है।

डीजीपी साहब यह बात ठीक नहीं

मध्‍य प्रदेश के पुलिस महानिदेश कैलाश मकवाना बीते दिनों उज्‍जैन में थे। वहां अपराध और पुलिस कार्रवाई की समीक्षा के बाद मीडिया से चर्चा में प्रदेश में रेप की बढ़ती घटनाओं पर उन्होंने कहा कि रेप रोकना पुलिस के बस में नहीं, इसके लिए मोबाइल और परिवार जिम्मेदार है। उन्होंने प्रदेश में बढ़ते दुष्कर्म के लिए मोबाइल और इंटरनेट पर परोसी जा रही अश्लीलता और समाज की नैतिकता में आई गिरावट को जिम्मेदार बताया। डीजीपी कैलाश मकवाना ने कहा कि बच्चों पर पहले मां, बाप और शिक्षकों का होल्ड था, लेकिन अब नहीं रहा।

नैतिकता के लिहाज से डीजपी कैलाश मकवाना की सोच सही हो सकती है लेकिन सवाल तो यह है कि क्‍या समाज में पुलिस का भी खौफ नहीं रहा जो इतनी वारदातें हो रही हैं? कहा जाता था सख्‍त कानून होंगे तो बलात्‍कार रूकेंगे। फांसी का प्रावधान होने के बाद भी बलात्‍कार रूक नहीं रहे हैं बल्कि बढ़ रहे है। यह तथ्‍य खुद सरकार मान रही है। 

राज्य सरकार ने मार्च 2025 में विधानसभा को बताया था कि प्रदेश में हर दिन 20 दुष्कर्म हो रहे हैं। प्रदेश में बीते 5 साल में बलात्कार के मामले 19% बढ़ गए हैं। कांग्रेस विधायक के सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय देख रहे मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बताया था कि प्रदेश में 2 2020 में बलात्कार की 6134 घटनाएं थीं, जो 2024 में बढ़कर 7294 हो गई यानी 19 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। 

अपराधों के बढ़ने के पीछे सिर्फ नैतिक कारण नहीं है बल्कि इस पर नियंत्रण नहीं करने वाली व्‍यवस्‍था का भी उतना ही दोष है। ऐसे में समाज के हर वर्ग की महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों पर डीजीपी कैलाश मकवाना की यह टिप्‍पणी जिम्मेदारी को बचाने जैसी लगती है। आईपीएस कैलाश मकवाना जैसे संवेदनशील अफसर से उम्‍मीद कर जाती है कि वे सिस्‍टम को जिम्‍मेदारी निभाना सिखाएं, समाज की नैतिकता दूसरे चरण का मामला है।