नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत के स्वदेशी पर बयान देकर चौतरफा घिर गए हैं। भागवत ने बुधवार (12 अगस्त) को डिजिटल माध्यम से एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान कहा था कि स्वदेशी का मतलब यह नहीं होता कि सारे विदेशी उत्पादों को बॉयकॉट किया जाए। स्वतंत्रता के बाद जैसी जैसी आर्थिक नीति बननी चाहिए थी वैसी नहीं बनी लेकिन अच्छा हुआ कि अब इसकी शुरुआत हो गई है। आरएसएस प्रमुख के बयान पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने उन्हें निशाने पर लिया है। सिंह ने पूछा है कि क्या वे मोदी के दबाव में आकर चीन के लिए रास्ता तो नहीं खोलना चाहते हैं?



मोहन भागवत ने पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान कोविड-19 के मद्देनजर आत्मनिर्भरता और स्वदेशी की प्रासंगिकता का जिक्र करते हुए कहा कि इस महामारी ने स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विकरण के वांछित परिणाम अबतक प्राप्त नहीं हुए हैं और एक आर्थिक मॉडल सभी जगहों पर लागू नहीं होता है। उन्होंने कहा, 'आजादी के बाद ऐसा माना ही नहीं गया कि हमलोग कुछ कर सकते हैं। अच्छा हुआ कि अब शुरू हो गया है। हमें इस बात पर निर्भर नहीं होना चाहिए कि हमारे पास विदेश से क्या आता है, और यदि हम ऐसा करते हैं तो हमें अपनी शर्तों पर करना चाहिए।'



सरसंघचालक ने विदेशी उत्पादों के बहिष्कार के बारे में बात करते हुए कहा, 'विदेशों में जो कुछ है, उसका बहिष्कार नहीं करना है लेकिन हमें अपने शर्तों पर उन्हें खरीदना है। स्वदेशी का अर्थ जरूरी नहीं कि सभी विदेशी उत्पादों का बहिष्कार कर दिया जाए। स्वदेशी का अर्थ देशी उत्पादों और प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता देना है।' 



रामदेव की तरह भागवत पर भी मोदी का दबाव



भागवत के इस बयान की तुलना योगगुरू बाबा रामदेव की चुप्पी से की है। कांग्रेस नेता ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, 'क्या मोहन भागवत जी अपने इस बयान से मोदी जी के दबाव में चीन के लिए रास्ता तो नहीं खोल रहे हैं? एक समय रामदेव भी चीनी सामान का बहुत विरोध करते थे लेकिन अब वे भी चुप हैं। क्या वे भी दबाव में हैं?' 





ज्ञात हो कि विगत कई वर्षों तक योग गुरु बाबा रामदेव ने भी देशभर में स्वदेशी आंदोलन छेड रखा था। योग गुरु हरसमय लोगों से विदेशी सामानों को बहिष्कार करने की अपील करते थे और इसी क्रम में उन्होंने स्वदेशी के नाम पर पतंजलि प्रोडक्ट्स को लॉन्च किया था। लेकिन अब बाबा रामदेव इस मुद्दे पर मुखर नहीं हैं उन्हें स्वदेशी आंदोलन की बात करने कम ही देखा जाता है।