क्या आपने कभी सोचा है कि गीले कपड़ों से भी बिजली का उत्पादन किया जा सकता है, त्रिपुरा के रहने वाले एक युवा इंजीनियर ने गीले कपड़ों से बिजली बनाने करने की तकनीक ईजाद की है। जिसके लिए उन्हें हाल ही में सम्मानित भी किया गया है। इंजीनियर शंख सुभरा दास ने गीले कपड़े से बिजली पैदा करके मेडिकल डायग्नोस्टिक किट और मोबाइल फोन को पावर देने की तकनीक विकसित की है। उनके इस इनोवेशन के लिए उन्हें जानेमाने गांधी यंग टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन (GYTI) पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरुस्कार शंख सुभरा दास को केंद्रीय मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने प्रदान किया।

गीले कपड़ों से बिजली बनाने की यह तकनीक पूरी तरह से कैपेलरी एक्शन और पानी का वाष्पीकरण पर निर्भर है। इसके लिए कपड़े को एक तय लंबाई-चौड़ाई पर काटा जाता है। फिर उसे प्लास्टिक के पाइप में डाल दिया जाता है। वह पाइप आधे भरे पानी के बर्तन में फिक्स रहता है। पाइप के दोनों और पर कॉपर इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं, जिससे उन्हें वोटेज मिलता रहता है।

कपड़े सेल्यूलोज-आधारित टेक्सटाइल से बने होते हैं, जिसमें नैनो-चैनल्स का नेटवर्क होता है। खारे पानी में आयन फाइबर नैनो-स्केल नेटवर्क के माध्यम से आगे बढ़ सकता है। जो सेल एक्टिविटी द्वारा प्रक्रिया में इलेक्ट्रिकल पोटेंशियल डवलप करता है।

फिलहाल इससे निकलने वाली एनर्जी से केवल एलइडी और मोबाइल चार्ज किया जा सकता है। इससे बिजली के बड़े उपकरण नहीं चल सकते। इससे छोटी एलईडी चल सकती है, मोबाइल फोन को चार्ज किया जा सकता है और हीमोग्लोबिन या ग्लूकोज टेस्ट किट को भी चलाया जा सकता है। शंख सुभरा दास ने आईआईटी खड़गपुर से पीएचडी की है और वे बांग्लादेश की सीमा से लगे सिपाहीजला जिले के एक छोटे से गांव खेड़ाबारी के रहने वाले हैं।