पंचायत चुनाव में अफसरों पर बीजेपी के लिए काम करने के आरोप लगे है। कांग्रेस समर्थकों और निर्दलियों ने आरोप लगाए ही बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी भी खुल कर बोले। ऐसा बोले कि सरकार तो सरकार पूरी ब्‍यूरोक्रेसी कटघरे में खड़ी हो गई। विधायक नारायण त्रिपाठी ने कहा कि पंचायत चुनाव में पटवारियों से लेकर शीर्ष अधिकारियों तक राज्य सरकार के कर्मचारी एक पार्टी विशेष के लिए प्रचार करते देखे गए।

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल होने वाले नारायण त्रिपाठी ने पहले भी कई बार अपनी पार्टी को असहज स्थिति में डाला है। पृथक विंध्य प्रदेश की मांग सरकार और संगठन के लिए मुसीबत बनती जा रही है। त्रिस्तरीय पंचायत व  नगरीय निकाय के चुनाव में उन्‍होंने विंध्य प्रदेश समर्थित उम्मीदवार का प्रचार करने में हिचक नहीं दिखाई चाहे फिर वह कांग्रेस समर्थित ही क्‍यों न हो। 

खबरें हैं कि विंध्य प्रदेश की ज्यादातर पंचायतों और जिला परिषदों में नारायण त्रिपाठी समर्थित उम्मीदवारों ने कड़ी टक्‍कर दी है। इसी दौरान जब प्रशासनिक अमले को किसी एक पार्टी के समर्थकों का सहयोग करते देखा तो नारायण त्रिपाठी भड़क गए। 

नाराज नारायण त्रिपाठी यहां तक कह गए कि चुनाव नहीं होने चाहिए। 'जैसे राज्य विधानसभा में जहां ध्वनि मत से विधेयक पारित होते हैं, उसी प्रकार एक व्यवस्था होनी चाहिए कि ध्वनि मत के बाद विजेता का प्रमाण पत्र किसी विशेष दल को दिया जाए। 

त्रिपाठी ने आरोप लगाया, 'मैं इस मतदान क्षेत्र का दौरा करता रहा हूं, ऐसा लगता है कि यहां चुनाव आयोग नहीं है। अधिकारी बीजेपी के लिए वोट बटोरने का काम कर रहे हैं।' 

उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि मैं बीजेपी के खिलाफ नही हूं। मैं बीजेपी विधायक हूं। मगर जब मैं इस तरह की चीजें देखता हूं तो मुझे दु:ख होता है और परेशान हो जाता हूं। आज इस देश में एक सरकार दो मिनट में बनती और दूसरी सरकार दो मिनट में गिर जाती है। पंचायती राज और नगर निकाय चुनाव में भी ऐसा हो रहा है।

जाहिर है, मैदान के अनुभव के बाद विधायक नारायण त्रिपाठी ने जो कहा उससे सरकार और संगठन का असहज होना ही था। इस बयान के बाद प्रदेश के गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने विधायक त्रिपाठी को बात करने बुलवा लिया। विधायक त्रिपाठी की डॉ. नरोत्तम मिश्रा की मौजूदगी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात भी हुई। 

स्‍वाभाविक है, नारायण त्रिपाठी से उनकी नाराजगी और अन्य मुद्दों पर भी चर्चा हुई होगी। माना जा  रहा है कि नारायण त्रिपाठी को मंत्री न बनाए जाने की टीस परेशान कर रही है। क्षेत्र में अपनी ताकत दिखाने के दौरान वे प्रशासन के रवैये से भौंचक हो गए। 

नारायण त्रिपाठी तो फिर भी विधायक हैं। उनका क्‍या जो सारी जमापूंजी और साख दांव पर लगा कर चुनाव लड़े मगर प्रशासन को निष्‍पक्ष नहीं पा रहे हैं? जैसे, रीवा की घूमन पंचायत के जगजीवन लाल कोल। इस आदिवासी उम्‍मीदवार को चुनाव में पहले 14 वोट से विजयी बताया गया फिर कुछ मिनिट बाद 1 वोट से हारा बता दिया गया। प्रशासन ने पुनर्मतगणना की मांग नहीं सुनी। हाई कोर्ट ने पुनर्मतगणना के आदेश दिए। लेकिन फिर भी पुनर्मतगणना नहीं की गई। ऐसे कई प्रत्‍याशी निराश हैं। 

फिलहाल, बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी की नाराजगी और फिर उनकी मुख्‍यमंत्री व गृहमंत्री से भेंट के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। उस पॉलिटिक्‍स के भी जिसे अफसरों के नाम चमकाया जा रहा है और उसके भी जिसे अफसरों की पॉलिटिक्‍स कहा जाता है। 

साहब की बेचैनी का राज क्‍या है... 

प्रदेश के एक और आईएएस जगदीश जटिया ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति मांग ली है। आपको याद दिला दें कि आईएएस जगदीश जटिया कमलनाथ सरकार में मंडला कलेक्टर थे और जटिया की राय नागरिकता संशोधन कानून 2019 (सीएए) के विरोध में थी। 

आईएएस जटिया के फेसबुक पोस्‍ट के मामले में केंद्र सरकार ने रिपोर्ट तलब की थी। हालांकि, विवाद बढ़ने पर उन्होंने इस पोस्ट को न सिर्फ हटा दिया था बल्कि इस संबंध आगे कोई बात नहीं की थी। तब शिवराज सिंह चौहान ने तत्कालीन राज्यपाल लालजी टंडन को पत्र लिखकर कलेक्टर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।

मार्च 2020 में कमलनाथ सरकार गिरने के बाद जटिया को मंडला कलेक्‍टर पद से हटा दिया गया था। वे श्रम विभाग में उप सचिव हैं। इस पद को लूप लाइन का माना जाता है। सरकार की नाराजगी के चलते प्रशासनिक जगत में भी माहौल उनके अनुकूी नहीं था। यही कारण है कि नौकरी बहुत हुई अब आजादी चाहिए की तर्ज पर उन्‍होंने वीआरएस का आवेदन कर दिया है। 

यूं तो आईएएस जगदीश जटिया अक्टूबर 2022 में ही रिटायर होने वाले हैं मगर समय के पहले ही वीआरएस के लिए आवेदन किया है। नियम है कि वीआरएस के लिए 3 माह का नोटिस देना होता है। यह आवेदन स्‍वीकार हुआ तो उन्‍हें सितंबर में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति मिल सकती है। 

सवाल उठ रहे हैं कि आखिर तयशुदा रिटायरमेंट के एक माह पहले वीआरएस वाने से जटिया को क्‍या हासिल होगा? कहा जा रहा है कि एक और आईएएस राजनीति कर राह चलने वाला है। हालांकि, वीआरएस की खबर का खुलासा होने के बाद आईएएस जगदीश जटिया ने कहा कि वे सरकार में घुटन महसूस कर रहे थे। इसलिए वीआरएस मांगा है। क्‍या यह आजादी उन्‍हें राजनीति के आकाश में ले जाएगी?

सबकी फाइल खोलने वाले की फाइल क्‍यों खुली... 

वे प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया हैं। उनका रूआब इतना है कि अच्‍छे-अच्‍छे अधिकारी उनका सामना करने से बचते रहते हैं। जो कभी बुलावा आ जाए तो अधिकारी पसीना-पसीना। सरकार के इतने विश्‍वस्‍त अधिकारी की केंद्र सरकार से फरियाद कर उनका डेपुटेशन समय के पहले खत्‍म करवा कर भोपाल बुलाया गया था। वही साहब प्रदेश के मुख्‍य सचिव इकबाल सिं‍ह बैंस दिसंबर 2022 में रिटायर होने वाले हैं। सुना है सरकार ने इन साहब को सेवावृद्धि का प्रस्‍ताव केंद्र सरकार को भेज दिया है और तब ही से विरोधियों ने साहब की फाइल खोल दी है!  इसके पीछे की वजह भी दिलचस्‍प है, मुद्दे उछाले जा रहे हैं ताकि उनकी राह में भरपूर कांटे बिछाए जा सकें। 

बीते कुछ समय से केरवा-रातीबड़-नीलबड़ क्षेत्र में वरिष्‍ठ आईएएस द्वारा जमीनों को खरीदने की खबरें आ रही हैं मगर इस सप्‍ताह बिशनखेड़ी क्षेत्र में आईएएस द्वारा खरीदी गई 75 एकड़ जमीन के उपयोग की खबरें अचानक सुर्खियां बन गईं। बताया गया कि इस जमीन पर साहब ने ध्यान-योग केंद्र तथा प्राकृतिक चिकित्‍सा संस्‍थान शुरू करने की प्‍लानिंग की है। प्‍लान तब खुला जब निर्माण की सुगबुगाहट शुरू हुई। 

बस फिर क्‍या था, वे लोग मैदान में उतर आए जिनकी इस क्षेत्र में रिसोर्ट आदि निर्माण की योजना थी और उन्‍हें निर्माण की अनुमति नहीं मिला या जिला प्रशासन ने कुछ माह पहले जिनके निर्माण को ग्रीन जोन में अतिक्रमण बता कर तोड़ दिया था। वर्तमान सीएस इकबाल सिंह बैंस की जमीन के मामलों को खंगालना शुरू कर दिया गया है। इसके पहले पूर्व एसीएस राधेश्‍याम जुलानिया भी कानूनी कार्यवाही में उलझे हुए है। उनके बंगले के निर्माण को भी अवैध बताया गया है। 

अब विरोधी कोशिश कर रहे हैं कि सीएस से जुड़े विवादों को मुद्दा बनाया जाए और खबर को दिल्‍ली दरबार तक पहुंचाया जाए। ऐसा होगा तो ही साहब की कुर्सी हिल सकती है वरना तो सरकार अपना मन बना चुकी है।