नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के छह प्रमुख दलों के राजनीतिक गठबंधन को गैंग कहकर देश में राजनीतिक दलों के आपसी संवाद को एक नए स्तर पर ला दिया है। इन दलों ने पिछले साल जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म किए जाने से एक दिन पहले एक घोषणा पत्र जारी किया था, जिसे गुपकर घोषणा पत्र कहा जाता है। गृह मंत्री अमित शाह इस घोषणा पत्र में शामिल दलों को गुपकर गैंग कहकर उन्हें देश विरोधी बता रहे हैं।



अमित शाह ने इस बारे में किए गए अपने एक ट्वीट में कहा है, 'गुपकर गैंग ग्लोबल हो रहा है। वे चाहते हैं कि विदेशी ताकतें जम्मू-कश्मीर में हस्तक्षेप करें। गुपकर गैंग भारत के तिरंगे झंडे का अपमान भी करता है। क्या सोनिया जी और राहुल जी गुपकर गैंग की ऐसी चालों का समर्थन करते हैं? उन्हें भारत के लोगों के सामने अपना रुख पूरी तरह स्पष्ट करना चाहिए।'





देश के मूड के साथ चलें वरना लोग डुबो देंग : अमित शाह



गृह मंत्री अमित शाह ने धमकी भरे अंदाज़ में कहा है कि गुपकर गैंग देश की भावना के साथ चले, वरना लोग उसे डुबो देंगे। शाह ने ट्विटर पर लिखा है, "जम्मू और कश्मीर हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और रहेगा। भारतीय लोग अब हमारे राष्ट्रीय हित के खिलाफ किसी भी अपवित्र ग्लोबल गठबंधन को बर्दाश्त नहीं करेंगे। गुपकर गैंग या तो राष्ट्र के मूड के साथ चले या फिर लोग इसे डुबो देंगे।"





अमित शाह ने एक अन्य ट्वीट में आरोप लगाया कि  "कांग्रेस और गुपकर गैंग जम्मू-कश्मीर को आतंकवाद और अशांति के पुराने दौर में वापस ले जाना चाहते हैं। वे अनुच्छेद 370 को हटाकर दलितों, महिलाओं और आदिवासियों को हमारे द्वारा दिए गए अधिकारों को छीन लेना चाहते हैं। यही वजह है कि उन्हें हर जगह लोगों द्वारा अस्वीकार किया जा रहा है।"





क्या जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद खत्म हो गया है



गृह मंत्री अमित शाह के ऊपर दिए ट्वीट से ऐसा लगता है मानो जम्मू-कश्मीर से पूर्ण राज्य का दर्जा छीन लेने और अनुच्छेद 370 हटाने के बाद वहां आतंकवाद खत्म हो गया है। लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है। खुद अमित शाह के गृह मंत्रालय ने 17 मार्च 2020 को देश की संसद को लिखकर बताया था कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से लेकर 10 मार्च के बीच जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से जुड़ी 79 वारदात हो चुकी थीं। ये हाल तब था जबकि इस दौरान पूरे राज्य को भारी सुरक्षा बंदोबस्त करके एक तरह से छावनी में तब्दील कर दिया गया था। इतना ही नहीं, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूरे राज्य में करीब 1600 लोगों को विशेष सुरक्षा में रखा गया है। इतने सुरक्षा उपायों के बावजूद राज्य में आतंकवादी हमलों का सिलसिला थमा नहीं है। राज्य की सही हालत का अंदाज़ा तो पिछले कुछ महीनों के दौरान आतंकवादी हमलों में मारे गए नेताओं की लंबी फेहरिस्त देखकर लगाया जा सकता है।



आतंकी हमलों में मारे गए नेता



29 अक्टूबर : कुलगाम में 3 बीजेपी नेताओं की हत्या 



7 अक्टूबर: गांदरबल में बीजेपी नेता के घर पर हमला, उनके PSO शहीद



19 अगस्त : सरपंच निसार अहमद भट्ट की हत्या, शोपियां में मिला शव



10 अगस्त : बडगाम में हामिद नज़र की हत्या



अगस्त : क़ाज़ीगुंड के सरपंच सज्जाद अहमद की हत्या



अगस्त का पहला हफ्ता : कुलगान के स्थानीय नेता आरिफ़ अहमद शाह की हत्या



8 जुलाई : वसीम बारी, उनके पिता और भाई की हत्या



5 जुलाई : पुलवामा के शब्बीर भट्ट की हत्या



8 जून : सरपंच अजय पंडिता की हत्या



30 जून: शोपियां के बीजेपी नेता गौहर भट्ट की हत्या



4 मई : अनंतनाग के गुल मीर की हत्या



सवाल यह है कि जब अनुच्छेद 370 हटाने से आतंकवाद खत्म हुआ ही नहीं है, तो उसे फिर से बहाल करने की मांग करने वाले राजनीतिक दलों पर ये आरोप लगाना कितना सही है कि वे राज्य में आतंकवाद की वापसी चाहते हैं। उल्टे जम्मू-कश्मीर की सियासत को समझने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि वहां कांग्रेस और बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दलों के अलावा नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी भी अलगाववाद का विरोध करने वाली मुखर आवाज़ें रही हैं। उन्हें जबरन आतंकवाद समर्थक बताने से आखिर किसका फायदा होगा?



क्या है गुपकर गठबंधन



दरअसल, 4 अगस्त 2019 को फारुक अब्दुल्ला के गुपकर स्थित आवास पर एक सर्वदलीय बैठक हुई थी। इस दौरान एक प्रस्ताव जारी किया गया था, जिसमें सभी पार्टियों ने तय किया था कि जम्मू-कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और उसके विशेष दर्जे को बनाए रखने के लिए सब मिलकर सामूहिक रूप से प्रयास करेंगे। इसे ही गुपकर समझौता कहा जाता है। इस समझौते में जम्मू-कश्मीर की कांग्रेस इकाई, महबूबा मुफ़्ती की पार्टी पीडीपी और फारूक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के अलावा तीन अन्य स्थानीय दल भी शामिल हैं। बता दें कि इस समझौते के अगले ही दिन केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा छीनकर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को भी बेअसर कर दिया गया था।