रायपुर। छत्तीसगढ़ में नई शांति प्रक्रिया के तहत विक्टिम यानी पीड़ितों की आपबीती का रजिस्टर तैयार किया जा रहा है। दुनिया भर में करीब एक दर्जन हिंसा पीड़ित देशों में ऐसे रजिस्टर बनाए जा चुके हैं। लेकिन भारत में इसे पहली बार तैयार किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में हिंसा पीड़ितों की आपबीती का रिकॉर्ड रखने की अनोखी पहल हो रही है। हिंसा पीड़ितों का रजिस्टर्ड रिकॉर्ड रखने के लिए ‘बस्तर की पीड़ा पीड़ितों की जुबानी’ मुहिम चलाई जा रही है। जिसके तहत हिंसा पीड़ित व्यक्ति या उनसे जुड़े लोग अपने अनुभव साझा कर सकते हैं।

लोगों से अपील की गई है कि अगर वे स्वयं बस्तर में किसी भी तरह की राजनीतिक हिंसा के शिकार हुए हैं, या फिर किसी पीड़ित या उसके परिवार को जानते हैं, तो पीड़ितों के रजिस्टर में उनकी आपबीती दर्ज करवा सकते हैं। ताकि पीड़ित परिवारों को कुछ मदद मिल सके। वहीं आगे आने वाली पीढ़ियों को वर्तमान में लोगों के दुखदर्द की जानकारी मिल सके।

पीड़ितों का रजिस्टर तैयार करने के लिए एक पूरा सिस्टम तैयार किया गया है। इसमें नक्सल हिंसा पीड़ित और पुलिस हिंसा से पीड़ित लोग अपना ऑडियो रिकार्ड करवा कर पूरी कहानी बयां कर सकते हैं। उसके लिए उन्हें उनकी ही बोली-भाषा में बोलने का मौका दिया जा रहा है। अब तक करीब पांच हजार से ज्यादा लोगों की आपबीती रिकॉर्ड की जा चुकी है। नई शांति प्रक्रिया के तहत आपबीती सुनाने के लिए एक मोबाइल नंबर 7477288333 जारी किया गया है। जिस पर पर मिस्डकॉल करने पर कॉल बैक आता है, इसके बाद फोन पर कुछ निर्देश दिए जाते हैं, जिनका पालन करने पर कहानी रिकॉर्ड की जा सकती है।

अपनी बोली भाषा में रिकॉर्ड होगी आपबीती

अपनी कहानी रिकॉर्ड करने के लिए हिंसा पीड़ित लोगों को अपनी पंसद की बोली का चुनाव करना होगा। हिंदी के लिए एक, हल्बी बोली के लिए दो और गोंड़ी बोली के लिए तीन दबाना होगा। व्यक्ति को तीन मिनट का समय अपनी कहानी सुनाने के लिए दिया जाएगा। तीन मिनट में पूरी कहानी बयां करनी होगी। इस दौरान लोग अपनी आपबीती के साथ वर्तमान हालत के बारे में भी बात कर सकते हैं।

किसी पीड़ित परिवार को मिली मदद और उसकी सफलता की कहानी उनकी जुबानी सुनाने के इच्छुक लोगों के लिए भी ऑप्शन रखे गए हैं। हिंसा पीड़ित लोगों की आपबीती को वेबसाइट पर देखा भी जा सकता है। इस वेबसाइट (www.thenewpeaceprocess.org) पर हिंसा प्रभावित लोगों की पूरी कहानियां मौजूद हैं। 

5 हजार लोग रिकार्ड करवा चुके हैं अपनी दास्तां

बस्तर डायलाग के तहत शांति प्रक्रिया से जुड़े लोगों का कहना है कि अब तक करीब 5 हजार लोगों ने अपनी आवाज में अपना आपबीती रिकार्ड करवाई है। आने वाले दिनों में यह आंकड़ा कई गुना ज्यादा हो सकता है। जिन लोगों ने अपनी दास्तां सुनवाई है उनमें परिवार की हत्या, गांव से बाहर निकालदेने, घरों को जलाने जमीनों से बेदखल कर देने के मामले ज्यादा आए हैं।

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके बस्तर में शांति प्रक्रिया पर काम कर रहे शुभ्रांशु चौधरी का कहना है कि उन्होंने बस्तर में शांति के प्रयासों के तहत पीड़ितों का रजिस्टर बनाने पर काम करना आरंभ कर दिया है। उनका प्रयास है कि इसमें ज्यादा से ज्यादा पीड़ित लोग अपनी व्यथा उनसे साझा करें। उनकी कोशिश है कि हिंसा प्रभावित लोगों की कहानियां दुनिया के सामने लाई जा सकें। गौरतलब है कि इस शांति प्रक्रिया के तहत पुलिस और नक्सली दोनों हिंसा से प्रभावित लोगों को एक मंच पर लाने की कोशिश की जा रही है।

हिंसा पीड़ितों से मांगे जाएंगे हिंसा से निपटने के सुझाव

पुलिस और नक्सली हिंसा पीड़ितों को एक मंच पर लाकर उनसे ही हिंसा का समाधान निकलवाना इसका उद्देश्य है। उल्लेखनीय है कि हिंसा प्रभावित कोलंबिया में विक्टिम्स रजिस्टर में अपनी आपबीती दर्ज करवाने वालों को वहां की सरकार ने क्षतिपूर्ति भी दी थी।

दांडी मार्च की तर्ज पर 12 मार्च से होगी 390 किमी की पदयात्रा

शुभ्रांशु चौधरी ने बताया इस शांति प्रक्रिया के तहत गांधी जी की दांडी यात्रा की तर्ज पर आगामी 12 मार्च से 6 अप्रैल तक पद यात्रा का आयोजन होगा। जिसमें गांधी जी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी भी शामिल होंगे। 12 मार्च से 6 अप्रेल तक होने वाली पदयात्रा दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी मंदिर से रायपुर तक होगी। इस 390 किलोमीटर की यात्रा में 78 लोगों को शामिल करने की योजना है। पद यात्रा में दोनों पक्षों के हिंसा पीड़ितों के शामिल होने की उम्मीद है। उनका मानना है कि दोनों पक्ष बात करने के लिए एक मंच पर आएं, तभी समस्या का हल निकल सकेगा।

हिंसा पीड़ितों को मदद करना है यात्रा का लक्ष्य

इस पदयात्रा का उद्देश्य हिंसा पीड़ितों को लैंड राइट दिलाना, छत्तीसगढ़ से लेकर आंध्र प्रदेश तक जंगलों में भटक रहे करीब 55 हजार विस्थापितों को उनका अधिकार दिलाना है। इसके अलावा जिनकी जमीनें छीन ली गई हैं, उनकी जमीनें वापस दिलाई जाएंगी। प्रदेश में विस्थापितों के पुनर्वास और सरकार से उनके हितों के संरक्षण की मांग भी की जाएगी। विक्टिम्स रजिस्टर का प्रयोग अब तक कोलंबिया, कुवैत, नेपाल, स्पेन, अर्जेटिना, इक्वाडोर, चिली, ग्वाटेमाला, रवांडा, सियेरालियोन, ब्राजील, साउथ अफ्रीका, पेरू, उरुग्वे में सफलता पूर्वक किया जा चुका है। ॉ