खंडवा। मध्य प्रदेश के खंडवा में एक और किसान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली हैं। खरीफ सीजन की सोयाबीन फसल खराब होने और बढ़ते कर्ज के चलते किसान ने यह आत्मघाती कदम उठाया है। इस मामले में पुलिस ने खेत से किसान का शव बरामद किया और जिला अस्पताल में पोस्टमार्टम कराया। मर्ग कायम कर कोतवाली पुलिस जांच में जुट गई हैं।जिलें में बीते दो महीनों में पांच किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
घटना रामनगर पुलिस चौकी क्षेत्र के हापला-दीपला गांव की हैं। मृतक की पहचान अखिलेश पिता जगदीश सोलंकी (38) के रूप में हुई हैं। गांव के सरपंच अर्जुनसिंह सोलंकी ने कहा कि किसान रात में खेत पर सिंचाई के लिए गया हुआ था, उसने गेहूं की फसल बो रखी थी। रात 2.30 बजे घर से निकला था, जो कि सुबह 7 बजे घर न आने पर परिवार वालों ने फोन किया तो मोबाइल बंद आया।
परिवार की चिंता तब और बढ़ गई जब किसान 8 बजे तक घर नहीं आया। फिर परिवार के लोग खेत पर गए, जहां देखा कि वह पेड़ पर फांसी के फंदे से लटका था। गांव वालों ने पुलिस को सूचना दी। रामनगर चौकी की पुलिस मौके पहुंची, तब शव को फंदे से उतारा गया। किसान की आत्महत्या के पीछे कर्ज का मामला हैं। उस पर बैंकों का 3 लाख रुपए का कृषि ऋण हैं। वहीं कुछ साहूकारों से अलग कर्ज ले रखा था।
बता दें कि खंडवा जिले में इस साल सोयाबीन फसल में नुकसानी ज्यादा रही हैं, किसान को लागत खर्च भी नहीं मिल पा रहा। यही कारण है कि दो महीने में पांच किसान आत्मघाती कदम उठाने को मजबूर हुए।बेमौसम बारिश, कर्ज का बोझ और बाजार में उचित दाम न मिलने की वजह ने इन किसानों को इतना तोड़ दिया कि उन्होंने जीने की बजाय मौत को गले लगाना बेहतर समझा।
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, इन मौतों के पीछे चार प्रमुख कारण हैं, मौसम की मार, कम भाव, महंगी खेती और सरकारी मदद का अभाव। इस साल दीपावली से पहले हुई बेमौसम बारिश ने मक्का, सोयाबीन और धान जैसी फसलों को 50% से 100% तक बर्बाद कर दिया। जो थोड़ी-बहुत फसल बची, उसे मंडी में एमएसपी से बहुत कम दाम पर बेचना पड़ा। किसान संघ से जुड़े राहुल धूत बताते हैं कि मक्का का एमएसपी 2090 रुपये है, लेकिन मंडी में 1100 में बिक रही है। सोयाबीन का एमएसपी 4600 रुपये है पर किसान को 4000 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा नहीं मिल रहा। इसके अलावा, बीज, खाद और कीटनाशक की किल्लत ने खेती की लागत बढ़ा दी है।
मामले पर कांग्रेस नेता अरुण यादव ने कहा कि यह किसान विरोधी नीतियों का भयावह परिणाम है। सरकार की किसान विरोधी नीतियों की वजह से मध्य प्रदेश में किसानों की आत्महत्याओं के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। लगातार बढ़ती खेती की लागत, फसलों का उचित मूल्य न मिलना, कर्ज़ का बढ़ता बोझ और गंभीर आर्थिक संकट... इन सभी चीजों ने किसानों को निराशा और मजबूरी के अंधकार में धकेल दिया है। दुखद है कि सरकार की उदासीनता और संवेदनहीन रवैये के कारण किसानों का हौसला टूटता जा रहा है।