एक मुहावरा है, बहती गंगा में हाथ धोना। तबादला नीति जारी होने के बाद एमपी में तबादला की धारा बहने का मौका है। ऐसे में रीवा में एक दिलचस्प मामला हुआ है। सीधी भर्ती के आईपीएस गौरव राजपूत के तबादले से जुड़े एक आदेश की तारीफें हुई तो उन्‍होंने दूसरा आदेश जारी कर दिया। यह आदेश अधिकारों का अतिक्रमण था। स्‍वाभाविक है, भोपाल से रोक लगनी थी और हुआ भी यही। इस तरह तबादले के मामले में आईजी के हिस्‍से भलाई और बुराई दोनों आ गई। 

हुआ यूं कि रीवा में आईजी बना कर भेजे गए सीधी भर्ती के आईपीएस गौरव सिंह राजपूत ने 36 पुलिस अधिकारियों के तबादले सिंगल आदेश से निरस्त कर दिए। आरोप थे कि रिटायरमेंट के पूर्व तत्कालीन आईजी एमएस सिकरवार ने रिटायर होने के पहले बड़े पैमाने पर तबादले किए थे। उनके तबादलों की नीति से कुछ लोग खुश थे तो कुछ नाराज। नाराज पुलिसकर्मी कोर्ट की शरण में भी गए थे। पांच माह बाद नए पहुंचे आईजी गौरव सिंह राजपूत ने दिसंबर 2024 में किए गए पुलिसकर्मियों के ट्रांसफर आर्डर निरस्‍त कर दिए। इनमें से कुछ ने पद ग्रहण कर लिए थे जबकि कुछ छुट्टी पर थे। 

इस आदेश पर आईजी गौरव सिंह राजपूत की प्रशंसा हुई। शायद यही वजह होगी कि उन्‍होंने एक आदेश और निकाला। इस आदेश में कहा गया कि रेंज में उनकी स्‍वीकृति के बिना कोई तबादला नहीं होगा। यानी, एसपी नहीं, आईजी के साइन से पुलिसकर्मियों के तबादले होंगे। आईजी गौरव सिंह राजपूत का यह आदेश भोपाल पहुंचा तो तकनीकी पेंच उलझ गया। नई तबादला नीति जारी हो गई थी। पीएचक्‍यू ने यह आदेश नई तबादला नीति का विरोधाभासी है। इसके बाद पुलिस महानिदेशक ने इस आदेश को रद्द करने का आदेश जारी कर दिया। 

इस तरह से आईजी गौरव सिंह राजपूत तबादलों की गंगा को लेकर उन आरोपों से बच गए जिन आरोपों से उनके पूर्ववर्ती आईजी एमएस सिकरवार घिरे हुए थे। लेकिन तबादलों को लेकर उनकी मनमर्जी को भी पीएचक्‍यू ने स्‍वीकार नहीं किया। 
 
आपात वक्‍त में हो गई मॉक ड्रिल की मॉकरी 

मॉकरी मतलब है उपहास या मजाक बनना। पाक के साथ संघर्ष के दौरान की गई मॉक ड्रिल की मॉकरी भी जिसदिन हास्‍यास्‍पद बात उससे अधिक सतर्क हो जाने की वजह। केंद्र के आदेश पर देश के तमाम शहरों की तरह मध्‍यप्रदेश में भी आपदा से निपटने का अभ्‍यास किया गया। राजधानी भोपाल, इंदौर सहित पांच शहरों में मॉक ड्रिल की गई। मगर इस दौरान कई खामियां नजर आई। सबसे बड़ी खामी सायरन आवाज का न पहुंचना था। शिकायत हुई कि लोग तैयार बैठे रहे लेकिन सायरन बजे ही नहीं। सायरन बजे तो उनकी आवाज का दायरा इतना कम था कि बड़े इलाके में उनकी आवाज नहीं पहुंची। लिहाजा, लोग गफलत में रहे। हालांकि, कुछ लोगों ने समय देख कर अपने घर, दुकान, व्‍यावसायिक प्रतिष्‍ठानों की लाइट बंद कर ब्‍लैक आउट कर दिया था। 

लेकिन यह आदेश भी सभी ने नहीं माना। कई इलाकों में घरों, दुकानों की लाइट चलती रही। लोगों ने घरों की लाइट बंद की, गाडि़यों को सड़क पर रोक कर खड़े भी हो गए तो पाया कि स्‍ट्रीट लाइट चल रही है। जबलपुर में सायरन नहीं बजाया गया, यहां अलग-अलग प्रशासनि टीमों ने अपने वाहनों से सायरन बजा कर संकेत दिया। 

यह कहना लापरवाही को छूट दे देना होगा कि नगर निगम स्ट्रीट लाइट बंद करना भूल गया। असल में, नगर निगम प्रशासन ने यह व्‍यवस्‍था बनाई ही हनीं थी कि ब्‍लैक आउट के समय स्‍ट्रीय लाइन, नियो साइन बोर्ड आदि को बंद करना है। एक तरह से यह सीधे-सीधे कलेक्‍टर के आदेश का उल्‍लंघन था जो एक अन्‍य आईएएस के नेतृत्‍व वाले नगर निगम प्रशासन ने किया था। इसे एक प्रैक्टिस मैच की खामी नहीं माना जाना चाहिए बल्कि यह प्रशासनिक तालमेल के अभाव का उदाहरण है। विभागों ने जिले के मुखिया कलेक्‍टर के आदेश को इतने हल्‍के में लिया कि उसके पालन में गंभीरता नहीं बरती गई। 

आईएएस परेशान, नाम आखिर किसने जोड़ा

मध्यप्रदेश कैडर के 53 आईएएस अफसरों को करीब एक महीने की ट्रेनिंग के लिए मसूरी बुलाया गया है। ये अफसर जून से जुलाई तक मिड करियर ट्रेनिंग के लिए लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी मसूरी जाना होगा। इन अफसरों में मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्‍थ दो आईएएस सीबी चक्रवर्ती और डॉ. इलैया राजा टी शामिल हैं। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर समेत चार जिलों के कलेक्टर सहित अन्‍य अधिकारी सचिव, अपर सचिव स्तर के हैं। मई बीतने के साथ ही मसूरी जाने की तारीख पास आ रही है और यह कुछ आईएएस अफसरों का तनाव बढ़ा रही है।

अफसरों का तनाव मैदानी पोस्टिंग के समय ट्रेनिंग में जाने को लेकर है। अधिकारियों का संकट यह है कि बड़ी मुश्किल से मैदानी पोस्टिंग मिली है। वे एक माह के लिए पद छोड़ना नहीं चाहते। उन्‍होंने ट्रेनिंग में जाने के लिए आवेदन भी नहीं किया था लेकिन जाने कैसे नाम आ गया। वे तलाश रहे हैं कि बिना आवेदन भी उनका नाम किसने और क्यों जोड़ दिया। ट्रेनिंग में जाने की प्रक्रिया पूरी करने की अंतिम तारीख 16 मई है। उनके ऊपर दबाव बन रहा है कि वे 16 मई के पहले ट्रेनिंग की औपचारिकताएं पूरी करें। जबकि अफसर मंत्रालय में जुगाड़ लगा रहे हैं कि किसी तरह नाम हट जाए। 

गीता प्रवचन वाले आईएएस की नर्मदा सेवा

गीता पर नियमित प्रवचन कर चर्चा में आए पूर्व आबकारी आयुक्त ओमप्रकाश श्रीवास्तव रिटायर हो गए हैं। सेवानिवृति के बाद उन्होंने होशंगाबाद में अपने घर को आश्रम बना लिया है। इस आश्रम में वे सत्‍पनीक निवास कर रहे हैं। कोठी बाजार नर्मदापुरम् में स्थित इस ‘देह विदेह’ आश्रम में नर्मदा परिक्रमा यात्रियों के आवास, भोजन का प्रबंध किया गया है। 

आध्‍यात्मिक विचारों से ओतप्रोत पूर्व आईएएस ओम प्रकाश श्रीवास्‍तव ने देह-विदेह आश्रम की स्थापना पर लिखा है कि मां नर्मदा के किनारे साधु-संतों और नर्मदा परिक्रमावासियों के आवास व भोजन व्यवस्था तथा सनातन वैदिक धर्म के मूल तत्त्वों को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से इसकी स्‍थापना की गई है। आश्रम के कार्यक्रमों में साधु-संतों व नर्मदा परिक्रमावासियों के लिए आवास व अन्नक्षेत्र का संचालन, श्रीमद्भगवद्गीता की नियमित कक्षाएँ, सोशल मीडिया पोर्टल के माध्यम से सनातन वैदिक धर्म के तत्त्वों का प्रचार-प्रसार, धर्म के नाम पर चलने वाली विभिन्न बातों का प्रमाणिक ग्रंथों के आधार पर फेक्‍ट चेक करना भी शामिल है।

वे विभिन्न संतों और विद्वानों के सहयोग से धर्म विषयक शंकाओं का समाधान, महान् संतों के तात्त्विक प्रवचनों का नियमित ऑडियो-वीडियो प्रदर्शन, 2500 से अधिक पुस्तकों वाले पुस्तकालय को जिज्ञासुओं को उपलब्ध कराने का काम भी करेंगे।