नई दिल्ली। केंद्र सरकार 15 जनवरी को किसानों के साथ 9वें दौर की बातचीत करने वाली है। किसानों के साथ होने वाली बैठक में सरकार किसानों की मांगों को मानेगी या नहीं, इस पर अभी सस्पेंस बरकरार है। लेकिन किसान नेताओं ने पहले ही साफ कर दिया है कि उन्हें उम्मीद नहीं है कि अगली वार्ता में भी सरकार उनकी बात नहीं मानेगी। 

किसान नेताओं के मुताबिक उन्हें इस बात का एहसास है कि सरकार उनकी बात नहीं मानने वाली, फिर भी वो बैठक में जाएंगे। वो ऐसा इसलिए करेंगे ताकि सरकार किसानों पर यह तोहमत नहीं लगा सके कि उन्होंने बातचीत ही नहीं की। साथ ही हर बार वार्ता में शामिल होकर वे सरकार के इरादों को बेनकाब भी कर सकेंगे। 

बातचीत हमारे कारण नहीं सरकार के कारण विफल हो रही है

अब तक अभी दौर की बातचीत बेनतीजा रहने के लिए किसान नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां पूरी तरह से सरकार को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। जोगिंदर सिंह का कहना है कि हमने तो सरकार को सीधे तौर पर कहा है कि बिना तीनों कानूनों को रद्द करने से कम हमें कुछ भी मंज़ूर नहीं है। ये बात सरकार को हम कितनी बार बता चुके हैं लेकिन सरकार फिर भी हमें बैठकों में आमंत्रित करती है, और हमारी मांगों को नहीं मानती है। लिहाज़ा हम अगली बार भी बैठक में जाएंगे ताकि सरकार के मंसूबों को बेनकाब कर सकें। 

कुछ ऐसा ही एक अन्य किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी का भी मानना है। चढूनी का कहना है कि सरकार ने पहले ही इस आंदोलन को बहुत बदनाम करने की कोशिश की है। कभी हमें खालिस्तानी बताया गया, कभी हमें आतंकवादी तो कभी नकली किसान होने का हमें तमगा दिया गया। लेकिन हम अपनी ओर से सरकार को कोई एक ऐसा मौका नहीं देना चाहते जिसके आधार पर सरकार हमें बदनाम कर सके। अगली बैठक भी पिछली बैठकों की तरह विफल ही होने वाली है। 

किसानों की मौत का वारंट हैं तीनों कानून 

किसान नेता हन्नान मोल्ला कानूनों को लेकर कहते हैं कि यह सीधे तौर पर हमारी मौत का वारंट है। इस पर कोई समझौता या बीच का रास्ता कैसे निकल सकता है? मौत के वारंट को सीधे रद्द किया जाता है, संशोधन नहीं किया जाता। किसान नेता का यह आरोप है कि सरकार ने तीनों कानून उन लोगों के लिए बनाए हैं, जिनके पैसे पर ये लोग चुनाव जीत कर आए हैं। सरकार कानून वापस लेकर अपने कॉरपोरेट के मित्रों को भला कैसे नाराज़ कर सकती है? 

हमारी लड़ाई सरकार से है संविधान से नहीं 

पिछली बैठक में सरकार ने किसान नेताओं से कहा था कि अगर उन्हें कानूनों को लेकर कोई आपत्ति है तो वे सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं। इस पर किसान नेता मेजर सिंह कहते हैं कि हम कानूनों की संवैधानिकता को तो चुनौती ही नहीं दे रहे हैं। फिर हम कोर्ट क्यों जाएं? कानून सरकार बनाती है, लेकिन ये कानून हमारे यानी किसान हितैषी नहीं हैं। लिहाज़ा हमारी लड़ाई सरकार से है कोर्ट से नहीं। 

26 नवंबर से किसान दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। अब तक सरकार के साथ उनकी आठ बैठकें हो चुकी हैं। लेकिन अब तक सरकार ने किसानों की दो प्रमुख मांगों को नहीं माना है। पहले तीनों कृषि कानून रद्द करना और दूसरा एमएसपी की गारंटी का कानून बनाना। लिहाज़ा सरकार और किसानों के बीच लगातार वार्ता बिना किसी नतीजे के समाप्त हो रही है। हालांकि किसान संगठन पहले ही यह चेतावनी दे चुके हैं कि अगर सरकार उनकी बात नहीं मानेगी तो 23 जनवरी को विभिन्न राज्यों में किसान मार्च निकालेंगे। इसके साथ ही 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड निकालने की भी किसानों की योजना है।