नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के रिवीजन मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई जारी है। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि वोटर लिस्ट रिवीजन नियमों को दरकिनार कर किया जा रहा है। वोटर की नागरिकता जांची जा रही है। ये कानून के खिलाफ है।

इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) यानी वोटर लिस्ट रिवीजन में नागरिकता के मुद्दे में क्यों पड़ रहे हैं, यह गृह मंत्रालय (MHA) का क्षेत्राधिकार है। SIR के खिलाफ राजद सांसद मनोज झा, TMC सांसद महुआ मोइत्रा समेत 11 लोगों ने याचिकाएं दाखिल की हैं।

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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ता की ओर से वकील गोपाल शंकर नारायण, कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी दलील दे रहे हैं। चुनाव आयोग की पैरवी पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, राकेश द्विवेदी और मनिंदर सिंह कर रहे हैं।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अब जबकि चुनाव कुछ ही महीनों दूर हैं, चुनाव आयोग कह रहा है कि वह पूरी मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) 30 दिनों में करेगा। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SIR प्रक्रिया में कोई बुराई नहीं है, लेकिन यह आगामी चुनाव से कई महीने पहले ही कर ली जानी चाहिए थी।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि आप पहले ये साबित कीजिए कि चुनाव आयोग जो कर रहा है, वह सही नहीं है। इस दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि साल 2003 में जब ऐसा व्यापक पुनरीक्षण हुआ था, तब चुनाव में काफी समय बचा था, लेकिन इस बार चुनाव नजदीक हैं, जिससे लाखों लोगों को सूची से हटाने की आशंका है।

वहीं, कपिल सिब्बल ने अदालत में दलील देते हुए कहा कि आयोग मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने का बोझ डाल रहा है। आयोग को यह बताना चाहिए कि वह किस आधार पर किसी को भारतीय नागरिक नहीं मानता। मतदाता पहचान पत्र, बर्थ सर्टिफिकेट और मनरेगा कार्ड तक को नहीं स्वीकार किया जा रहा है।