शनिवार को स्रेब्रेनिका नरसंहार की 25वीं बरसी को याद करते हुए बोस्निया में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। दुनियाभर के नेताओं ने अपने अपने वीडियो संदेश के जरिए 1992-95 के बीच चले इस नरसंहार की आलोचना की और लोगों को संबोधित किया। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यह यूरोप की एकमात्र ऐसी घटना है, जिसे नरसंहार घोषित किया गया। हालांकि इस बार नरसंहार की बरसी का कार्यक्रम कुछ ठंडा रहा क्योंकि कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए अनेक लोगों को इसमें शामिल होने की अनुमति नहीं मिल सकी। 



1995 की जुलाई में हुए इस बर्बर नरसंहार में आठ हजार से अधिक बोस्निक मुस्लिम पुरुषों और लड़कों की हत्या कर दी गई थी। हर साल इस नरसंहार की बरसी पर कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें याद किया जाता है। इस नरसंहार के लिए बोस्निया के पूर्व सर्ब सैन्य कमांडर रैट्को म्लाडिक को उम्रकैद की सजा सुनाई जा चुकी है।





नरसंहार करने के बाद बोस्निक मुसलमानों के शव पूर्वी बोस्निया में सामूहिक रुप से दफन कर दिए गए थे, ताकि किसी को इसके बारे में पता ना चले। सामूहिक कब्रों में आज भी शवों के हिस्से मिलते हैं जिनके डीएनए की पहचान कर उन्हें एकसाथ रखा जाता है। अब तक करीब सात हजार मृतकों की पहचान हो चुकी है। 11 जुलाई 1995 को इस बर्बर नरसंहार की शुरुआत हुई थी।



स्रेब्रेनिका नरसंहार की 25वीं बरसी पर बहुत से नेताओं ने अपने संदेश रिकॉर्ड किए हैं। यूनाइटेड किंगडम में लेबर पार्टी के पूर्व मुखिया जेरेमी कॉर्बिन ने ट्वीट करते हुए कहा, “मारे गए हजारों लोग हमारी याद में शामिल हैं। हम सबको एक साथ इतिहास से सबक लेना चाहिए और यह सुनिश्चत करना चाहिए कि आगे ऐसी भयावह घटनाएं फिर कभी ना हों।”





वहीं प्रिंस ऑफ वेल्स ने कहा, “जुलाई 1995 की डरावनी घटनाएं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने नरसंहार माना है, हमारी सामूहिक चेतना पर एक खौफनाक धब्बा हैं।”



पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी इस मौके पर एक वीडियो संदेश रिकॉर्ड किया। उन्होंने स्रेब्रेनिका नरसंहार के साथ-साथ कश्मीर का भी जिक्र किया।



अपने वीडियो संदेश में खान ने कहा, “जब यह नरसंहार हुआ तो मानवता में विश्वास करने वाले हजारों लोगों की तरह हम भी स्तब्ध थे। हम यही सोच रहे थे कि जहां संयुक्त राष्ट्र का पीस कीपिंग मिशन है, वहां इस तरह के नरसंहार को किस तरह होने दिया गया। हमारे लिए यह जरूरी है कि हम इस तरह की घटनाओं से सीख लें। विश्व समुदाय को इस तरह के नरसंहार कभी नहीं होने देने चाहिए।”





कश्मीर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “कश्मीर में भी इसी तरह के हालात हैं। आठ लाख भारतीय सैनिकों ने इलाके को कब्जे में ले रखा है। हमें डर है कि इसी तरह का नरसंहार कश्मीर में हो सकता है। वैश्विक समुदाय को इस बात का संज्ञान लेना चाहिए और इस तरह के नरसंहार कभी नहीं होने देना चाहिए।”



यूरोप के धुर दक्षिणपंथी समूह शुरुआत से ही इस नरसंहार को नकारते रहे हैं। लेकिन हाल के कुछ सालों में मुख्य धारा में भी इस नरसंहार को नकारने की सहमति बन रही है। यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इस बात को रेखांकित किया।



एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा, “मैं इस दुख में आप लोगों के साथ शामिल होना चाहता हूं। आज भी इस नरसंहार के कई आततायियों को उनके अंजाम तक नहीं पहुंचाया गया है। और यहां ऐसे लोग भी हैं जो इस वीभत्स नरसंहार को भूल जाना चाहते हैं। कई तो इसे मानते ही नहीं हैं। हमें ऐसा नहीं होने देना है। यह आने वाली नस्लों और इस नरसंहार के पीड़ितों का हमारे ऊपर कर्ज है कि हम स्रेब्रेनिका को याद रखें और फिर ऐसा कभी ना होने दें।”





हालांकि, नरसंहार के दो साल बाद बोरिस जॉनसन ने एक दक्षिपंथी पत्रिका ‘द स्पेक्टेटर’ में इस नरसंहार को लेकर एक विवादित टिप्पणी लिखी थी। सर्बियाई सेना ने इस नरसंहार को अंजाम दिया था और बोरिस जॉनसन ने सर्बियाई सेना को रोकने के खिलाफ टिप्पणी करते हुए लिखा था, “ठीक है, मैं कहता हूं के स्रेब्रेनिका में जो हुआ वह बहुत भयावह था। लेकिन ये मुसलमान भी तो कोई देवदूत नहीं थे।”



बोरिस जॉनसन ने आजतक इस टिप्पणी के लिए मांफी नहीं मांगी है। यूनाइटेड किंगडम के करीब 30 सांसदों ने पत्र लिखकर जॉनसन से इस टिप्पणी के लिए माफी मांगने को कहा है। इन सांसदों का कहना है कि यह सोचना भी गलत है इस टिप्पणी के लिए माफी मांगे बिना जॉनसन सार्वजनिक तौर पर इस नरसंहार की बरसी पर आयोजित कार्यक्रमों में शामिल होंगे।



अमेरिका के उपराष्ट्रपति माइक पेंस और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज के साथ दर्जनों वैश्विक नेताओं ने भी अपने संदेश भेजकर नरसंहार की 25वीं बरसी पर अपनी संवेदना जताई।