भोपाल। मध्य प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन में उत्पन्न हो रही बाधा को केंद्र सरकार ने संज्ञान में लिया है। विभिन्न नागरिक संगठनों की शिकायत पर केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय ने राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। बता दें कि मध्य प्रदेश में 2019 से जनवरी 2025 तक 6,27,513 दावे प्राप्त हुए हैं जिसमें से 3,22,699 दावे को खारिज किया जा चुका है।
दरअसल, वन अधिकार कानून 2006 के बेहतर क्रियान्वयन के लिए 2019 में वन मित्र एप और पोर्टल लाया गया था। यह पोर्टल आदिवासी समुदाय की सुविधा के लिए डिजाइन किया गया था। परन्तु राज्य में पोर्टल को आधार बनाकर आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। इसकी शिकायत विगत 13 फरवरी को मध्यप्रदेश के 11 आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों ने केन्द्रीय जनजातीय मंत्रालय दिल्ली से किया था। जिसमें सर्व आदिवासी समाज संगठन डिंडोरी के हरी सिंह मरावी, प्रकृति सेवा संस्थान मेहंदवानी के राजेंद्र कुमार सैयाम, पारम्परिक ग्राम सभा बजाग के महेंद्र सिंह परस्ते और बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राज कुमार सिन्हा शामिल हैं।
यह भी पढ़ें: रीवा में खुलेआम बिक रही नशीली कोरेक्स, कांग्रेस नेता अजय सिंह ने वीडियो जारी कर प्रशासन को घेरा
जनजातीय मंत्रालय को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि अधिकारियों द्वारा आफलाइन दावे स्वीकार नहीं किए जा रहे हैं, केवल आनलाइन दावे ही मांगे जा रहे हैं। दावों के समर्थन में दावेदारों से तकनीकी साक्ष्य मांगे जाते हैं और इनके अभाव में दावे खारिज कर दिए जाते हैं। अधिकांश जिलों में पोर्टल अक्सर काम नहीं करता है या ठप्प हो जाता है। इस वज़ह से दावेदार पोर्टल पर समीक्षा के लिए अपलोड नहीं कर पा रहे हैं। दावेदारों के पास अपने स्वयं की आईडी तक पहुंच नहीं है और न ही उनके पास पोर्टल लाॅगइन करने के लिए पासवर्ड है। इस वज़ह से उनके दावे खारिज होने की संभावना बनी रहती है।
इसी शिकायत पत्र पर संज्ञान लेते हुए केन्द्रीय जनजातीय मंत्रालय ने विगत 24 फरवरी को राज्य सरकार को पत्र लिखकर जबाब मांगा है कि वन मित्र एप और पोर्टल के कारण वन अधिकार अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न हो रही है। इस वज़ह से व्यक्तिगत अधिकार दांवों की बङे पैमाने पर अस्वीकृति हो रही है। वहीं मंत्रालय ने राज्य सरकार को इन बिंदुओं के आधार पर जांच करने और एक सप्ताह में रिपोर्ट प्रस्तुत करने आदेश दिए हैं।
मंत्रालय ने यह भी कहा है कि अस्वीकृत दावों की समीक्षा के लिए अपनाई गई प्रणाली, जिसमें दावेदारों को सभी साक्ष्य प्रस्तुत करने का पर्याप्त अवसर दिया गया है,जैसा कि वन अधिकार के नियम 2008 की कंडिका 13 में उल्लेख किया गया है। वहीं क्या दावेदारों को उनके दावे की अस्वीकृति के कारणों की जानकारी दी गई और क्या उन्हें अपना पक्ष रखने का उचित अवसर दिया गया था।
मंत्रालय ने राज्य सरकार से यह भी पूछा है कि समुदायों को वन मित्र पोर्टल और एप के उपयोग के लिए प्रशिक्षण दिया गया है और क्या आदिवासी समुदाय ऑनलाइन दावे दर्ज करने में सक्षम हैं? क्या पोर्टल के माध्यम से दावेदार या ग्राम सभा स्वयं यह देख सकते हैं कि उनके दावे किस चरण में है?
बता दें कि वन अधिकार कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 13 फरवरी 2019 को दिये गए फैसले से पता चला कि मध्यप्रदेश में 3,54,787 व्यक्तिगत दावे खारिज किए गए हैं। राज्य स्तरीय वन अधिकार निगरानी समिति ने 27 फरवरी 2019 को अपनी 17वीं बैठक में स्वीकार किया कि दावों को खारिज करते समय समय उचित प्रक्रिया नहीं अपनाया गया और दावों को समीक्षा करने का निर्णय लिया गया था।