मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। इसे देवताओं के प्रात:काल की शुरुआत माना जाता है। भगवान कृष्ण ने भी गीता में इसके पुण्य महत्व के बारे में बताया है। इसी दिन भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे थे। इस साल मकर संक्रांति पर 14 जनवरी को सूर्य और शनि एकसाथ मकर राशि में विराजमान होंगे। 29 साल बाद यह संयोग बना है। इससे पहले 1993 में ऐसा अद्भुत संयोग बना था। यह संयोग लोगों के जीवन में सुखद समाचार लाएगा। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, पूजा और दान का विशेष महत्व है। इससे पुण्य फल की प्राप्ति होती है। 14 जनवरी को पड़ने वाली संक्रांति का वाहन बाघ है। यह साल महिलाओं और विद्वानों के लिए लाभकारी है। 

इस दिन तिल के लड्डू, गजक और खिचड़ी दान करने का महत्व है। वहीं गरीबों को कपड़े और कंबल दान करने से कई तरह के संकट दूर होते हैं। सौभाग्य प्राप्ति के लिए महिलाएं इसदिन हल्दी कुमकुम का आयोजन कर सुहागिन महिलाओं को सुहाग सामग्री तोहफे में देती है। इस दिन इन सब बातों का पालन करने से ग्रहों के शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

मकर संक्रांति पर भगवान भास्कर याने सूर्य की उपासना की जाती है। वहीं भगवान विष्णु की पूजा का भी विधान है। भगवान सूर्य को तांबे के लोटे में जल, गुड़ और लाल फूल डालकर अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य नारायण का मंत्र जाप भी फलदाई होता है। उत्तरायण के आगमन से मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है।