भोपाल। विश्वभर में रविवार 09 अगस्त को वर्ल्ड ट्राइबल डे मनाया जा रहा है। इस दिवस को मनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य आदिवासियों को उनका हक दिलाना है। लेकिन मध्यप्रदेश सरकार आदिवासियों को उनकी ज़मीन से बेदख़ल करने की तैयारी कर चुकी है। प्रदेश सरकार ने आदिवासियों को पट्टा दिलाने के लिए वन मित्र एप लॉन्च किया था। फॉरेस्ट एक्ट 2006 के अंतर्गत 6 जुलाई 2020 तक इस एप के माध्यम से 3.79 लाख दावे किए गए हैं जिनमें अबतक मात्र 716 दावों को ही मान्य किया गया है जो कुल दावों का 0.18 फीसदी है।

चौंकाने वाली बात यह है कि कुल प्राप्त 3.79 लाख दावों में से अबतक 1.33 लाख दावों को ही रिव्यु किया गया है जिसमें फॉरेस्ट राइट कमेटी द्वारा अब तक 99 हजार दावों को अमान्य घोषित कर दिया गया है बाकी बचे 2.45 लाख दावे अभी भी लंबित हैं। यह आलम तब है जब सीएम शिवराज सिंह चौहान ने जून महीने में समीक्षा बैठक के दौरान सभी कलेक्टरों को चेतावनी दी थी कि किसी भी आदिवासी के अधिकार को छीना नहीं जाएगा और सभी योग्य आदिवासियों को उनका पट्टा दिया जाएगा। इसके उलट 1.33 लाख रिव्यू किए गए दावों में से 99 हजार की खारिज किया जा चुका है।

मुख्यमंत्री कमल नाथ ने लॉन्च किया था एप 

दरअसल, साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने फॉरेस्ट राइट एक्ट 2006 के अंतर्गत अपने जमीन के कागज पेश करने में नाकाम रहे मध्यप्रदेश के 3.60 लाख आदिवासियों को जंगल छोड़ने के आदेश दिए थे। आदिवासी और सामाजिक कार्यकर्ताओं के आपत्ति के बाद मध्यप्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देते हुए कहा कि पिछली प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण थी और खारिज हुए दावों को हम फिर से रिव्यू करेंगे। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 2 अक्टूबर 2019 को वनमित्र एप लॉन्च किया जिसके अंतर्गत सभी खारिज किए और नए दावों को डिजिटलाइज करके ब्यौरा तैयार करना था।

बिना ग्राम पंचायत को बताए ही दावों को खारिज किया 

टीएडीपी यानी ट्राइबल एरिया डेवेलपमेंट प्लानिंग डिपार्टमेंट के आंकड़ों के अनुसार इस प्रक्रिया के अंतर्गत 6 जुलाई 2020 तक करीब 3.79 लाख दावे डाले जा चुके हैं। जिनमें लगभग 2.85 लाख मामले ऐसे हैं जिन्हें पूर्व में खारिज कर दिया गया था। वन मित्र एप के माध्यम से 93 हजार से अधिक नए दावे दायर किए गए हैं। बता दें कि एफआरए के तहत भूमि के दावों की समीक्षा पंचायत स्तर, उप-प्रभाग स्तर और जिला स्तर पर गठित वन अधिकार समितियों द्वारा तीन स्तरों पर की जाती हैं। 

मामले पर जागृत आदिवासी दलित संगठन की कन्वीनर माधुरी ने आरोप लगाया है कि सैंकड़ों गांवों में बिना ग्राम पंचायत बताए ही दावों को खारिज कर दिया गया है। उन्होंने 1.33 लाख समीक्षा किए गए आवेदनों में 99 हजार को खारिज किए जाने को चौंकाने वाला बताया है। माधुरी ने कहा, 'इस बार भी पूर्व की तरह ही ग्राम पंचायतों अनुशंसा के बगैर ही अधिकारियों द्वारा फैसला लिया जा रहा है। यह प्रक्रिया भी पूर्व की प्रक्रिया से अलग नहीं है।' उन्होंने अपने संगठन की ओर से प्रदेश सरकार से मांग किया है कि इस रिव्यू में पारदर्शिता लाई जाए।