सीधी। मध्य प्रदेश में सड़कों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। बारिश के दिनों में राज्य के सुदूर ग्रामीण अंचल के लोगों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। आलम ये है कि सड़क के अभाव में जननी एक्सप्रेस भी गांव तक नहीं पहुंच पाती और खाट पर ही प्रदेश का भविष्य जन्म लेता है। वहीं, गर्भवती महिलाएं जब सड़क बनाने की मांग करती हैं तो भाजपा नेता डिलीवरी डेट पूछकर उनका मखौल बनाते हैं।

सीधी जिले से ऐसा ही मामला सामने आया है। लीला साहू नाम की एक महिला ने पिछले साल गांव में सड़क बनाने की मांग की थी। वीडियो एमपी के सीधी जिले का था और जब वायरल हुआ, तो अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए। लीला साहू तक फरमान पहुंचाया गया कि सड़क जल्द बन जाएगी। एक साल बीत गया, लेकिन सड़क तो छोड़िए, गांव में एक गिट्टी-पत्थर तक न गिरा। अब लीला साहू गर्भवती हैं और उन्होंने फिर से सड़क बनवाने की मांग की है।

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वीडियो में लीला ने कहा कि प्रदेश में डबल इंजन की सरकार के बावजूद यहां सड़क नहीं बन पाई है। कोई जनप्रतिनिधि या अधिकारी इसे देखने तक नहीं आया। गांव में 6 महिलाएं गर्भवती हैं। मेरी भी डिलीवरी का समय आने वाला है। देखना है कि कितनी सुविधाएं मिलती हैं। आम तौर पर तो यही उम्मीद की जाती है कि अगर किसी गांव में सड़क नहीं है, तो बन जानी चाहिए। अगर किसी ने वीडियो बनाकर अपनी पीड़ा बताई है, तो अब तो काम शुरू हो ही जाना चाहिए। लेकिन सीधी से भाजपा सांसद राजेश मिश्रा ने ऐसी दलील दे दी कि सड़क तो छोड़िए, कोई कंकड़ तक न मांगे।

सांसद महोदय से जब इस पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि चिंता की क्या बात है। हमारे पास एंबुलेंस है, अस्पताल है, हर इलाके में आशा कार्यकर्ता हैं। अगर कोई ऐसी बात है, तो आकर अस्पताल में भर्ती हो जाओ। डिलीवरी की एक एक्सपेक्टेड डेट होती है, उससे पहले ही हम उठवा लेंगे। राजेश मिश्रा ने तर्क दिया कि सड़क हम नहीं बनाते, इंजीनियर बनाता है।

वहीं राज्य के पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह दो कदम और आगे बढ़ गए। उन्होंने कहा कि अगर कोई वीडियो बना देगा, तो इसका मतलब ये नहीं कि हम सीमेंट-कंक्रीट या डंपर लेकर पहुंच जाएंगे। कोई कुछ भी पोस्ट कर देगा, तो क्या हम मान लेंगे।

बता दें कि लीला साहू पिछले एक साल से गांव में पक्की सड़क की मांग को लेकर पिछले एक वर्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से भी गुहार चुकी हैं। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब 9 माह की गर्भावस्था में उन्होंने वीडियो बनाया ताकि जिम्मेदारों को ये देखकर ही शायद तरस आ जाए। लेकिन हुआ इसका उल्टा। निर्वाचित जनप्रतिनिधि डिलीवरी डेट पूछकर महिलाओं का माहौल बनाने तक से भी बाज नहीं आ रहे हैं।