भोपाल। मध्य प्रदेश में सोयाबीन खरीदी को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक MP सरकार ने केंद्र को सोयाबीन खरीदी का प्रस्ताव ही नहीं भेजा है। विपक्ष का आरोप है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि किसान परेशान होकर कम दाम पर उपज बेच दें ताकि बिचौलियों को फायदा हो सके। वहीं, सीएम मोहन यादव ने सोयाबीन उत्पादक किसानों के फसल में घाटे की भरपाई के लिए भावांतर योजना लागू करने की बात कही है। इसपर कृषि एक्सपर्ट एवं किसान नेता केदार सिरोही ने सवाल खड़े किए हैं। सिरोही ने कहा कि किसान MSP की मांग कर रहे हैं, ये भावांतर की पर्ची कहां से निकला गई।
सिरोही ने बयान जारी कर कहा कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा सोयाबीन फसल के लिए भावंतर भुगतान योजना लागू करने की घोषणा ने राज्य के किसानों के बीच वर्ष 2017 के कड़वे अनुभवों को फिर से ताज़ा कर दिया है। सिरोही ने इस योजना की घोषणा पर गंभीर नीतिगत प्रश्न खड़े किए हैं और मांग की है कि किसानों की उपज की बिक्री न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सुनिश्चित की जाए।
मध्य प्रदेश शासन की कृषि सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य केदार सिरोही ने कहा है कि यह योजना किसानों को मंडी मूल्य और MSP के बीच के अंतर का भुगतान करने का वादा करती है,जबकि बीच के अंतर की जगह मासिक स्तर पर निकाले गए मॉडल प्राइस के आधार पर होता है जिसके आंकड़े, गणना और आधार किसानों के बीच सार्वजनिक नहीं किए जाते हैं, जिस कारण यह योजना वादा पूरा नहीं करती है। सिरोही ने आरोप लगाया कि यह मॉडल किसानों के लिए कम और सोयाबीन प्रोसेसिंग प्लांट्स तथा व्यापारियों के लिए अधिक लाभदायक है।
किसान नेता ने मुख्यमंत्री को वर्ष 2017 में लागू की गई पिछली भावांतर योजना के नकारात्मक प्रभावों की याद दिलाते हुए कहा कि भावांतर भुगतान योजना में किसानों ने स्वयं को ठगा हुआ महसूस किया था, योजना की सिमित समय सीमा (60 दिन) के कारण अचानक आवक बढ़ने से मांग के मुकाबले आपूर्ति अत्यधिक हो गई, जिससे मंडी भावों में 800 से 1200 रु प्रति क्विंटल (30-35%) तक की भारी गिरावट देखी गई। इसके कारण न सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि राजस्थान और महाराष्ट्र तक के बाज़ार भाव प्रभावित हुए। जबकि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भाव स्थिर थे।
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि प्रदेश में एक माहौल बनाया गया था कि अंतर की भरपाई सरकार करेगी और उसकी आड़ में आर्टिफीसियल तरीके से बाजार भाव गिराकर किसानों से सोयाबीन न्यूनतम भाव पर खरीदी थी, जिसका फायदा प्लांटों ने उठाया था। सरकार ने MSP और बाज़ार मूल्य का सीधा अंतर देने की बजाय, 'मॉडल प्राइस' के आधार पर भुगतान किया। जिसमें पहले महीने का मॉडल प्राइस ₹410 और फिर ₹230 आया, जबकि बाजार एक जैसे थे जिसने किसानों की उम्मीदों को पूरी तरह तोड़ दिया।
किसानों को अंतर की राशि का भुगतान 1 से 1.5 माह की देरी से मिला, जबकि कृषि कार्यों की समयबद्धता के लिए तत्काल भुगतान आवश्यक होता है। इस योजना का सबसे बड़ा लाभ सोयाबीन प्लांट्स और व्यापारियों को मिला, जिन्होंने सस्ते दामों पर साल भर का स्टॉक कर लिया। सरकार की योजना से बाज़ार पूरी तरह से प्राइवेट प्लेयर्स के नियंत्रण में रहा था।
उन्होंने मुख्यमंत्री से कुछ नीतिगत प्रश्न पूछे हैं साथ ही अनुरोध किया है कि इस बार किसानों के पूर्व अनुभवों को ध्यान में रखते हुए भावांतर भुगतान योजना की घोषणा पर पुनर्विचार करें।
1.योजना लागू करने से पहले किसानों से ऑनलाइन फीडबैक लिया जाए कि वे अपनी उपज भावांतर योजना पर बेचना चाहते हैं या सीधे MSP पर। यदि किसान की सहमति न हो, तो भावांतर योजना की जगह MSP पर खरीदी की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। क्योकि "मोदी जी ने कहा था कि MSP है, MSP था और MSP रहेगा" इस वचन का पालन करते हुए, किसान भावांतर की पर्ची की बजाय MSP की गारंटी चाहता है।
2. इस बार भावंतर योजना की शर्तें क्या होंगी? खरीद की समय सीमा कितनी रहेगी? प्राइस डिस्कवरी (मूल्य निर्धारण) का आधार क्या होगा? क्या यह मासिक की बजाय प्रतिदिन के औसत भाव के आधार पर होगा? भुगतान (सेटलमेंट) की शर्तें और भुगतान की अवधि का कैलेंडर क्या रहेगा? क्या भुगतान तुरंत किया जाएगा?
3.मंडी और प्लांटों के भावों की नियमित मॉनिटरिंग की प्रक्रिया कैसे रहेगी? 2017 में प्लांट और मंडी भाव में दोगुना अंतर हो गया था, इस बार प्राइस कंट्रोल कैसे किया जाएगा? किसानों के लिए बिक्री में पारदर्शिता कैसे बढ़ाई जाएगी ताकि व्यापारी इस योजना का लाभ न ले पाएं? इसका स्पष्ट प्लान किसानों के सामने रखा जाए।
सिरोही ने मुख्यमंत्री से मांग करते हुए कहा कि भावंतर भुगतान योजना की घोषणा पर तुरंत पुनर्विचार की जाए। उन्होंने पूछा कि जब केंद्र सरकार दूसरे राज्यों को MSP पर खरीदी की अनुमति दे रही है, तो मध्य प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण कृषि राज्य को एक 'फ्लॉप मॉडल' को क्यों लागू करना चाहिए? किसान नेता ने कहा कि मुख्यमंत्री को यह स्पष्ट करना होगा कि यह योजना किसानों के हित के लिए है या सोयाबीन इंडस्ट्री के हित के लिए। यदि यह किसानों के हित में है, तो उन्हें MSP पर खरीदी शुरू करनी चाहिए और किसानों से फीडबैक लेना चाहिए।