समकालीन आतंकवाद एक पूरी तरह से वैश्विक घटना के रूप में उभरा है, जिसमें विनाशकारी क्षमताएं बढ़ती जा रही है। भारत आतंकवाद से सबसे प्रभावित देशों में से एक है। 2022 में भारत वैश्विक आतंकवाद सूचकांक में 13 वें स्थान पर था। भारत कश्मीर में इस्लामी अलगाववादी, पंजाब में सिख अलगाववादी, दक्षिण में लिब्रेशन आफ तमिल टाइगर्स ईलम,असम और पूर्वोत्तर के राज्यों में चरमपंथी के अलावा नक्सली हिंसा में जून 1980 से अप्रेल 2025 तक 122 हमलों में लगभग 3910 लोगों की मौत हुई है।
दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल के अनुसार पिछले 30 वर्षों में भारत के भीतर 180 आतंकवादी समूहों को सूचिबद्ध किया है। जिसमें सीमा पार बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान से संचालित होने वाला अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी नेटवर्क शामिल है। भारत आजादी के बाद से सीमा पार आतंकवाद का सामना कर रहा है। पाकिस्तान प्राॅक्सी के रूप से भारत में आंतकी हमला करवाने की रणनीतियों पर काम कर रहा है।
पाकिस्तान ने 1947 के बाद कश्मीर पर कब्जा करने के लिए अपने पहले प्रयास में जनजातीय कबिलों को प्रशिक्षित और हथियारों से सुसज्जित करने का चुना, न कि इस कार्य के लिए अपनी नियमित सेना को शामिल करने पर विचार किया। इस संघर्ष ने 1947 के युद्ध को तेज कर दिया। पाकिस्तान की मुजाहिदीन का समर्थन करने की रणनीति 1971 के युद्ध में भारत के हाथों करारी हार और पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश में विभाजित करने के लिए पाकिस्तान सेना की प्रतिशोध पर आधारित है। यह भारतीय सेना को व्यस्त रखने और पारंपरिक असमानता को संतुलित करने का एक अपेक्षाकृत सस्ता और आसान तरीका है।
सीमा पार आतंकवाद ने भारत और पाकिस्तान के बीच पारंपरिक और परमाणु संतुलन को अप्रासंगिक बना दिया है। अमेरिकी सरकार का मानना है कि पाकिस्तान चरमपंथी समूहों को धन, प्रशिक्षण और सैन्य सामग्री प्रदान करता है और उनकी विषम रणनीतियों का समर्थन करता है। पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) न केवल कश्मीर में गुप्त युद्ध में शामिल रही है, बल्कि 1984-1995 के दौरान पंजाब में स्वतंत्र खालिस्तान राज्य की मांग करने वाले अलगाववादी समूहों का भी समर्थन किया है, साथ ही अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ जिहाद में भी शामिल रही है।
इन गतिविधियों के परिणामस्वरूप दक्षिण एशिया में आतंकवाद और उग्रवाद का प्रसार बढ़ गया है।अफगान युद्ध के दौरान आईएसआई ने अफगान-पाकिस्तान सीमा पर प्रशिक्षण शिविरों और धार्मिक स्कूलों की एक श्रृंखला बनाई, मुख्य रूप से सऊदी धन के साथ, जो बाद में मुजाहिदीन के लिए "बंदूक-चारे की असेंबली लाइन" के रूप में वर्णित किया गया। इन अफगान विद्रोहियों ने भारत की सुरक्षा को भी परेशान किया है। यूएस सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी द्वारा एंटी-सोवियत अफगान विद्रोहियों को दी गई सैन्य सहायता का एक बड़ा हिस्सा आईएसआई द्वारा भारतीय कश्मीर में खूनी विद्रोह को भड़काया जाने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
भारत और पाकिस्तान अपने-अपने क्षेत्रों में आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के आरोप लगाते हैं। पाकिस्तान आरोप लगाता है कि भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में बलूच अलगाववादियों का समर्थन कर रही है। भारत सरकार आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत नीति के साथ काम कर रही है, जिसमें मजबूत घरेलू तंत्र, उन्नत खुफिया साझाकरण और मजबूत क्षेत्रीय सहयोग शामिल है।
रक्षा मंत्रालय ने कहा है, "भारतीय सेना ने तय टारगेट पर सटीक ऑपरेशन किया है। हमने उन्हीं को मारा है, जिन्होंने हमें मारा है। हमने आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप को तबाह किया है।" भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के नेतृत्व में आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल है। भारत आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों की निन्दा करता है और अमानवीय मानता है।
(लेखक राज कुमार सिन्हा बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ से जुड़े हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)