थाईलैंड में पिछले एक महीने से चल रहे लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शन अब उफान पर हैं। राजशाही का विरोध कर रहे देश के प्रदर्शनकारी नया संविधान, नए चुनाव और दमनकारी कानूनों को खत्म करने जैसी मांग कर रहे हैं। कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर ये प्रदर्शन रुक गए थे, लेकिन छात्र नेताओं ने इन प्रदर्शनों में फिर से जान डाल दी है। प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री प्रयुथ चान ओचा की सरकार के खिलाफ गुस्से से भरे हुए हैं। प्रयुथ 2014 में निर्वाचित सरकार का तख्ता पलट कर सैन्य कमांडर के तौर पर सत्ता में आए थे।

तानाशाही मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए हजारों प्रदर्शनकारी 16 अगस्त की दोपहर में राजधानी बैंकॉक के लोकतंत्र स्मारक के पास एकत्रित हुए। यह 1932 की क्रांति की याद में बनाया गया था, जिसने देश में निरंकुशता का अंत कर दिया था।

प्रशासन ने पिछले कुछ दिनों में तीन लोकप्रिय छात्र नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था, जिन्हें बाद में जमानत पर छोड़ दिया गया। बताया जा रहा है कि ये प्रदर्शन हांगकांग के प्रदर्शनों से प्रभावित हैं और खुद के नेतारहित होने का दावा करते हैं।

प्रदर्शनकारी देश की राजशाही को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि यह तय होना चाहिए कि आखिर राजशाही का इस देश में क्या रोल और योगदान है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री प्रयुथ प्रदर्शनकारियों की मांगों को अस्वीकार बता रहे हैं।

वहीं राजा और रानी के समर्थन में पीले कपड़े पहनकर कुछ लोगों ने प्रदर्शन किया। हालांकि, देश में प्रधानमंत्री और राजशाही के खिलाफ प्रदर्शनों का रंग चढ़ता जा रहा है। बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस महामारी ने 1997 के बाद पहली बार देश में आर्थिक हालत खराब कर दी है। लाखों लोगों की नौकरियां चली गई हैं और संकट ने थाईलैंड की अर्थव्यवस्था की उस क्रूर सच्चाई को सामने ला दिया है, जो मूल रूप से अमीरों और सैन्य शासन के समर्थकों के हितों के लिए काम करती है।