भोपाल। केंद्र की मोदी सरकार हो या राज्यों में बीजेपी की सरकारें, उनके तमाम नेता-मंत्री बार-बार कहते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य बंद नहीं होगा, इसे हर हाल में जारी रखा जाएगा। लेकिन मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल किसानों से किए जा रहे इस वादे को लिखकर देने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में सवाल ये है कि बीजेपी नेता अपने जुबानी वादे को लिखित रूप में देने से इनकार क्यों कर रहे हैं?

कमल पटेल ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि मोदी सरकार के बनाए नए कृषि कानून किसानों के हित में हैं और उनसे न्यूनतम समर्थन मूल्य को कोई खतरा नहीं है। कमल पटेल ने ये भी कहा कि वे खुद और उनकी पूरी पार्टी किसानों को समर्थन मूल्य दिए जाने के पक्ष में हैं। लेकिन जब कृषि मंत्री से यह कहा गया कि किसानों को MSP दिए जाने की गारंटी क्या वे लिखकर दे सकते हैं? तो इस पर कृषि मंत्री ने कहा कि लिखकर क्यों दूं। कृषि मंत्री यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा, सरकार क्या सारा अनाज खरीदेगी ? जितना अनाज गरीबों में बांटा जाता है, सरकार उतना ही खरीदती है। और हम वही खरीदेंगे। 

 बीजेपी शासित राज्य के कृषि मंत्री का यह बयान काफी अहमियत रखता है। उनकी बातों से साफ है कि बीजेपी नेता भले ही जुबानी तौर पर एमएसपी जारी रखने की बात करते हों, लेकिन उन्हें खुद अपनी बात पर इतना भरोसा नहीं है कि वो इसे लिखकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर सकें। हैरानी की बात ये है कि जिन मुद्दों को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं, उन पर ऐसा दोहरा रवैया रखने के बावजूद तमाम बीजेपी नेता विपक्ष पर किसानों को भड़काने का आरोप लगाते हैं।

किसानों के मुद्दे पर बीजेपी नेताओं के विरोधाभासी बयानों की ये पहली मिसाल नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी नए कृषि कानून से किसानों को देश भर में कहीं भी फसल बेचने की इजाजत मिलने का दावा करते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश और हरियाणा में उन्हीं की पार्टी के मुख्यमंत्री कहते हैं कि हम अपने राज्य में पड़ोसी राज्यों के किसानों की फसल बिकने नहीं देंगे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री तो ऐसा करने वालों पर बेहद सख्ती से कार्रवाई किए जाने की धमकी तक दे चुके हैं।

बीजेपी के मंत्रियों और नेताओं के इन विरोधाभासी बयानों से किसानों की ये आशंका और मज़बूत हो रही है कि बीजेपी की सरकारें उनके नहीं, बल्कि बड़े कॉरपोरेट के हितों को ध्यान में रखकर काम कर रही हैं। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद कोई समाधान नहीं निकल पाना भी मोदी सरकार और किसानों के बीच बढ़ते अविश्वास का संकेत है।