रायपुर। देश की जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका प्रोफेसर इलीना सेन का निधन हो गया। वह 69 साल की थीं। कैंसर से संघर्ष कर रहीं प्रोफेसर इलीना सेन ने रविवार को अंतिम साँस ली। वे महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र में प्रोफेसर थीं।  इलीना सेन के अंतिम समय में उनके पति बिनायक सेन, उनकी दो बेटियाँ और माँ उनके साथ थीं।

 छत्तीसगढ़ के आदिवासी खदान मजदूरों की लड़ाई लड़ी

इलीना सेन जाने माने मानवाधिकारवादी डॉक्टर बिनारक सेन की पत्नी थीं। उन्होने छत्तीसगढ़ में एक एक्टिविस्ट के रूप में काम किया। अपने पति के साथ उन्होंने मजदूरों के हक के लिए आवाज उठाई, और खदान मजदूरों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। इलीना को छत्तीसगढ़ में कॉर्पोरेटाइजेशन के खिलाफ खदानों में काम करने वाले मजदूरों के हक की लड़ाई के लिए हमेशा इसके लिए याद किया जाएगा।

सलवा जुडूम के खिलाफ उठाई आवाज

प्रोफेसर इलीना सेन लेखन में भी सक्रिय थीं। उन्होंने दो पुस्तकें भी लिखी हैं: इनसाइड छत्तीसगढ़: ए पॉलिटिकल मेमोरियल एंड सुखवासिन: द प्रवासी महिला। उन्होंने ने अपने पति के साथ मिलकर सलवा जुडूम के खिलाफ आवाज उठाई। छत्तीसगढ़ में कोया कमांडो नामक नागरिक सतर्कता समूहों की भी स्थापना भी की थी।

गरीबों के सस्ते इलाज के लिए की शहीद अस्पताल की स्थापना

इलीना सेन ने दूरस्थ आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने के लिए पर अपने पति के साथ मिलकर काम किया। खनन संबंधित बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए उन्होंने शहीद अस्पताल की स्थापना की, जहां गरीब मजदूरों को सस्ते में स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराई जाती थी।

सार्वजनिक स्वास्थ्य आंदोलन का एक चेहरा थीं इलीना

इलीना के पति डॉक्टर बिनायक सेन को 2010 में छत्तीसगढ़ की एक निचली अदालत ने नक्सली आंदोलन में कथित रूप से समर्थन करने और माओवादियों को राज्य सरकार से लड़ने में मदद करने के लिए राजद्रोह और षड्यंत्र का दोषी पाया गया था। वे नक्सल नेता और एक व्यवसायी, सान्याल के बीच एक कूरियर के रूप में अभिनय करने के आरोप में दो साल जेल में बिताए। 2011 में, उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी, जिसमें पाया गया कि उनके खिलाफ राजद्रोह का कोई मामला नहीं बनता था। इलीना सेन सार्वजनिक स्वास्थ्य आंदोलन का एक सशक्त चेहरा के रूप में हमेशा याद की जाएंगी।