नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर दुव्वुरी सुब्बाराव ने चेतावनी दी है कि भारत पर डोनाल्ड ट्रंप के भारतीय निर्यात पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने के प्रस्ताव और भारतीय बाज़ारों में चीनी डंपिंग के जोखिम का दोहरा दबाव है। एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि ये ज्वाइंट प्रेशर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की प्रतिस्पर्धात्मकता को कमजोर कर सकते हैं। जीडीपी वृद्धि को 50 आधार अंकों तक धीमा कर सकते हैं और देश की बेरोजगारी विकास चुनौती को और बदतर बना सकते हैं।

डी. सुब्बाराव, जिन्होंने 2008 के ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस के दौरान भारत का नेतृत्व किया था, ने कहा कि अमेरिका का टैरिफ भारत की जीडीपी के लगभग 2 फीसदी (लगभग 79 अरब डॉलर या 7 लाख करोड़ रुपए) वैल्यू के एक्सपोर्ट को को खतरा है। उन्होंने कहा कि मार्जिन कम हो जाएगा, ऑर्डर डायवर्ट हो जाएंगे, जॉब जाएंगी और प्लांट्स का साइज छोटा हो जाएगा। उन्होंने अनुमान लगाया कि भारत इस झटके को कितनी अच्छी तरह से संभालता है या डायवर्ट करता है, इसके आधार पर ग्रोथ रेट पर 20-50 बेसिस प्वाइंट्स का असर पड़ेगा।

उन्होंने आगाह किया कि बीजिंग की इंडस्ट्रीयल कैपेसिटी एक अतिरिक्त जोखिम पैदा करती है। चीन को अमेरिका से टैरिफ बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए चीनी निर्यातक सरप्लस प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए भारत का रुख कर सकते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि हमें अमेरिकी बाजार हिस्सेदारी में अपने नुकसान की भरपाई के लिए चीन द्वारा हमारे बाजारों में डंपिंग की संभावना पर भी विचार करना होगा। 

सुब्बाराव के अनुसार, अमेरिकी टैरिफ और चीनी डंपिंग का दोहरा दबाव, चीन+1 रणनीति के तहत ग्लोबल वैल्यू चेन में शामिल होने के भारत के प्रयास को कमजोर कर सकता है। उन्होंने आगे कहा कि वितरण संबंधी प्रभाव प्रतिगामी होंगे, आय असमानता को बढ़ाएंगे और औपचारिक रोजगार बाजार पर दबाव डालेंगे।

सुब्बाराव ने ट्रंप द्वारा भारत को “रूस की तरह मृत” कहे जाने के बाद संभावित प्रतिष्ठा को होने वाले नुकसान की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा भारत के लिए, एक अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा ‘डेड’ इकोनॉमी करार दिया जाना प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने आगे कहा कि ऐसी टिप्पणियां भारत के रिस्क प्रीमियम को बढ़ा सकती हैं, निवेशकों की भावनाओं को प्रभावित कर सकती हैं, और प्रत्यक्ष नीतिगत कार्रवाई के बिना भी पोर्टफोलियो पुनर्वितरण को बढ़ावा दे सकती हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि ग्लोबल लेवल पर लिक्विडिटी में कमी और लेंडिंग कॉस्ट में वृद्धि के साथ, भारत को निवेशकों का विश्वास और व्यापक आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए कमजोर सेक्टर्स को बचाना होगा और संरचनात्मक सुधारों में तेजी लानी होगी।