भोपाल। मध्य प्रदेश में कथित लव जिहाद रोकने के नाम पर लाया गया धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश अब राजपत्र में भी जारी हो गया है। इसके साथ ही यह कानून अब पूरे प्रदेश में लागू हो गया है। मध्य प्रदेश के गृह विभाग ने इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है।



शिवराज सरकार ने पूरे प्रदेश में धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 को लागू किया है। इस विधयेक के अंतर्गत किसी व्यक्ति को लोभ, लालच या भय दिखा कर धर्म परिवर्तन कराने वालों के खिलाफ सजा का प्रावधान किया गया है। अध्यादेश का उल्लंघन करने पर तीन साल से दस साल तक के कारावास और 50 हजार रूपए अर्थदण्ड और सामूहिक धर्म परिवर्तन (दो या दो से अधिक व्यक्तियों का) का प्रयास करने पर 5 से 10 वर्ष के कारावास एवं एक लाख रूपए के अर्थदण्ड का प्रावधान किया गया है।

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कानून में किए गए प्रावधानों के मुताबिक़ अनुसूचित जाति/ जनजाति की लड़की या नाबालिग को बहला-फुसलाकर धर्म परिवर्तन के इरादे से शादी करने वाले को दस साल तक की क़ैद हो सकती है। धर्म छिपाकर की गई शादी को अमान्य या रद्द घोषित करने का प्रावधान भी इस प्रस्तावित विधेयक में किया गया है। एक प्रावधान यह भी है कि अगर अलग-अलग धर्मों को मानने वाले व्यक्ति आपस में शादी करना चाहते हैं तो उन्हें एक महीने पहले कलेक्टर के पास आवेदन देकर अनुमति हासिल करनी होगी। अगर कलेक्टर की इजाज़त के बिना ऐसी शादी हुई तो शादी करने वाले और कराने वाले सभी दंडित किए जा सकते हैं।

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दरअसल ऐसे ही मिलते जुलते अध्यादेश बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश में भी लागू हो चुका है। बाकी बीजेपी शासित राज्य भी ऐसे कानून लाने की तैयारी में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सरकारों को नोटिस भी भेज चुका है। 

जानकार बताते हैं कि इस कानून के दुष्परिणाम आने की संभावना बहुत अधिक है। हाल ही में कानपुर की एसआईटी ने भी लव जिहाद के कथित 14 मामलों की जांच की थी। जिसमें उसे एक भी मामले में साजिश या फंडिंग के सबूत नहीं मिला। खुद गृह मंत्रालय यह बात कबूल चुका है कि भारत में लव जिहाद जैसे किसी अपराध का कोई वजूद ही नहीं है। जबरन धर्म परिवर्तन या धोखाधड़ी के ज़रिये धर्म परिवर्तन के मामलों में क़ानूनी कार्रवाई के लिए पर्याप्त प्रावधान पहले से ही मौजूद हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट अपने एक आदेश में साफ़ कर चुका है कि दो बालिग लोग अगर एक साथ रहने, शादी करने का फ़ैसला करते हैं तो यह उनकी व्यक्तिगत आज़ादी का मसला है। जीवनसाथी चुनना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। वो किस धर्म को मानते हैं, इससे किसी दूसरे का कोई लेना-देना नहीं है। न ही इस तरह की शादियों में दखल देने का सरकारों को कोई अधिकार है।