नई दिल्ली/गुवाहाटी। केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना असम के चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों तक नहीं पहुंच पा रही है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह एलपीजी के दामों में हो रही लगातार बढ़ोतरी है। चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों का कहना है कि एलपीजी के बढ़ते दामों के कारण वे गैस चूल्हा होने के बावजूद गैस नहीं भरवा पा रहे हैं। 



केंद्र सरकार के उज्ज्वला योजना की हकीकत असम के जोरहाट में चाय बागान में काम करने वाले मजदूरों से पूछिए। यहां काम करने वाले मजदूरों के पास उज्ज्वला योजना के तहत घरेलू गैस और चूल्हा तो है लेकिन गरीब तबके के ये लोग एलपीजी के सिलेंडर भरवा पाने में असमर्थ हैं। लिहाज़ा वे लकड़ी के चूल्हे पर खाना पकाने के लिए मजबूर हैं। 



जोरहाट के चाय बागान में काम करने वाले एक मज़दूर ने कहा, 'सरकार ने मुझे एलपीजी सिलेंडर और चूल्हा दिया। लेकिन मेरे पास गैस भरवाने के लिए पैसे नहीं हैं। इसलिए पिछले तीन महीने से मेरा परिवार चूल्हे पर ही खाना पका रहा है।' 



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हालांकि यह स्थिति केवल असम के चाय बागानों तक सीमित नहीं है। रसोई गैसों के बढ़ते दाम और महँगाई की कीमत गरीब तबके से लेकर मध्यमवर्ग चुका रहा है। दिसंबर से लेकर अब तक रसोई गैस के दामों में 225 रुपए की बढ़ोतरी हुई है। फरवरी से लेकर अब तक रसोई गैसों की कीमतों में 125 रुपए की बढ़ोतरी की गई है। देश की राजधानी दिल्ली में एलपीजी के सिलेंडर 819 रुपए में मिल रहे हैं। जबकि पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में घरेलू गैस के सिलेंडर 845 रुपए में मिल रहे हैं।    





लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ा प्रश्नचिन्ह केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना और सरकारी दावों को लेकर खड़ा होता है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री कांग्रेस नेता भूपेश बघेल ने भी असम के चाय बागान में काम करने वाले मज़दूरों का ज़िक्र करते हुए कहा कि केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना का यह अंधियारा पक्ष है। बघेल ने केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, 'चूल्हा दे दिया पर गैस भरवाने के लिए पैसों का इंतज़ाम करने की जगह उनकी जेबें खाली कर रहे हैं।' कांग्रेस नेता ने आगे कहा, 'असम के चाय बागानों की यह पीड़ा भाजपा के थोथे वादों से नहीं मिटेगी।'