महेश्वर के किले समेत ऐतिहासिक विरासत वाली कई संपत्तियों की देखरेख करने वाले खासगी ट्रस्ट और उसके ट्रस्टी सतीश मल्होत्रा को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है जिसमें खासगी ट्रस्ट के नियंत्रण वाली तमाम संपत्तियों की जांच करने और उन्हें सरकारी कब्जे में लेने का आदेश दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने खासगी ट्रस्त के तहत आने वाली संपत्तियों की निगरानी के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमिटी बनाने और पूरे मामले की जांच EOW यानी इकनॉमिक ऑफेंस विंग से कराने के हाईकोर्ट के आदेश पर अमल भी फिलहाल रोक दिया है।  उच्चतम न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 2 दिसंबर की तारीख तय की है। साथ ही यह भी कहा है कि उसी दिन मामले को अंतिम रूप से सुना जाए, जिसमें यह तय होगा कि खासगी ट्रस्ट की संपत्तियों पर असली मालिकाना हक किसका है।  

ट्रस्ट को संपत्ति बेचने की अनुमति सरकार ने दी थी : सिब्बल 
सुनवाई के दौरान ट्रस्ट के पैरोकार कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि खासगी ट्रस्ट ने अब तक जो भी संपत्तियां बेची हैं, उनके लिए अनुमति राज्य सरकार ने ही दी थी। सिब्बल ने अदालत को बताया कि इससे संबंधित दस्तावेजों पर बाकायदा सरकारी अफसरों के दस्तखत भी हैं। जबकि सरकार की तरफ से पेश वकील ने  सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हाई कोर्ट के आदेश में कोई कमी नहीं है। उसे कायम रखा जाना चाहिए। दोनों पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी कब्ज़े, EOW की जांच और 39 अफसरों की कमेटी बनाने के फैसलों पर फिलहाल रोक लगा दी।

खासगी ट्रस्ट विवाद का कारण 
खासगी ट्रस्ट एतिहासिक धरोहर वाली संपत्तियों की देखरेख करने वाली संस्था है। ट्रस्ट के ऊपर आरोप लगे कि इसने सरकारी संपत्तियों को कौड़ियों के दाम बेच दिया। ट्रस्ट के खिलाफ यह मामला मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच में पहुंचा तो उसने अपने फैसले में ट्रस्ट की संपत्तियों को सरकारी कब्ज़े में लेने का आदेश दे दिया। कोर्ट ने ट्रस्ट के खिलाफ गहराई से जांच करने के आदेश भी दिए थे। आदेश मिलने के बाद फौरन ही सरकार ने ट्रस्ट की तमाम संपत्तियों को अपने कब्जे में लेने की कार्रवाई शुरू भी कर दी थी।