ग्वालियर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने अनुकंपा नियुक्ति से जुड़े एक मामले को खारिज करते हुए बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य मृतक के परिजनों को तात्कालिक संकट से उबारना है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति किसी का अधिकार नहीं है।

दरअसल, ग्वालियर निवासी दिलीप कुमार पाराशर के पिता नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कार्यालय (CAG) में पदस्थ थे। पिता के असमय निधन के बाद दिलीप कुमार ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए विभाग में आवेदन दिया था। लेकिन, उस समय विभाग ने रिक्तियों के अभाव का हवाला देते हुए इसे खारिज कर दिया था। 

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इसके बाद दिलीप कुमार ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) में अपील की। हालांकि यहां भी उन्हें कोई राहत मिली है। जिसके बाद उन्होंने इसे मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट में इस केस की सुनवाई जस्टिस आनंद पाठक और जस्टिस पुष्पेंद्र यादव की बेंच ने की। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के पिता का निधन वर्ष 2011 में हुआ था। और अब तक 14 साल बीत चुके हैं। इतने लंबे समय बाद के अंतराल के बाद अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य पूरा नहीं होता। 

हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान सरकारी नीति का हवाला देते हुए कहा कि ग्रुप-सी पदों पर प्रत्यक्ष भर्ती कोटे की केवल 5 फीसदी रिक्तियों में ही अनुकंपा नियुक्ति संभव है। चूंकि विभाग के पास उस समय कोई रिक्त पद उपलब्ध नहीं था, इसलिए याचिकाकर्ता को लाभ नहीं दिया जा सकता। साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसा कोई मामला नहीं जहां ऐसी परिस्थित में किसी याचिकाकर्ता को लाभ मिला हो। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अनुकंपा नियुक्ति मृतक कर्मचारी के परिजन को तत्काल आर्थिक मदद से उबारती है न कि यह वेतनयुक्त अधिकार है।