हैदराबाद। दक्षिण बस्तर के घने जंगलों में वर्षों तक माओवादियों की रणनीतिक कमान संभालने वाली सुजाता ने आखिरकार हथियार डाल दिए हैं। सुजाता, जिस पर छत्तीसगढ़, तेलंगाना, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश सरकारों ने एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित किया था, रविवार को तेलंगाना पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों ने इसे नक्सली संगठन के लिए बड़ा झटका बताया है।
करीब चार दशकों से नक्सली गतिविधियों में सक्रिय सुजाता संगठन की थिंक टैंक और रणनीतिकार मानी जाती थी। वह पद्मा, कल्पना, झांसीबाई जैसे तमाम नामों से जानी जाती थी। उसके पति किशनजी नक्सली आंदोलन के शीर्ष नेताओं में से एक थे। जिनकी मौत के बाद सुजाता ने संगठन से जुड़कर महिलाओं की भर्ती, प्रशिक्षण और कई बड़े हमलों की योजनाएं तैयार कीं।
करीब चार दशक से नक्सली गतिविधियों में सक्रिय सुजाता संगठन की सेंट्रल कमेटी सदस्य और दक्षिण बस्तर जोनल ब्यूरो की इंचार्ज रही है। सुजाता लंबे समय तक बस्तर के तर्रेम, भट्टीगुड़ा, मीनागुट्टा और तुमलपाट जैसे इलाकों में सक्रिय रही थी। संगठन के दक्षिण बस्तर डिविजनल ब्यूरो और विशेष जोनल कमेटी का नेतृत्व उसके कंधों पर था। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, बस्तर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिलों में हुए कई माओवादी हमलों और मुठभेड़ों में उसकी मुख्य भूमिका रही थी।
हैदराबाद में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेलंगाना पुलिस के डीजीपी ने सुजाता के आत्मसमर्पण की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि सुजाता संगठन की सीनियर कमांडर और सेंट्रल कमेटी की सदस्य रही है। डीजीपी ने कहा, “सुजाता का आत्मसमर्पण नक्सली संगठन के लिए गहरा आघात है। सरकार की पुनर्वास नीति के तहत उसे सुरक्षा और जरूरी सुविधाएं दी जाएंगी। हम सभी युवाओं से अपील करते हैं कि वे हिंसा का रास्ता छोड़कर समाज और विकास की मुख्यधारा में लौटें।”
जानकारी के मुताबिक नक्सल लीडर सुजाता व्यक्तिगत और संगठनात्मक दोनों स्तरों पर दबाव में थी। पति और करीबी साथियों की मौत, लगातार सुरक्षा बलों की कार्रवाई और जंगलों में बिगड़ती परिस्थितियों ने उसे तोड़ दिया था। स्वास्थ्य कारणों से वह हाल ही में इलाज के लिए तेलंगाना आई थी, इसी दौरान उसने आत्मसमर्पण का निर्णय लिया। सरकार ने साफ किया है कि सुजाता को पुनर्वास नीति के तहत सुरक्षा और सहायता मिलेगी।