भोपाल। राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने हर मौसम में बर्बाद हो रही किसानों की फसल पर चिंता व्यक्त करते हुए  बीज प्रमाणीकरण को लेकर सरकार के अगंभीर होने के आरोप लगाए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा है कि गुणवत्ता हीन बीज से किसानों की फसल चौपट हो रही है। कृषकों को बेहतर फसल उत्पादन के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की आवश्यकता होती है जो बीमारियों और सूखे की स्थिति में भी अपने आप को जीवित रख सकते हैं। मगर मध्यप्रदेश में अमानक बीज उत्पादन का काम पिछले 10 वर्षों में बड़े स्तर पर बढ़ा है।और इस कारण किसानों का घाटा भी बढ़ गया है। 

राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा है कि फसल को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए भी अच्छे बीज का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। बीजों की गुणवत्ता को वांछित स्तर पर सुनिश्चित करने के लिए बीज प्रमाणीकरण का प्रावधान है जिसके अंतर्गत बीज का सत्यापन, फसल का परीक्षण, प्रयोगशाला परीक्षण व टैगिंग की विधिवत प्रक्रिया होती है। आज जो किसानों की हालत खराब है उसमें सबसे बड़ा दोष अप्रमाणित, गुणवत्ता हीन व घटिया बीजों का है। बीज खराब होने से फसल खराब होती है और खाद बीज खरीदने के लिए ऋण के बोझ से दबा किसान आत्महत्या जैसे घातक कदम उठा लेता है। 

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वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि मध्य प्रदेश में खरीफ की प्रमुख फसल सोयाबीन रही है जिसको पीला सोना कहा गया है। सोयाबीन की बुआई के शुरुवाती दौर में किसानो को सोयाबीन की फसल से बड़ा फायदा हुआ था जिसके कारण पूर्व की फसलों को छोड़कर सोयाबीन शुरू हुआ, इसी के साथ सोया फैक्ट्री शुरू हुई, तेल का व्यापार और DOC का एक्सपोर्ट शुरू हुआ। जिसका फायदा समूचे प्रदेश को मिला है।

किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है सोयाबीन की फसल 
दिग्विजय सिंह ने कहा कि वर्तमान में जो हालात हैं उसमें सोयाबीन की फसल किसानो के लिए घाटे का सौदा बनती जा रही है और किसान के पास इस फसल का कोई मजबूत विकल्प नहीं है। जिसके कारण प्रदेश का किसान कर्ज में फसता जा रहा है, इस घाटे को नजदीक से समझने से ये निष्कर्ष निकलता है कि किसानों को उत्पादन लागत प्रति एकड़ एक सामान लगती है चाहे उत्पादन 3 क्विंटल हो या 13 क्विंटल हो। यह बीच का अंतर किसानों के लिए घाटा है। यह अंतर इसलिए आ रहा है की प्रदेश में फसलो के उन्नत और प्रमाणित बीज की जगह किसानों को कंपनियों और बीज प्रमाणीकरण की मिलीभगत से मंडी से खरीदी गई सोयाबीन को प्रमाणित और उन्नत बीज बनाकर बेचा जा रहा है। जिसके कारण कम अंकुरण होने लगा है। और यही कारण है कि 30 किलो प्रति एकड़ बीज बुआई की जगह किसानों को 70 किलो तक बीज की बुआई करनी पड़ रही है जिससे लागत दुगनी और उत्पादन एक चैथाई हो रहा है। बीजों में अनुवांशिक शुद्धता की कमी के कारण कीट व बीमारियां लग रही हैं जिससे उत्पादन प्रभावित हो रहा है।

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दिग्विजय सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश में अमानक बीज उत्पादन का काम पिछले 10 वर्षों में बड़े स्तर पर बढ़ा है। बीज विक्रेता कंपनियों को बीज प्रमाणीकरण के सहयोग से काम करने पर मंडियो की सोयाबीन को प्रमाणित और उन्नत बीज के रूप में बेचने से दुगना फायदा होता है। किन्तु यह सब करने के लिए बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा कंपनियों के साथ मिलकर कागजों पर फर्जी बीज उत्पादन की प्रक्रिया की जाती है। जिसमें किसानो के नाम बीज उत्पादन का पंजीयन दिखाया जाता है। किसान से बीज खरीदने और भुगतान जैसी सभी प्रकिया कागजों पर दिखाई जाती है किन्तु वास्तविकता में किसान उस जमींन पर दिखाई गई फसल और किस्म को उगाता नहीं और न ही कंपनियों को बीज बेचता है। इस प्रक्रिया में कंपनियां अपने क्षेत्रीय दलालों के माध्यम से किसानों की बी1 और खसरा की कॉपी लेकर किसानों का फर्जी पंजीयन कर देते हैं और खाना पूर्ति के लिए किसानो को खाली बैग ,टैग और बिल देते हैं जिससे जाँच के समय बीज की थैली, टैग और बिल दिखाए जा सकते है।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि वर्तमान में मध्य प्रदेश में खंडवा जिले में लम्बे समय से नकली टैग, अमानक बीज की पैकिंग और महाराष्ट्र की मंडियों से सोयाबीन खरीदकर उस सोयाबीन को टी. एल. और प्रमाणित बीज के रूप में बेच रहे हैं। हमें ये जानकारी मिली है कि प्रदेश की 9 से 10 कंपनियों द्वारा महाराष्ट्र में बीज बिक्री के लाइसेंस अनियमितता, गुणवत्ता हीन और कम अंकुरण की शिकायत के कारण महाराष्ट्र सरकार द्वारा लाइसेंस निरस्त किए गए जिसमें से आधी कम्पनिया खंडवा की हैं और पूर्व में भी बीज उत्पादन में खंडवा पर सवालिया निशान खड़े हुए। 

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दिग्विजय सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश के होशंगाबाद व हरदा जिले में अधिकांश किसान अपनी सोयाबीन को हार्वेस्टर मशीन से सोयाबीन की कटाई करते है जिसकी गुणवत्ता दिखने में अच्छी नहीं होती और अंकुरण भी कम होता उसके बाबजूद वहां पर बड़े स्तर से बीज उत्पादन का काम किया जा रहा जबकि पिछले बर्ष और इस बर्ष वहां अधिकांश फसल चौपट है फिर भी बीज कंपनियों को बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा 15 से 20 क्विन्टल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन दिया जा रहा है। इसी प्रकार उज्जैन और देवास जिले में JS 335 किस्म की बुबाई नहीं होती है फिर भी सैकड़ो हेक्टेयर ज़नीनों में फर्जी तरीके से बुबाई दिखाई गई एवं ठीक इसी प्रकार इंदौर और धार में ब्रीडर सीड और किस्मों की बुबाई में सैकड़ो अनियमितताओं की शिकायत किसानों ने की हैं। अमानक बीज के वितरण की पोल धार जिले की सरदारपुर तहसील के किसानों ने खोली है। यहां कंपनियों द्वारा खाली थैली, टैग और बिल का मामला अभी संज्ञान में आया जो दर्शाता है की समूचे प्रदेश में अमानक बीज का गौरख धंधा बड़े स्तर से चल रहा है। अमानक बीज के गौरख धंधे को नहीं रोका गया तो "सोया" प्रदेश किसानों के लिए "रोता प्रदेश" बन जायेगा।

किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक कड़े कानून की आवश्यकता

दिग्विजय सिंह ने कहा कि इंदौर के ईगल सीड के 15 में से 14 सैम्पल फैल हुए। कृषि मंत्री कमल पटेल ने रासुका लगाने के लिए प्रेस में कहा था फिर किसने सांठ-गांठ करके उस कम्पनी को कुछ ही दिनों में दोषमुक्त करार दे दिया। इससे ये साबित हो रहा है कि प्रदेश में सत्ताधारी नेताओं, बीज विक्रेता कंपनियों और भ्रष्ट अधिकारियों के गठजोड़ से संगठित लूट हो रही है, जिसके शिकार अन्नदाता किसान हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसानों के साथ न्याय करने के लिए मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार के कृषि मंत्रालय ने "शुद्ध के लिए युद्ध" मुहिम चलाई थी, जिसमें बड़ी संख्या में अमानक बीज विक्रेताओं पर कार्यवाही की गई थी। माफियाओं और दलालों पर सख्त कार्रवाई करके ही  अप्रमाणित और घटिया बीज को बेचने से रोका जा सकता है। दिखावे की कार्यवाही की बजाए अमानक बीज को प्रतिबंधित करने के साथ अमानक बीज बेचने वाली कंपनियों को भी ब्लैक लिस्ट करने की आवश्यकता है।

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दिग्विजय सिंह ने कहा कि किसानों की आय में वृद्धि, प्रमाणित और मजबूत बीज के प्रयोग से संभव हो सकती है जिसके लिए कड़े कानून बनाने की आवश्यकता है।  कानून बनाने के लिए एक मजबूत दृढ़ इच्छा शक्ति वाली सरकार, केंद्र और राज्य में होना चाहिए। खाद्य पदार्थों, खाद व बीजों में मिलावट व अमानक बीजों की बिक्री के प्रतिबंध के लिए क्रांति की आवश्यकता है जो सिर्फ कांग्रेस कर सकती है। कांग्रेस अब हर स्तर पर मजबूती के साथ किसानों की लड़ाई जमीन पर लड़ेगी क्योंकि किसान समृद्ध होंगे तो देश अपने आप समृद्धि के रास्ते पर चल निकलेगा।