नई दिल्ली/पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे किसानों के आंदोलन को गलतफहमी का नतीज़ा बताया है। नीतीश कुमार ने किसान आंदोलन के मसले पर मोदी सरकार का समर्थन करते हुए कहा कि कृषि कानूनों का विरोध करना ठीक नहीं है। नीतीश कुमार ने कहा कि किसानों को आंदोलन की जगह मोदी सरकार से बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए। 

नीतीश कुमार ने सोमवार को न्यूज़ एजेंसी एएनआई से कहा कि सरकार फसलों की खरीद को लेकर किसानों में बने डर को बातचीत कर दूर करना चाहती है तो मुझे लगता है कि बातचीत होनी चाहिए। ये विरोध-प्रदर्शन गलतफहमी की वजह से हो रहे हैं। 

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बिहार में नई सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार ने पहली बार केंद्र सरकार के समर्थन में बयान दिया है। बता दें कि नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू इससे पहले अनुच्छेद 370 और सीएए- एनआरसी जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार के खिलाफ खड़े दिखाई दिए हैं। लेकिन हाल ही में हुए बिहार चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी बनने के बाद से नीतीश कुमार के तेवर ढीले हो गए हैं। 

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एक दिलचस्प बात यह भी है कि बिहार में एपीएमसी एक्ट को 2006 में ही खत्म किया जा चुका है। उस वक्त भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री थे। केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के समर्थन में भी एक बड़ी दलील यही दी जाती है कि इससे मंडियों का एकाधिकार खत्म होगा और किसान किसी को भी अपनी फसल बेचने के लिए स्वतंत्र होगा।  लेकिन कृषि के जानकार बार-बार बिहार की मिसाल देकर कहते हैं कि अगर मंडियां खत्म करने से किसानों का भला होना होता तो 14 साल बाद भी बिहार का किसान देश का सबसे बदहाल-फटेहाल किसान नहीं होता। हकीकत यह है कि बिहार में कृषि मंडियों की व्यवस्था खत्म होने से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पाता, जिससे उसकी हालत दिनों-दिन और खराब हुई है, जबकि मंडियों में खरीद का सिस्टम मज़बूत होने की वजह से पंजाब-हरियाणा के किसानों की हालत बिहार से कहीं बेहतर है। एक दिलचस्प हकीकत यह भी है कि जो नीतीश कुमार पंद्रह साल राज करने के बावजूद बिहार के किसानों की हालत सुधार नहीं पाए, वो देश के किसानों का नफा-नुकसान किसान संगठनों से बेहतर समझने का दावा कर रहे हैं।