सारंगपुर। देश और प्रदेश में आधी आबादी के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है। पुरुषों के बराबर महिलाओं की भागीदारी करने के तमाम प्रयास भी किए जा रहे हैं, लेकिन धरातल पर हकीकत कुछ अलग ही नजर आती है। प्रदेश में 12 हजार 920 महिला सरपंच हैं, लेकिन हुकूमत उनके पतियों की चलती है। वे महज कागजों पर दस्तखत का काम करती हैं। सारंगपुर से इसका उदाहरण सामने आया है जहां ट्रेनिंग कैंप में 49 महिला सरपंचों की बजाए उनके पति शामिल हुए।
क्षेत्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज प्रशिक्षण केंद्र, बरखेड़ी भोपाल की टीम ने सारंगपुर जनपद सभागार में यह कार्यक्रम किया। इसमें 98 पंचायतों के प्रतिनिधियों को बाल हितैषी पंचायत, बाल अधिकार संरक्षण और साइबर अपराध पर प्रशिक्षण दिया गया। कार्यक्रम में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के नाम पर केवल दो महिला सचिव ही मौजूद थीं।
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जबकि 49 पंचायतों की सरपंच महिलाएं हैं। लेकिन उनके जगह उनके पति ट्रेनिंग कार्यक्रम में शामिल हुए। प्रशिक्षण के दौरान जब यह मामला सामने आया कि महिला सरपंचों की जगह उनके पति, देवर, जेठ या ससुर मौजूद हैं, तो इसकी शिकायत प्रशिक्षण टीम प्रभारी बालकृष्ण व्यास से की गई। व्यास ने कहा कि महिला जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति अनिवार्य है, लेकिन उनके स्थान पर या उनके साथ उनके प्रतिनिधि आ सकते हैं, बशर्ते वे पीछे बैठकर प्रशिक्षण देखें।
मामले पर जनपद सीईओ कृपाल पेरवाल ने कहा कि नियमानुसार महिला जनप्रतिनिधि के स्थान पर उनके पति या कोई अन्य प्रतिनिधि स्वीकार्य नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सभी अनुपस्थित 49 महिला सरपंचों को अगले प्रशिक्षण कार्यक्रम में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहने का निर्देश दिया जाएगा।
बता दें कि एमपी में 23 हजार 11 पंचायत हैं। जिसमें से 12 हजार 920 पंचायतों में महिला सरपंच हैं। यानी आधे से ज्यादा सीटों पर महिलाओं के पास कुर्सी है। देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में महिलाओं को जगह मिले। इसी सोच पर ग्राम पंचायतों में महिला सरपंचों को जगह दी गयी थी। लेकिन वास्तविक स्थिति इसके उलट है। महिलाएं सरपंच तो बन जाती हैं लेकिन हुकूमत उनके परिजन करते हैं।