जयपुर। राजस्थान में जारी सियासी उथल पुथल के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सभी विधायकों को पत्र लिखकर उनसे लोकतंत्र को बचाने की अपील की है। तीन पन्ने के अपने इस पत्र में अशोक गहलोत ने कहा है कि राजस्थान में कभी भी खरीद फरोख्त से सरकारें नहीं गिराई गईं और इस बार भी हमें जनता का विश्वास बनाए रखना होगा। हमारे कुछ साथी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार गिराने का प्रयास कर रहे हैं, उनके प्रति जनता में आक्रोश है। हम सबको मिलकर काम करना होगा, ताकि कोरोना वैश्विक महामारी से हम प्रदेश की जनता की रक्षा कर पाएं।

सीएम गहलोत ने अपने पत्र में लिखा कि सरकार गिराने के षड्यंत्र से पहले राजस्थान सरकार सभी स्तर के जनप्रतिनिधियों के साथ मिलकर काम कर रही थी, चाहे वे विपक्षी दलों के विधायक हों या स्थानीय स्तर के जनप्रतिनिधि। उस समय कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए उठाए गए राजस्थान सरकार के कदमों की पूरे देश में प्रशंसा हुई थी। ऐसे ही हमें फिर से काम करना है। कोरोना वायरस खतरनाक रूप लेती जा रही है। हमें लोगों को बीमारी से बचाना है, रोजगार देना है और उद्योग धंधे चालू करने हैं।

लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकारों को गिराने की कोशिश को महापाप बताते हुए गहलोत ने 90 के दशक का हवाला देते हुए कहा कि 1993-96 के दौरान प्रदेश में भैरो सिंह शेखावत की सरकार गिराने के प्रयास किए गए थे। उस समय मैंने केंद्रीय राज्य मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से तत्कालीन राज्यपाल बलिराम भगत और प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिलकर व्यक्तिश: विरोध किया था और कहा था कि चुनी हुई सरकार गिराना लोकतांत्रित मूल्यों के विरुद्ध है।

बसपा विधायकों को लेकर जारी हलचल के बारे में भी गहलोत ने पत्र में लिखा। उन्होंने लिखा कि राजीव गांधी के समय 1984 में दल बदल विरोधी कानून आया था और बाद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय यह प्रावधान किया गया कि किसी भी राजनीतिक दल के कम से कम दो तिहाई चुने हुए सदस्यों द्वारा नया दल बनाया जा सकता है या किसी दूसरे दल में विलय हो सकता है।

उन्होंने लिखा कि राजस्थान में बसपा के 6 विधायकों ने इस कानून के दायरे में रहकर राज्य में स्थिर सरकार और अपने-अपने क्षेत्र में विकास कार्यों की सुविधा के लिए कांग्रेस विधायक दल में विलय का निर्णय लिया। उन्होंने लिखा कि यह पूरी तरह से कानूनी है लेकिन खरीद फरोख्त करके सरकार को अस्थिर करना कहीं से भी न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है।

गहलोत में ने अपने पत्र के अंत में लिखा है कि चुनाव में हार जीत होती रहती है लेकिन जनता का फैसला शिरोधार्य होता है। यही हमारी परम्परा रही है। इंदिरा जी, राजीव जी और अटल जी जैसे नेता चुनाव हारे हैं लेकिन उन्होंने लोकतांत्रिक परंपराओं और संवैधानिक मूल्यों को कभी कमजोर नहीं होने दिया।