रायपुर। भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार शाम निधन हो गया। उन्होंने 88 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। शुक्ल काफी समय से उम्र संबंधी जटिलताओं से ग्रस्त थे और रायपुर एम्स में उनका इलाज चल रहा था।

उनके पुत्र शाश्वत शुक्ल ने बताया कि सांस लेने में तकलीफ होने के बाद शुक्ल को इस महीने की दो तारीख को रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था। आज शाम 4.48 बजे में उन्होंने अंतिम सांस ली। शुक्ल के परिवार में उनकी पत्नी, बेटा शाश्वत और एक बेटी है।

शाश्वत ने बताया कि शुक्ल के पार्थिव शरीर को पहले उनके निवास स्थान ले जाया जाएगा। उनके अंतिम संस्कार के संबंध में जल्द ही जानकारी दी जाएगी। शाश्वत शुक्ल ने बताया कि अक्टूबर माह में सांस लेने में हो रही तकलीफ के बाद शुक्ल को रायपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तबीयत में सुधार होने के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी तब से वह घर पर ही इलाज करा रहे थे।

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में एक जनवरी 1937 को जन्मे विनोद कुमार शुक्ल हिंदी साहित्य के ऐसे रचनाकार थे जो बहुत धीमे बोलते थे, लेकिन साहित्य की दुनिया में उनकी आवाज बहुत दूर तक सुनाई देती थी। उन्होंने मध्यमवर्गीय, साधारण और लगभग अनदेखे रह जाने वाले जीवन को शब्द देते हुए हिंदी में एक बिल्कुल अलग तरह की संवेदनशील और जादुई दुनिया रची है।

'नौकर की कमीज', ‘खिलेगा तो देखेंगे', ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी' और ‘एक चुप्पी जगह' जैसे उपन्यासों के रचयिता विनोद कुमार शुक्ल को 59 वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 21 नवंबर को शुक्ल को उनके रायपुर स्थित निवास पर आयोजित एक समारोह में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था।