छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा जिले में मासूमों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। जहरीले कफ सिरप के कारण एक के बाद एक मासूमों की जानें जा रही हैं। इसी क्रम में शनिवार को एक डेढ़ वर्षीय बच्ची ने दम तोड़ दिया। इसी के साथ एक महीने के भीतर किडनी फेलियर से जान गंवाने वाले मासूमों की संख्या बढ़कर 10 हो गई है।

छिंदवाड़ा के बड़कुई निवासी डेढ़ वर्षीय योगिता ठाकरे पिछले 10 दिनों से नागपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती थी। उसे पेशाब न होने की समस्या (किडनी फेलियर) के चलते पहले परासिया अस्पताल लाया गया था, जहां से हालत गंभीर होने पर नागपुर रेफर किया गया। शनिवार दोपहर इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

योगिता के पिता सुशांत ठाकरे एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी करते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण परासिया के स्थानीय लोगों ने मिलकर बच्ची के इलाज के लिए आर्थिक सहायता जुटाई थी। इलाज जारी था, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद बच्ची की जान नहीं बच सकी। योगिता की मौत पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दुख जताया है साथ ही परिजनों को पचास लाख रुपए मुआवजा देने की मांग की है।

कमलनाथ ने एक्स पोस्ट में लिखा, 'ज़हरीला कफ सिरप पीने से अब तक छिंदवाड़ा में 10 बच्चों की मौत हो चुकी है। दुख की इस घड़ी में मेरी भावनाएँ पीड़ित परिवारों के साथ हैं। लेकिन यह याद रखना होगा कि यह महज़ दुर्घटना नहीं बल्कि मानव निर्मित त्रासदी है। मैं मध्य प्रदेश सरकार से माँग करता हूँ कि एक-एक मृत बच्चे के परिजनों को 50-50 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाए।'

कमलनाथ ने आगे कहा कि जो बच्चे अभी भी अस्वस्थ हैं, उनके बारे में जानकारी मिल रही है कि उपचार का ख़र्च वे अपने पास से उठा रहे हैं और सरकार की ओर से कोई उचित सहायता नहीं मिली है। मध्य प्रदेश सरकार से आग्रह है कि सभी बीमार बच्चों के उपचार का पूरा ख़र्च सरकार उठाए। सरकार को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि प्रदेश में किस तरह की दवाओं की बिक्री हो रही है। नक़ली और ज़हरीली दवाओं के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर अभियान चलाने की ज़रूरत है ताकि प्रदेश में इस तरह की त्रासदी दोबारा देखने को ना मिले।

बता दें कि योगिता से पहले छिंदवाड़ा के शिवम, विधि, अदनान, उसैद, ऋषिका, हेतांश, विकास, चंचलेश और संध्या की मासूम हंसी हमेशा के लिए खामोश हो चुकी है। दर्जनों मासूम अभी भी विभिन्न अस्पतालों में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। तमिलनाडु सरकार की जांच रिपोर्ट सामने आने के मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी स्वीकारा कि छिंदवाड़ा में Coldrif सिरप के कारण ही बच्चों की मौत हुई। उन्होंने कहा कि इस सिरप की बिक्री को पूरे मध्य प्रदेश में बैन कर दिया गया है।

अब सवाल ये है कि जब प्रदेश के नौनिहालों की ज़िंदगी दांव पर थी, तो तमिलनाडु की रिपोर्ट आने का इंतज़ार क्यों किया जा रहा था? क्या मध्य प्रदेश सरकार दवाओं की जांच कराने में सक्षम नहीं थी? तमिलनाडु फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने कांचीपुरम की Sresan फार्मा कंपनी से कोल्ड्रिफ सिरप के सैंपल लिए जिनमें जिनमें खतरनाक रसायन डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) या ईथाइलीन ग्लाइकॉल (ईजी) पाई गई। इस सिरप के बैच नंबर एसआर-13 में डीईजी की मात्रा तय सीमा से कहीं ज्यादा (48.6% तक) पाई गई।

DEG एक जहरीला रसायन है, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर पेंट, ब्रेक ऑयल और प्लास्टिक बनाने में होता है। दवाओं में इसकी बहुत सीमित मात्रा की अनुमति होती है, जो शरीर को नुकसान न पहुंचाए। लेकिन कोल्ड्रिफ सिरप में डीईजी की इतनी ज्यादा मात्रा थी कि यह बच्चों के लिए जानलेवा साबित हुई। यह रसायन किडनी और लिवर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, नसों पर असर डाल सकता है और खासकर छोटे बच्चों के लिए घातक है।