इंदौर। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा केंद्र सरकार के अध्यादेश के बाद मॉडल एक्ट (कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य) लागू किए जाने का प्रदेशभर में विरोध हो रहा है। किसानों और व्यापारियों के बाद अब राज्य के मंडियों में कार्यरत कर्मचारी भी इस फैसले के विरोध में खुलकर सामने आ गए हैं। प्रदेशभर के मंडी कर्मचारियों ने इस कानून के खिलाफ 16 जुलाई को छुट्टी पर जाने का फैसला लिया है। इस दौरान वे जिला कलेक्टरों को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपकर इस एक्ट को वापस लेने की मांग करेंगे। सरकार तक अपनी बात रखने के कर्मचारियों ने एक संयुक्त मोर्चा का गठन किया है।

संयुक्त संघर्ष मोर्चा मंडी बोर्ड का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा 5 जून से जारी अध्यादेश, कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) और प्रदेश सरकार के मॉडल एक्ट से सरकारी मंडियां खत्म हो जाएगी। नतीजतन मंडी से जुड़े लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। इससे प्रदेश के किसानों, व्यापारियों, हम्माल-तुलावटियों व कर्मचारियों में अराजकता का माहौल है। उन्होंने प्रदेश सरकार से इसे तत्काल वापस लेने की मांग की है। मोर्चे ने कई बार प्रदेश सरकार और प्रबंध संचालन मंडी बोर्ड भोपाल को चिट्ठी लिखकर इस बारे में अनुरोध किया है। लेकिन सरकार द्वारा कोई सुनवाई न होने के बाद उन्होंने 16 जुलाई को सामुहिक छुट्टी पर रहने का निर्णय लिया है। 

प्रदेश की किसान यूनियन भी व्यापारियों और कर्मचारियों के साथ इस कानून का विरोध कर रहे हैं। किसान यूनियन के नेताओं का आरोप है कि केंद्र सरकार ने बड़ी कंपनियों को फायदा दिलाने के लिए इस कानून को लागू किया है। इस कानून के बाद राज्यभर में प्राइवेट मंडियां शुरू हो जाएंगी वहीं सरकारी मंडियां बंद हो जाएंगी। इसके बाद बड़ी कंपनियों का मंडियों पर आधिपत्य रहेगा और वह किसानों को मनमाने तरीके से लूटेंगे। 

बता दें कि सरकार द्वारा बनाए गए नए कानून के तहत अब केवल पैन कार्ड के आधार पर कोई भी किसानों से उनका माल खरीद सकता है। ऐसे में अगर खरीददार भुगतान में आनाकानी, देरी या उपज के पैसे देने से इंकार करे तो इसका जवाबदार कोई नहीं रहेगा। इससे रोज नए विवाद सामने आने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। इसलिए संयुक्त मोर्चा, किसान और व्यापारियों का कहना है कि मंडियों पर सरकारी नियंत्रण जरूरी है और वह सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।